प्रतिबंधित होने के बावजूद भारत में 58,000 मैला ढोने वाले Manual Scavengers, 97% हैं दलित

इंसानों द्वारा मैला ढोने की प्रथा पर भारत में साल 2013 में प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन हमारे समाज का एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जो इस कृत को आज भी करता है। इस सम्बंध में RJD के सांसद मनोज झा (Manoj Jha) ने मंत्रालय से पूछा था कि, “सिर पर मैला ढोने के काम में शामिल व्यक्तियों की जाति-आधारित अलग अलग संख्या क्या है, उन्हें आर्थिक प्रणाली में शामिल करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और इस प्रथा को पूरी तरह से प्रतिबंधित करने के लिए सरकार ने क्या क्या प्रयास किए हैं।”

इस सवाल का जवाब देते हुए मंत्रालय ने बताया कि, “क़ानून के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान के लिए जाति के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं होगा, लेकिन फिर भी उनकी पहचान करने के लिए अधिनियम के प्रावधानों के तहत ही सर्वेक्षण कराए गए हैं। जिन 58,098 व्यक्तियों की मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान हुई है, उनमें से सिर्फ 43,797 व्यक्तियों के जाति से संबंधित आंकड़े उपलब्ध हैं। पाया गया कि इनमें से 42,594, यानी 97 प्रतिशत से भी ज़्यादा मैनुअल स्कैवेंजर अनुसूचित जातियों से संबंध रखते हैं। इसके अलावा 421 अनुसूचित जनजातियों से, 431 अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) से और 351 अन्य वर्गों से हैं। इस काम में लगे लोगों को दूसरे कामों में लगवाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए एक परिवार में एक पहचानशुदा मैनुअल स्कैवेंजर को 40,000 रुपयों की एकबारगी नकद सहायता दी जाती है। अभी तक इस योजना के तहत सभी 58,098 व्यक्तियों को यह नकद राशि दे दी गई है। इसके अलावा, मैनुअल स्कैवेंजरों और उनके आश्रितों को 2 साल तक ‘कौशल विकास प्रशिक्षण’ दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उन्हें हर महीने 3,000 रुपयों का वजीफा भी दिया जाता है। इस तरह का प्रशिक्षण अभी तक सिर्फ 18,199 लोगों को दिया गया है। अगर कोई मैनुअल स्कैवेंजर स्वच्छता से संबंधित किसी परियोजना या किसी स्वरोजगार परियोजना के लिए कर्ज़ लेना चाहता है तो उसे 5 लाख रुपयों तक की पूंजीगत सब्सिडी दी जाती है। ऐसी सब्सिडी अभी तक सिर्फ़ 1,562 लोगों को दी गई है।”

मंत्रालय ने कहा की, “हाथ से मैला उठाने की प्रथा को 2013 में लाए गए एक क़ानून (MS अधिनियम) के तहत प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसके बावजूद मंत्रालय द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में सामने आया है कि अभी भी देश में 58,098 लोग इस काम में लगे हुए हैं।”

लेकिन लोक सभा में दिए गए एक सवाल के जवाब में इस मंत्रालय ने 2021 में कहा था की, “58,098 मैनुअल स्कैवेंजरों की संख्या 2013 से पहले की है और 2013 में MS अधिनियम के लागू होने के बाद इसे एक प्रतिबंधित गतिविधि घोषित कर दिया गया है। अब देश में मैनुअल स्कैवेंजरों की गणना नहीं की जाती है।”

इस प्रथा के ख़िलाफ़ काम कर रहे एक्टिविस्टों का हमेशा से यह मानना रहा है कि यह काम दलितों से ही करवाया जाता है, और ताज़ा सरकारी आंकड़े इन दावों की सच्चाई बयाँ कर रहे हैं।

मैला ढोने की प्रथा को ख़त्म करने के लिए काम करने वाली एक संस्था ‘सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन’ ने यह दावा किया है कि, “देश में अभी भी 26 लाख ड्राई लैट्रिन हैं, जिनकी सफ़ाई का जिम्मा किसी ना किसी व्यक्ति पर ही होता है। इसके अलावा 36,176 मैनुअल स्कैवेंजर देश के रेलवे स्टेशनों पर रेल की पटरियों पर गिरे शौच को साफ़ करते हैं। 7.7 लोगों को नालों और गटरों को साफ़ करने के लिए उनमें भेजा जाता है। उन्हें आवश्यक सुरक्षा उपकरण भी नहीं दिए जाते। नालों में ज़हरीली गैसें होती हैं, जिन्हें सूंघने की वजह से अक्सर सफ़ाई करने वालों की मौत हो जाती है। अभी तक ऐसी 1,760 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं।”

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