इतिहास की रक्षा का ‘ठेका’ लेने वाली करणी सेना का इतिहास भी जान लीजिए
नई दिल्ली| धर्मनिरपेक्षता की संवैधानिक प्रणाली रखने वाला और अनेकता में एकता की विशेषता रखने वाला भारतवर्ष इन दिनों कुछ क्षेत्रीय संगठनों का दंश झेल रहा है. अयोध्या में राम मंदिर विध्वंस और हिन्दू मुस्लिम दंगों का कड़वा इतिहास समेटे हुए देश में आजकल करणी सेना का उपद्रव जोरों पर है. एक फिल्म के लिए मार काट पर उतारू करणी सेना संजय लीला भंसाली की ‘पद्मावत’ में अपना वजूद तलाशने की फिराक में है.
इस फिल्म का विरोध कई संगठनों द्वारा किया जा रहा है लेकिन पूरे देश में करणी सेना के बैनर तले ही पूरे प्रायोजित कार्यक्रम और रणनीति को अंजाम दिया जा रहा है. यूं कहें तो करणी सेना ने ही इन दिनों इतिहास की रक्षा का ठेका ले रखा है.
क्षेत्रीय संगठनों का दंश झेलता भारत
इस राजपुताना संगठन के प्रमुख ‘लोकेन्द्र सिंह कलवी’ हैं जो पद्मावत के बहाने धूल फांक रही अपनी सियासत में नई ऊर्जा का संचार करने में लगे हुए हैं. करणी सेना सियासी जमीन तलाश रहे असफल लोगों का एक ऐसा समूह है जिनको पद्मावत के रूप में अमृत कलश नजर आता है.
पद्मावत के विरोध में ‘कलवी’ राजपूतों की मुख्य आवाज बनकर उभरे हैं और देश भर के विरोध प्रदर्शनों में सक्रिय रहे हैं. विरोध प्रदर्शन करने वाले संगठन में जौहर स्मृति संस्थान, राजपूत सभा, महिला संगठन और क्षत्राणी मंच प्रमुख हैं लेकिन ये सभी संगठन करणी सेना में खुद को विलय करके लोकतंत्र और अभिव्याक्ति की आजादी को कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. हालांकि करणी सेना का कोई दफ्तर या ऑफिस नहीं है. कलवी इसे अपने घर से या फिर जयपुर स्थित ‘हिन्दू सभा’ के कार्यालय से चलाते हैं.
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एसआरकेएस(SRKS) यानि श्री राजपूत करणी सेना की स्थापना 2006 में हुई थी. कलवी और बिल्डर अजीत सिंह ममडोली दोनो ही करणी सेना के संस्थापक होने का दावा करते हैं. 6 फीट से भी ज्यादा लम्बाई रखने वाले कलवी एक असफल राजनेता हैं. करणी सेना के गठन को लेकर दोनों की अपनी अपनी राय है. कलवी का कहना है कि ममडोली संगठन के सहसंस्थापक हैं वहीं ममडोली का कहना है कि कलवी बाद में आकर करणी सेना से जुड़े.
2008 के चुनाव में दोनों ने ही अपने-अपने रास्ते अलग कर लिए और संगठन दो धड़ों में बंट गया. दोनों के द्वारा अलग-अलग संख्या में लोगों को जोड़ने के बारे में भी वाद विवाद होता आया है. यह मामला कोर्ट में लंबित है.
कलवी के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि इनके पिता कल्याण सिंह चंद्रशेखर सरकार में मंत्री थे. 1993 में निर्दलीय रूप से और 1998 में बीजेपी के टिकट पर कलवी ने भी चुनाव लड़ा लेकिन दोनों ही बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा जिसके बाद पूर्व बीजेपी लीडर देवी सिंह भाटी के साथ राजपूतों समेत अगड़ी जातियों के लिए आरक्षण के लिए प्रदर्शन किया.
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2009 में कांग्रेस के टिकट पर भी कलवी को निराशा हाथ लगी इस दौरान अलग अलग राजनीतिक परिपाटी से गुजरते हुए कलवी ने 2015 में ‘श्रीराजपुताना संगठन’ से स्टेट प्रेसिडेंट सुखदेव सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके बाद सुखदेव सिंह ने ‘श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना(SRRKS)’ का गठन किया.
कलवी और ममडोली दोनों का मानना है कि करणीसेना के गठन के पीछे जाटों के साथ पारंपरिक टकराव और गतिरोध था.राजपूतों के हितों की रक्षा, उनके साथ दुर्भावना के खिलाफ लड़ना, राजपूत एकता और इतिहास की रक्षा के लिए बने संगठन का नाम करणी सेना उन्होंने करणी देवी माता के नाम पर रखा था जिनकी पूरे राजस्थान में पूजा की जाती है.
फिलहाल करणी सेना ‘पद्मावत’ के जरिये सियासत में अपनी धमक का आभास करा रही है जिसकी तपिश में पूरा उत्तर भारत झुलस रहा है.