फेसबुक लीक पर बड़ा खुलासा! सब जानते हुए भी बेखबर रहे जुकरबर्ग

नई दिल्ली। फेसबुक डाटा लीक मामले की हवा कई देशों में तेजी से फ़ैल रही है। इस हवा के साथ फेसबुक सीईओ मार्क जुकरबर्ग की टेंशन तो बड़ी रही है, लेकिन सुरक्षा के लिहाज से यूजर्स की भी दिमागी चूड़ियां घूमती नज़र आ रही हैं। हालांकि मामले का खुलासा होने के बाद जुकरबर्ग ने अपनी गलती मान ली और सुरक्षा व्यवस्था में बड़े सुधार का दिलासा भी दिया। पर जो विश्वास फेसबुक ने अपने यूजर्स के दिलों में जमाया था, अब कहीं न कहीं बिखरता दिखाई दे रहा है।

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जुकरबर्ग की टेंशन

टूटे हुए भरोसे को जोड़ना उनके लिए काफी मशक्कत वाला काम होने वाला है। लेकिन बड़ी बात ये है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। वाकई में इसके बारे में जुकरबर्ग को भनक तक नहीं लगी, जिन्होंने इतनी कम उम्र में दुनिया को इतना बड़ा सोशल प्लेटफ़ॉर्म सौगात में दिया।

10 पाइंट में समझिए, 2007 से 2018 के बीच 12 साल में क्या हुआ ?

  1. फेसबुक ने दिया प्लेटफॉर्म, एप से डाटा लीक

फेसबुक ने 2007 में एप्स और थर्ड पार्टी डेवलपर्स के लिए एक प्लेटफॉर्म डेवलप किया। यूजर जैसे ही ये एप डाउनलोड करता था तो इन डेवलपर्स- थर्ड पार्टी को यूजर के पर्सनल डाटा तक पहुंचने और उसके इस्तेमाल की एक्सेस मिल जाती थी।

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2013 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के रिसर्चर एलेक्सेंद्र कोगन ने एक पर्सनैलिटी क्विज़ एप डेवलप किया जिसका नाम था – ‘दिस इज़ योर डिजिटल लाइफ’ । इसे करीब दो लाख 70 हजार लोगों ने डाउनलोड किया। ऐसा करने से इन यूजर्स के पर्सनल डाटा और उनकी फ्रेंड्स की लिस्ट तक डेवलपर कोगन एंड टीम की पहुंच बन गई।

  1. यूएस चुनाव में हुआ डाटा इस्तेमाल

2014 में कैंब्रिज एनालिटिका नाम की कंपनी ने इस डाटा को खरीद कर इसका इस्तेमाल यूएस चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के कैंडिडेट टेड क्रूज के लिए कैंपेनिंग में करना शुरू किया। बाद में क्रूज प्रेसिडेंट पद की दौड़ में पिछड़ गए तो इस कंपनी ने फ्रंटरनर बने डोनाल्ड ट्रम्प के लिए वोटर्स का डाटा एनालिसिस का काम करना शुरू कर दिया।

  1. फेसबुक ने जल्दी से बदली पॉलिसी

दो साल बाद 2015 में फेसबुक ने अपनी प्राइवेसी पॉलिसी में बदलाव किया। इसके बाद ऐप्स डेवलपर्स को सेंसिटिव डाटा के लिए फेसबुक से अप्रूवल लेना होता था। नतीजा यह हुआ कि अगर यूजर ने कोई थर्ड पार्टी एप इंस्टॉल किया है तो थर्ड पार्टी एप से आई रिक्वेस्ट बिना अथॉरिटी के अप्रूव नहीं होती थी। इसका अच्छा उदाहरण कैंडी क्रश सागा नाम का फेसबुक गेम था जिसमें गेम खेल रहे यूजर से अपने आप ढेरों रिक्वेस्ट उसके एफबी फ्रेंड्स तक पहुंचती थी।

  1. पहली बार मीडिया में एक्सपोज

2015, में द गार्जियन ने पहली बार इस स्कैम को एक्सपोज किया कि डेवलपर कोगन ने कैंब्रिज एनालिटिका के साथ फेसबुक यूजर्स का सेंसिटिव डाटा शेयर किया है/बेच दिया है। कैंब्रिज एनालिटिका ने इस डाटा का इस्तेमाल वोटर्स को इमोशनली मैनुपुलेट करने के लिया किया। खुद कैंब्रिज एनालिटिका ने ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद इस बात का श्रेय भी लिया कि उसने ट्रम्प को ओवल ऑफिस पहुंचने में मदद की।

