उत्तराखंड बाढ़: धराली-हर्षिल में सेना और राहत टीमें बनीं जीवन रक्षक, NDMA ने शुरू की पुनर्निर्माण की तैयारी

उत्तराखंड के धराली और हर्षिल घाटी में बादल फटने और भूस्खलन से आई विनाशकारी बाढ़ ने भारी तबाही मचाई, लेकिन भारतीय सेना, वायुसेना, ITBP, NDRF, और BRO की टीमें दिन-रात राहत कार्य में जुटी हैं। फंसे हुए लोगों को बचाने, राहत सामग्री पहुंचाने और बुनियादी सुविधाओं को बहाल करने में ये टीमें जीवनदाता की भूमिका निभा रही हैं।

गुरुवार को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने लखनऊ में राज्य अधिकारियों के साथ आपदा की समीक्षा बैठक की। NDMA प्रमुख राजेंद्र सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार और गृह मंत्रालय उत्तराखंड के साथ मजबूती से खड़े हैं। उन्होंने बताया कि अगले सप्ताह एक अंतर-मंत्रालयी टीम प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर नुकसान का आकलन करेगी और राहत व पुनर्निर्माण की रणनीति तैयार करेगी। बैठक में सेना, वायुसेना, NDRF, BRO, ITBP, और मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों ने हिस्सा लिया, जहां राहत कार्यों की प्रगति, पुनर्निर्माण के लिए केंद्र से सहायता, और भविष्य की आपदाओं से निपटने की तैयारियों पर चर्चा हुई। NDMA सदस्य सैयद अता हसनैन, एसीईओ प्रशासन आनंद स्वरूप, और SEओ क्रियान्वयन राजकुमार नेगी भी मौजूद थे।

धराली और हर्षिल घाटी में सड़कें, पुल, और संचार नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त हो गए, जिससे लोग बाहरी दुनिया से कट गए थे। भारतीय सेना की इंजीनियर रेजीमेंट ने सैटेलाइट और रेडियो रिले संचार प्रणाली स्थापित कर फंसे लोगों को उनके परिजनों से जोड़ा। सैटेलाइट इंटरनेट के जरिए लोग अब वीडियो कॉल और मैसेज के माध्यम से संपर्क कर रहे हैं, जो सैकड़ों प्रभावितों के लिए मानसिक संबल बन रहा है।

आपदा की सूचना मिलते ही भारतीय वायुसेना ने तुरंत Chinook, Mi-17V5 हेलिकॉप्टर, C-295, और AN-32 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट को राहत कार्यों में लगाया। अब तक 226 नागरिकों को सुरक्षित निकाला गया, 130 NDRF, SDRF, और ITBP के जवान प्रभावित क्षेत्रों में उतारे गए, और करीब 20 टन राहत सामग्री हवाई मार्ग से पहुंचाई गई। वायुसेना की टीमें अभी भी ऑपरेशन मोड में हैं और जरूरत पड़ने पर उड़ानें जारी रख रही हैं। मताली हेलीपैड पर एक अस्थायी एविएशन बेस बनाया गया है, जहां से राहत सामग्री और मेडिकल टीमें तेजी से भेजी जा रही हैं।

धराली और मुखवा गांव के बीच भागीरथी नदी पर सेना की इंजीनियर टीम ने एक अस्थायी फूटब्रिज बनाया, जो अब दोनों गांवों के बीच आवागमन का एकमात्र साधन है। इस पुल के जरिए रेस्क्यू टीमें लोगों को निकाल रही हैं और दवाइयां, खाना, और अन्य जरूरी सामग्री पहुंचा रही हैं। BRO और सेना के इंजीनियर इस पुल की मजबूती और रखरखाव में जुटे हैं। गंगनानी में वैली ब्रिज बह जाने के बाद BRO ने नया पुल बनाने का सामान पहुंचा दिया है, और जल्द ही निर्माण शुरू होगा।

हर्षिल के ऊपरी क्षेत्र में भारी बारिश और भूस्खलन से बनी एक अस्थायी झील चिंता का विषय है। इसके टूटने से नीचे बसे गांवों को और नुकसान हो सकता है। NDMA के निर्देश पर सेना और राज्य एजेंसियों की संयुक्त टीम इस झील की निगरानी कर रही है। राज्य आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने बताया कि झील का निरीक्षण किया गया है, और फिलहाल पानी धीरे-धीरे निकल रहा है। जल निकासी की रणनीति तैयार की जा रही है ताकि बिना किसी खतरे के पानी को नियंत्रित किया जा सके।

रेस्क्यू ऑपरेशन में 225 से अधिक सेना के जवान, ITBP, NDRF, और SDRF की टीमें लगी हैं। NDRF ने पहली बार कैडावर और स्निफर डॉग्स को तैनात किया है, जो मलबे में दबे लोगों की तलाश में मदद कर रहे हैं। सेना की इंजीनियरिंग टीमें रीको रडार और विशेष मशीनरी का उपयोग कर रही हैं, जो मलबे में फंसे लोगों का पता लगाने में सक्षम हैं। हर्षिल में सेना का हेलीपैड 14 घंटे में ठीक कर लिया गया, जिससे हेलीकॉप्टरों के जरिए राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हर्षिल पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया और प्रभावितों को हर संभव मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने BRO और अन्य एजेंसियों के प्रयासों की सराहना की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी धामी से बात कर केंद्र सरकार की ओर से पूरी सहायता का भरोसा दिलाया। गंगोत्री में फंसे 307 तीर्थयात्रियों को ITBP ने सुरक्षित निकाला, जिन्हें हर्षिल हेलीपैड से मुक्वा पहुंचाया गया।

हालांकि, गंगोत्री नेशनल हाईवे के कई हिस्से बह गए हैं, और 163 सड़कें अवरुद्ध हैं, जिससे राहत कार्यों में बाधा आ रही है। BRO और प्रशासन सड़कों को बहाल करने में जुटे हैं। मौसम विभाग ने गुरुवार को उत्तरकाशी में भारी बारिश की चेतावनी दी है, जो राहत कार्यों को और चुनौतीपूर्ण बना सकती है। धराली में अब तक 10 मौतों की पुष्टि हुई है, और 50 से अधिक लोग, जिनमें 11 सेना के जवान शामिल हैं, लापता हैं।

यह आपदा धराली और हर्षिल की तस्वीर बदल चुकी है। मशहूर कल्प केदार मंदिर समेत कई इमारतें मलबे में दब गई हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी किनारे अवैध निर्माण और पर्यावरणीय असंतुलन ने नुकसान को बढ़ाया। फिर भी, सेना और राहत एजेंसियों की अथक मेहनत से प्रभावितों को नई उम्मीद मिल रही है।

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