एक तांगे वाले से महागुरु तक ऐसे बदली आसाराम की किस्मत

नई दिल्लीः आसाराम बापू के रेप केस का फैसला आ गया है और वह दोषी ठहराए गए हैं. नाबालिग से दुष्कर्म मामले में साढ़े चार साल से जेल की हवा काट रहे आसाराम और उनके चार सेवादारों पर जोधपुर की अदालत ने फैसला सुना दिया है. जोधपुर कोर्ट के जज मधुसूदन शर्मा अपने फैसले में आसाराम को बलात्कारी माना है. कोर्ट ने आसाराम समेत तीन आरोपियों आसाराम, शरतचंद्र और शिल्पी को दोषी माना है. कुल पांच आरोपियों में शिवा और प्रकाश को बरी कर दिया गया है.

आसाराम बापू

आइए जानते हैं कैसे एक तांगा चलाने वाला लोगों का चलाने वाला बन गया.

आसाराम का असली नाम असुमल हरपलानी है और उनका जन्म साल 1941 में पाकिस्तान के सिंध इलाके में हुआ था. विभाजन के बाद सिंधी व्यापारी समुदाय से संबंध रखने वाला उनका परिवार अहमदाबाद आ गया.

पहले आसाराम अजमेर में रेलवे स्टेशन से दरगाह शरीफ तक लोगों को तांगे पर ले जाया करते थे. दो साल तक उन्होंने यह काम किया.

असुमल ने अध्यात्म की राह पकड़ी और लीलाशाह को अपना गुरु माना. बस यहीं से असमुल का नाम आसाराम हो गया.

साल 1972 में आसाराम ने अहमदाबाद से लगभग 10 किलोमीटर दूर मुटेरा कस्बे अपना पहला आश्रम शुरू किया.

आसाराम के आश्रमों की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक दुनिया भर में उनके 4 करोड़ से ज्यादा फॉलोवर्स हैं. दुनिया भर में 400 से ज्यादा आश्रम भी हैं.

ऐसे बढ़ाई लोगों की संख्या

अपने कार्यक्रमों के दौरान मुफ्त भोजन जैसी सुविधाएं शुरू की, जिससे गरीब लोग बड़ी संख्या में उनके अनुयायी बन गए.

आसाराम ने गुजरात और मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में स्थित आश्रम मुफ्त देशी दवाएं भी बांटते हैं, जिससे इलाके के लोग बड़ी संख्या में इन आश्रमों में जाने लगे.

आसाराम के अनुयायी कांग्रेस और बीजेपी दोनों के ही शीर्ष नेता रहे हैं. बापू के शिष्यों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी, दिग्विजय सिंह, कमल नाथ और मोतीलाल वोरा जैसे नाम शामिल रहे हैं. इन सबके अलावा शिवराज सिंह चौहान, उमा भारती, रमण सिंह, प्रेम कुमार धूमल और वसुंधरा राजे भी बापू के आश्रम जाते रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी गुजरात के सीएम होने के दौरान कई बार आसाराम के आश्रम में होने वाले कार्यक्रमों में जाते रहे हैं.

साल 2008 में जब आसाराम के मुटेरा आश्रम में दो बच्चों के नरकंकाल बरामद हुए तो ज़्यादातर नेताओं और राजनीतिक पार्टियों ने उनसे दूरी बना ली.

 

 

 

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