  1. ऐसे बदलते थे वोटर्स का माइंडसेट

एनालिटिका के सीईओ ने बताया कि उनकी कंपनी फेसबुक यूजर्स से जुड़ी सूचनाओं को अलग-अलग तरह से छांटती थी। इसके बाद ऐसे यूजर्स को टॉरगेट किया जाता था जो अपना मन बदल सकते थे। कंपनी को ये समझ उनकी पोस्ट हिस्ट्री से मिलती थी। इसके बाद उनकी साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग का इस्तेमाल करते हुए अपने क्लाइंट के समर्थन में और अपने विरोधी के खिलाफ सोशल प्लेटफॉर्म पर सूचनाएं प्लांट की जाती थी। ऐसा करने से मन बदल सकता है और लोग अपनी पसंद से नहीं बल्कि सोशल मीडिया के दबाव में फैसला लेते हैं।

  1. कैंब्रिज एनालिटिका ने डाटा डिलीट नहीं किया

द गार्जियन के डाटा शेयरिंग खुलासे के बाद फेसबुक ने कोगन के एप को अपने प्लेटफॉर्म पर बैन किर दिया और कैंब्रिज एनालिटिका से कहा कि वह कोगन का शेयर किया गया पूरा डाटा डिलीट कर दे। फेसबुक के एक्शन लेने के बाद कैंब्रिज एनालिटिका ने जकरबर्ग को इस बात का झूठा प्रमाण दिया कि उसने गलत तरीके से कोगन से लिया डाटा डिलीट कर दिया है।

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  1. ट्रम्प बने यूएस प्रेसिडेंट, रूस की संदिग्ध भूमिका

जनवरी में 2017 ट्रम्प राष्ट्रपति चुन लिए गए और उन्हें चुनाव जिताने में रूसी हैकर्स की भूमिका को लेकर सवाल उठने लगे। आरोप लगा कि ट्रम्प को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जिताने के लिए रूसी दखल था। हिलेरी की रणनीतियां हैक करके ट्रम्प को भेजी गईं। सोशल मीडिया डेटा का गलत इस्तेमाल हुआ। एफबीआई ने रूस के 13 लोगों और तीन कंपनियों पर आरोप तय किए हैं।

  1. 2018मेंअब फिर से ऐसे खुला मामला

17 मार्च 2018 को न्यूयॉर्क टाइम्स और लंदन ऑब्जर्वर ने कैंब्रिज एनालिटिका के ही पूर्व रिसर्च डायरेक्टर क्रिस्टोफर वायली के जरिए इस मामले को फिर से हवा दी कि कैंब्रिज एनालिटिका ने करीब 5 करोड़ यूजर्स के डाटा का गलत उपयोग किया और वादे के अनुसार उसे डिलीट नहीं किया। व्हिसल ब्लोअर बने वायली ने 2015 में कंपनी छोड़ दी थी और उसके बाद फेसबुक ने उनसे अपने सभी सिस्टम से यूजर्स डाटा डिलीट करने को कहा था लेकिन आगे फॉलोअप नहीं किया कि उन्होंने उस डाटा का क्या किया।

  1. एनालिटिका सीईओ का स्टिंग ऑपरेशन में खुलासा

ब्रिटिश चैनल 4 ने एनालिटिका के सीईओ एलेग्जेंडर निक्स का स्टिंग किया। उन्होंने माना कि क्लाइंट को जिताने के लिए हर हथकंडा अपनाते हैं। डेटा पर काम करने के चलते ट्रम्प को बड़ी जीत हासिल हुई। फेसबुक पर अमेरिका, ब्रिटेन, द। कोरिया समेत पांच देशों में डेटा चोरी से जुड़े मामले सामने आए हैं।

  1. जकरबर्ग को मांगनी पड़ी माफी

वायली के खुलासे के बाद जब #deletefacebook ट्रेंड करने लगा तो 22 मार्च को जकरबर्ग ने डेटा चोरी को लेकर तीन प्लेटफॉर्म पर दुनिया से माफी मांगी। भारत ने चेतावनी दी तो भरोसा दिलाया कि चुनाव से पहले फेसबुक के सिक्युरिटी फीचर और मजबूत किए जाएंगे।

जुकरबर्ग ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर माना है कि चुनाव को प्रभावित करने में फेसबुक का गलत इस्तेमाल हो रहा है।

उन्होंने लिखा- “यह बड़ा विश्वासघात था। मुझे खेद है। लोगों का डेटा सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। हमसे कई गलतियां हुई हैं। उन्हें ठीक कर रहे हैं।”

