
ग़लतियों और प्यार में क्या चीज कॉमन होती है. वहीं दोनों ही की नहीं जातीं हो जाती हैं. ऐसी ही ग़लतियां दो सांसदों से हुई. 17वीं लोकसभा के पहले ही दिन. एक भाजपा एक कांग्रेस सांसद. एक भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर.
पहले प्रज्ञा ठाकुर की बात कर लेते हैं. उन्होंने सांसद पद की शपथ ली तो विवाद हो गया. नाम को लेकर. विवाद ये नहीं था कि उनका नाम साध्वी प्रज्ञा है या प्रज्ञा ठाकुर. विवाद ये था कि प्रज्ञा ने नाम के आगे अपने आध्यात्मिक गुरु का नाम लगाया. इसी पर अपोजीशन वाले बमक गए. नारेबाजी भी हुई.
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प्रज्ञा ठाकुर शपथ लेने आईं, संस्कृत में शपथ लेनी शुरू की. अपने नाम के आगे स्वामी पूर्ण चेतनानंद अवधेशानंद गिरि का नाम लिया. अपोजीशन ने कहा, इसकी परमिशन नहीं मिलनी चाहिए. प्रज्ञा का बचाव ये था कि इस नाम का ज़िक्र, मैंने शपथ लेने के लिए जो फॉर्म भरा था, उसमें था.
बीच में आए प्रोटेम स्पीकर. बोले, चुनाव आयोग ने जो सर्टिफिकेट जारी किया है. उसमें जो नाम है. वही जाएगा.
देखा जाये तो हलफनामे में प्रज्ञा ठाकुर के पिता का नाम सी. पी. सिंह है. आप शपथ लेते हुए अपने नाम के साथ अपने पिता का नाम ले सकते हैं. यथा, ‘मैं नरेंद्र दामोदरदास मोदी’ यानी नियम कायदे के हिसाब से ‘साध्वी प्रज्ञा सी पी सिंह ठाकुर’ कहा जा सकता था. प्रज्ञा ठाकुर ने ‘साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर स्वामी पूर्ण चेतनानंद अवधेशानंद गिरी’ कहा. जो रिकॉर्ड के हिसाब से उनके पिता का नाम नहीं है. इसी वजह से आपत्ति हुई.
वहीं दो बार आपत्ति होने पर तीसरी बार में प्रज्ञा ठाकुर ने नाम के आगे वाला पार्ट पढ़ा और शपथ हो सकी. अंत में भारत माता की जय के नारे के साथ अपनी बात पूरी की. जिस तरह के एक्सप्रेशन प्रज्ञा ठाकुर के थे, लग रहा था . अपोजीशन वालों को वो कभी ‘मन से माफ़’ नहीं कर पाएंगी.
ऐसी ही गड़बड़ तब भी हुई, जब अमेठी के पूर्व सांसद और वायनाड के सांसद राहुल गांधी शपथ लेने गए. संसद सदस्य की शपथ ली. फिर वापस अपनी जगह पर लौटने लगे. लेकिन इन दो बातों के बीच एक तीसरी बात भी होनी होती है, रजिस्टर पर दस्तखत करना होता है. राहुल वो भूल गए. इस प्रोसेस की रक्षा को आगे आए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह. उनको याद दिलाने का काम किया.