बर्फबारी के बीच बंद हुए बदरीनाथ धाम के कपाट

बदरीनाथबदरीनाथ। रुक-रुक कर जारी बर्फबारी के बीच रविवार को शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के कपाट भी बंद कर दिए गए हैं। इसी के साथ चार धाम यात्र का भी समापन हो गया। मान्यता है कि शीतकाल के दौरान देवऋषि नारद बदरीनाथ में भगवान बदरी नारायण और लक्ष्मी की पूजा करेंगे, जबकि नर पूजा पांडुकेश्वर में होगी। करीब सात हजार से ज्यादा यात्री इस शुभ अवसर के गवाह बने। गौरतलब है कि केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट पहले ही बंद किए जा चुके हैं।

बदरी-केदार मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी बीडी सिंह ने बताया कि वर्ष 2000 के बाद पहली बार ऐसा संयोग बना है कि कपाट देर शाम को बंद किए गए। रविवार को ब्रह्म मुहूर्त में महाभिषेक पूजा के साथ भगवान नारायण का फूलों से भव्य श्रृंगार हुआ। कपाट बंदी के दिन भगवान का आभूषणों के बजाए फूलों से श्रृंगार होता है। इसलिए इस दिन को फूल श्रृंगार के रूप में जाना जाता है।

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कपाट बंद होने के उत्सव को भव्यता प्रदान करने के लिए मंदिर की रंग-बिरंगे फूलों से सजावट की गई थी। अलकनंदा नदी पर बने पुल से मंदिर तक फूलों की सजावट देखते ही बन रही थी। दिनभर पूजाओं के बाद दोपहर दो बजे मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी स्त्री वेश में मां लक्ष्मी को गर्भगृह में लाने के लिए लक्ष्मी मंदिर गए। पूजा अर्चना के बाद उन्होंने गर्भगृह में भगवान नारायण के साथ लक्ष्मी को विराजमान किया। इसके उपरांत आरंभ हुईं सायंकालीन पूजाएं।

भगवान का फूलों का श्रृंगार उतारकर माणा गांव की कुंवारी कन्याओं की बनाई ऊन की चोली पर घी का लेपन कर इसे भगवान बदरी विशाल व मां लक्ष्मी को ओढ़ाया गया। इसी के साथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। कपाट बंदी के बाद उद्धव जी की डोली रावल निवास व कुबेर जी की डोली बामणी गांव के नंदा मंदिर ले जाई गई। इस वर्ष आठ लाख अस्सी हजार चार सौ श्रद्धालुओं ने बदरी विशाल के दर्शन किए। इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और मंदिर समिति के अध्यक्ष गणोश गोदियाल उपस्थित थे।

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