खबरों के मुताबिक़ पांच करोड़ यूजर्स का डाटा लीक हुआ। इसकी आंच कई देशों में अपनी तपिश छोड़ रही है। निशाने पर आए सियासी दल एक दूसरे पर मामले में भागीदार होने का ठीकरा फोड़ रहे हैं। हर दिन नई बातें सामने आ रही है।

बता दें कैंब्रिज एनालिटिका के पूर्व कर्मचारी और अब व्हिसल ब्लोअर क्रिस्टोफर वायली ने एक बार फिर सोशल मीडिया की ‘झूठी खबर की शक्ति’ को उजागर किया है।

गिरते मार्केट शेयर की बीच मामले को संभालने मार्क जुकरबर्ग के खुलकर सामने आने और गलती मान लेने के बाद ये दो सवाल उठते हैं।

  1. क्या जकरबर्ग पिछले 3 साल से जानते थे कि फेसबुक यूजर्स का पर्सनल डाटा गलत हाथों में पड़ चुका है ?
  2. फेसबुक सीईओ ने सिर्फ 4 दिनों में क्यों मान लिया कि गलती फेसबुक ने की है?

दैनिक भाष्कर की रिपोर्ट के अनुसार इन सवालों के जवाब ढूंढ़ने की रिसर्च में दो क्लू मिले हैं जो बताते हैं कि जकरबर्ग को लग रहा था कि ये मामला दबेगा नहीं।

संभवत: इसीलिए उन्होंने 4 जनवरी 2018 को साल की अपनी पहली रिजॉल्यूशन पोस्ट में पहली बार आत्म-सुधार और फेसबुक की गलतियां दुरुस्त करने पर जोर दिया।

इसके ठीक ढाई महीने बाद 17 मार्च को सामने आए इस डाटा लीक खुलासे का नतीजा है कि फेसबुक ने अब अपनी पूरी व्यवस्था को चाक-चौबंद करने का फैसला किया है।

रिपोर्ट्स बताती हैं कि उन्हें पता था कि क्या गड़बड़ हुई है और कैसे हुई?

फेसबुक ने 2015 में ही अपनी प्राइवेसी पॉलिसी में बदलाव करके थर्ड पार्टी डेवलपर को बैन कर दिया था, लेकिन तब तक मामला हाथ से निकल चुका था।

द गार्जियन अखबार के 11 दिसंबर 2015 के खुलासे और 22 मार्च 2018 को द बिजनेस इनसाइडर मैगजीन में छपे ईमेल कम्यूनिकेशन से पता चलता है कि फेसबुक मैनेजमेंट इस गड़बड़ी से बेखबर नहीं था।

इस ईमेल एक्सचेंज में साफ तौर फेसबुक की पॉलिसी मैनेजर एलिसन हैंड्रिक्स ने कैंब्रिज एनालिटिका कंपनी से पूछा था कि क्या फेसबुक डाटा का इस्तेमाल करके यूएस चुनाव में रिपब्लिकन केंडिडेट टेड क्रूज़ को फायदा पहुंचाने वाली मीडिया स्टोरीज सही हैं?

हैंड्रिक्स ने द गार्जियन के खुलासे वाली स्टोरी और उसके बाद की फॉलोअप स्टोरीज का हवाला देते हुए कंपनी के सीईओ निक्स से दो सवाल पूछे थे –

  1. क्या इस मामले में कहीं गड़बड़ी हो रही है?
  2. क्या मैं आपका पीआर कॉन्टेक्ट उन रिपोर्टर के साथ शेयर कर सकती हूं जो हमसे सच जानने के लिए संपर्क कर रहे हैं?

वहीं जुकरबर्ग ने 2018 की अपनी पहली पोस्ट में इस वर्ष को आत्म-सुधार का साल बताते हुए कहा था, “हम सारी गलतियां तो नहीं रोक पाएंगे। लेकिन अभी हमारी पॉलिसी और टूल्स के दुरुपयोग की कई गलतियां की जा रही हैं। अगर इस साल हम सफल रहे तो 2018 का एक अच्छा समापन होगा। कुछ अलग करने के बजाय इन मुद्दों पर गहराई से काम करके सीखना चाहेंगे। तकनीक ने यह वादा किया था कि ताकत लोगों के हाथ में जाएगी लेकिन अब बहुत सारे लोग इस बात पर यक़ीन खो चुके हैं।

उन्हें लगता है कि तकनीक ने ताक़त को ख़ुद तक सीमित रखा है। एनक्रिप्शन और डिजिटल मुद्रा का ट्रेंड इसे काउंटर कर सकता है। यह साल आत्म-सुधार का साल है। इसमें फेसबुक को देशों के दखल से बचाने के साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि फेसबुक पर बिताया गया समय यूजर का बेशकीमती होगा।”

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