
भगवान परशुराम सात चिरंजीवियों अश्वत्थामा, राजा बलि, परशुराम, विभीषण, महर्षि व्यास, हनुमान, कृपाचार्य इनमें से एक हैं। भगवान विष्णु के छठे अवतार एवं ब्राह्म्ण जाति के कुल गुरु परशुराम,जिनकी जयंती वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया के दिन मनाई जाती है। मत्स्य पुराण के अनुसार इस दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय रहता है यानि इस दिन किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता है। सतयुग का प्रारंभ अक्षय तृतीया से ही माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव के परम भक्त परशुराम न्याय के देवता हैं,जिन्होंने 21 बार इस पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन किया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ। यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को एक बालक का जन्म हुआ था। वह भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण करने के कारण वह परशुराम कहलाए।
जब माता पृथ्वी ने श्री विष्णु से की विनती
पुराणों के अनुसार कार्तवीर्य अर्जुन नाम का राजा था जो महिष्मती नगरी पर शासन करता था। राजा कार्तवीर्य और उसके अनेकों सहयोगी क्षत्रिय राजा मित्र विनाशकारी कार्यों में लिप्त थे और वह सब मिलकर अकारण ही निर्बलों पर अत्याचार करते थे। उनके अनाचार और अत्याचार से सभी जगह हाहाकार मच गया,निर्दोष जीवों के लिए जीना कठिन हो गया। इस सबसे दुखी होकर माता पृथ्वी ने भगवान नारायण से पृथ्वी और निर्दोष प्राणियों की सहायता करने के लिए विनती की। माता पृथ्वी की मदद के लिए भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में देवी रेणुका और ऋषि जमदग्नि के पुत्र के रूप में अवतार लिया।भगवान परशुराम ने कार्तवीर्य अर्जुन तथा सभी अनाचारी राजाओं का अपने फरसे से वध कर माता पृथ्वी को उनकी हिंसा और क्रूरता से मुक्त कराया।
क्षत्रियों राजाओं का 21 बार किया संहार-
परशुराम जी का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण इत्यादि अनेक ग्रन्थों में किया गया है। जब परशुराम का धरती पर जन्म हुआ तब उस समय दुष्ट प्रवृत्ति के राजाओं का बोलबाला था। वे अहंकारी और दुष्ट क्षत्रियों का पृथ्वी से 21 बार संहार करने के लिए प्रसिद्ध हैं एवं वह दुष्टता करने वालों को क्षमा नहीं करते थे। भगवान परशुराम वह कर्ण के गुरु भी थे।