जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें शपथ दिलाई। जस्टिस गवई ने पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना का स्थान लिया। वह देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि वह सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद या असाइनमेंट स्वीकार नहीं करेंगे।

जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अपने पिता की तरह राजनीति में शामिल होंगे, तो जस्टिस गवई ने कहा, “मेरी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। मैंने निर्णय लिया है कि सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद या असाइनमेंट नहीं लूंगा। सीजेआई के पद की तुलना में कोई अन्य पद, यहां तक कि राज्यपाल का पद भी, छोटा है।”
पृष्ठभूमि और परिवार
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वह प्रसिद्ध राजनेता और बिहार व केरल के पूर्व राज्यपाल आरएस गवई के पुत्र हैं। उनका परिवार डॉ. बीआर आंबेडकर के आदर्शों को बढ़ावा देने में गहराई से संलग्न रहा है। उनके पिता एक प्रमुख आंबेडकरवादी और पूर्व सांसद थे। जस्टिस गवई अपने गांव से गहरा लगाव रखते हैं और साल में तीन बार—अपने पिता की जयंती, पुण्यतिथि और गांव के वार्षिक मेले के दौरान—वहां जाते हैं।
करियर
जस्टिस गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत शुरू की और बॉम्बे हाईकोर्ट तथा इसके नागपुर खंडपीठ में प्रैक्टिस की। 17 जनवरी 2000 को उन्हें नागपुर खंडपीठ के लिए सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया। 14 नवंबर 2003 को वह बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बने और नवंबर 2005 में स्थायी न्यायाधीश बने। 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
पिछले छह वर्षों में, जस्टिस गवई ने लगभग 700 खंडपीठों में हिस्सा लिया, जिनमें संवैधानिक और प्रशासनिक कानून, सिविल, आपराधिक, वाणिज्यिक विवाद, मध्यस्थता, बिजली, शिक्षा और पर्यावरण कानून जैसे विविध विषयों पर सुनवाई हुई। उनका कार्यकाल 23 नवंबर 2025 को समाप्त होगा।