मिशन 2019 पर खौफ के बादल, पीएम मोदी भी हुए बेचैन
नई दिल्ली। भाजपा भले ही पूरे देश पर कब्जा जमाने के बाद साल 2019 में फिर भगवा लहराने का दम भर रही हो, लेकिन अब उन पर भी खौफ का साया साफ़ दिखाई दे रहा है। हाल ही में बीते उपचुनावों में मिली हार के बाद अब दलित दंगल उनका अमंगल करता हुआ दिखाई दे रहा है। पार्टी के कई नेता ऐसे हैं जो बगावती सुर बुलंद कर रहे हैं।
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इससे पहले भी कुछ बातों से नाखुश रहे नेता पार्टी का दमन छोड़ चुके हैं। वहीं कई ऐसे हैं जो अपना दर्द दबाए हुए हैं। ऐसे में दलित मामले में हुई हिंसा ने पार्टी में शामिल दलित नेताओं को भी निराश किया है, जो भविष्य के लिहाज से अच्छा इशारा नहीं। इसलिए पीएम नरेंद्र मोदी ने खुद इस मामले में कदम उठाने का मन बनाया है।
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नवभारत टाइम्स के मुताबिक़ पीएम मोदी इस बाबत खुद पार्टी के दलित नेताओं से बात कर उन्होंने मनाने का जिम्मा उठाने वाले हैं।
पार्टी का यह भी मानना है कि इनमें से कुछ सांसद ऐसे भी हो सकते हैं, जिन्हें अगले चुनाव में अपना टिकट कटने का अंदेशा हो। इसके बावजूद अब उन्हें साधने के लिए पीएम मोदी खुद दखल देने वाले हैं।
पार्टी ने अब पीएम की मौजूदगी में दलित सांसदों को बुलाकर उनकी शिकायतों का समाधान करने की तैयारी की है।
पार्टी को यह भी अंदेशा है कि यदि इसी तरह पत्रों और नाराजगी का सिलसिला जारी रहा तो 2019 में भी बीजेपी के लिए भारी पड़ सकता है।
इसके अलावा कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों को लेकर भी पार्टी चिंतित है।
बता दें कि बीते एक सप्ताह के भीतर ही पार्टी के चार सांसद एक-एक करके प्रधानमंत्री को दलितों के मुद्दे पर पत्र लिख चुके हैं।
यही नहीं, बाद में इन सांसदों ने अपने पत्रों को सार्वजनिक भी कर दिया। यह सिलसिला आगे न बढ़े, इसी वजह से अब पार्टी सभी दलित सांसदों के लिए अलग से बैठक करने की योजना पर काम कर रही है।
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पार्टी को लग रहा है कि इस तरह के पत्र लिखने के सिलसिले को नहीं रोका गया तो इसका असर कर्नाटक विधानसभा चुनाव पर नजर आ सकता है।
कर्नाटक में दलित वोटरों का आंकड़ा लगभग 19 फीसदी के आसपास है। ऐसे में पार्टी नहीं चाहती कि बिहार की गलती फिर से दोहराई जाए।
इसी वजह से अब पार्टी ने इस अजेंडे पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने महासचिव भूपेन्द्र यादव और अन्य नेताओं के साथ बैठक भी की।
इस बैठक में रणनीति बनाई गई है कि लगातार किसी न किसी शिकायत को लेकर प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले सांसदों समेत अन्य सभी दलित सांसदों को एकसाथ बुलाया जाए और उनसे बातचीत करके उनकी नाराजगी को दूर किया जाए।
बीजेपी के लोकसभा और राज्यसभा में बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति और जनजाति के सांसद हैं। हालांकि प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले चारों ही सांसद, दूसरी पार्टियों से आए हैं। लेकिन इसके बावजूद पार्टी को लगता है कि अगर इन सांसदों को नहीं मनाया जाता तो इसका विपक्षी पार्टियां भी फायदा उठाएंगी।
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