44 साल बाद भी नहीं पसीजी सरकार, बेगम अख्तर के लिए कलाकारों ने लिया बड़ा फैसला

नई दिल्ली: साहित्य समाज का श्रृंगार होता है. साहित्य से जुड़ाव रखने वाले लोगों का दायित्व होता है समाज में कला और अभिनय के माध्यम से सकारात्मकता का संचार करना. बनारस का संगीत घराना, इटावा का इमादाद घराना जो की संगीत के विविध आयामों के सृजन के लिए जाना जाता रहा है और समाजहित में निरंतर अपनी सेवाएं प्रदान करता रहा है. इन्ही शख्सियतों में बड़ा नाम बेगम अख्तर का आता है.  साहित्य के नायाब हीरों की विरासत को मंच प्रदान करना सरकारों का दायित्व होना चाहिए जिससे उनके योगदान को वैश्विक स्तर प्राप्त हो सके.बेगम अख्तर

कला और साहित्य हमारी विरासत के दो प्रमुख स्तम्भ रहे हैं ऐसे में इस नायाब विरासत को संजोये रखना हमारी जरूरत भी है और कर्तव्य भी. आज बात कर रहे हैं अख्तरीबाई फैजाबादी की दुनिया जिन्हें बेग़म अख्तर के नाम से जानती है. उनकी 100वीं जन्म शताब्दी वर्ष 2014 के वक्त कुछ हलचल जरूर नजर आई लेकिन बाद में वह ठहर गई.

मौत के करीब 44 साल बाद तक जो काम तमाम सरकारों ने नहीं किया उसके लिए अब एक शिक्षण संस्थान आगे आ रहा है बेगम की विरासत को संजोने.

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डॉक्टर राममनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी ने ‘बेग़म अख्तर संगीत कला एकेडमी’ की स्थापना करने का फैसला किया है. प्रस्तावित योजना सीधे यूनिवर्सिटी के कुलपति और विशेष कार्य अधिकारी की निगरानी में है. जानकारी के मुताबिक यूनिवर्सिटी ने प्रस्तावित योजना के कंस्ट्रक्शन और एकेडमी के स्वरूप का पूरा खाका तैयार कर लिया है.

यूनिवर्सिटी की खाली पड़ी 36 एकड़ जमीन पर 9 हजार 951 वर्गमीटर पर करीब 60 करोड़ रुपये की लागत से एकेडमी का भव्य निर्माण होगा. यूनिवर्सिटी वीसी ने बताया, भवन निर्माण के लिए 4266.36 लाख रुपये का शुरुआती इस्टीमेट प्रस्तावित है. वार्षिक परीक्षाओं के बाद मई तक शिलान्यास कर दिया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए 18 महीने की समयावधि निर्धारित की गई है.

एकेडमी में बेगम अख्तर से जुड़ी चीजों का एक भव्य म्यूजियम होगा. इसमें बेगम के दुर्लभ रिकॉर्ड्स, फ़िल्में, तस्वीरें और जीवन से जुड़ी तमाम दूसरी संग्रहों का कलेक्शन किया जाएगा. एकेडमी के तहत बेग़म की परंपरा के शास्त्रीय संगीत के शिक्षण और प्रशिक्षण पर जोर दिया जाएगा. मनोज दीक्षित के मुताबिक बेगम पर रिसर्च करने वाले स्कॉलर्स को इससे काफी सहूलियत मिलेगी.

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उन्हें तमाम चीजें दुनिया में एक ही जगह मिल जाएंगी. अवध यूनिवर्सिटी उसी जगह है जहां से महज 5 किलोमीटर दूर भदरसा नाम के गांव में 7 अक्टूबर 1914 को बेगम अख्तर का जन्म हुआ था.

2014 में दस्तावेजी फिल्म निर्माता और बेगम की 100वीं जन्मशती वर्ष पर बेग़म को समर्पित फिल्म समारोह करने वाले शाह आलम ने यूनिवर्सिटी की पहल का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, “अवध में बेगम के चाहने वाले एक लंबे वक्त से सरकार से ऐसी व्यवस्थित पहल की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन इतने वर्षों में किसी ने कुछ किया नहीं. जन्मशती वर्ष में केंद्र सरकार ने बेगम के नाम पर 5 रुपये का सिक्का जारी कर तो पुरस्कारों की बंदरबाट में यूपी की अखिलेश की सरकार ने 5 लाख के अवॉर्ड की घोषणा से खाना-पूरी कर ली.”

सवाल पर कि एकेडमी बनाने के लिए यूनिवर्सिटी करोड़ों का भारी भरकम बजट कैसे जुटाएगी? मनोज दीक्षित ने कहा, “हम स्वायत्तशासी यूनिवर्सिटी हैं. लागत का कुछ हिस्सा यूनिवर्सिटी फंड से होगा. कुछ फंड चैरिटी या दूसरों की मदद से जुटाएंगे.

उन्होंने कहा, यूपी गवर्नमेंट से फंड मिलना मुश्किल है लेकिन केंद्र सरकार की संस्कृति मंत्रालय से कुछ न कुछ मिल ही जाएगा. जरूरत पड़ी तो हम बेगम के को चाहने वाले संगीतकारों, प्रशंसकों की मदद लेंगे. दीक्षित इस बात पर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि वो बजट जुटा लेंगे और उनके कार्यकाल में ही इसका निर्माण भी हो जाएगा.

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