
उत्तराखंड में मोदी लहर पर सवार भाजपा ने नए चुनावी कीर्तिमान गढ़ने के साथ कई मिथक तोड़ दिए। लोकसभा चुनाव में भाजपा पहली पार्टी बन गई है,
जिसके खाते में 60 प्रतिशत से अधिक मत आए। भगवा ब्रिगेड यह मिथक तोड़ने में भी कामयाब रही कि प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार रही है, उसे लोकसभा चुनाव में हार देखनी पड़ती है। नतीजे स्पष्ट कर रहे हैं कि सैन्य बहुल प्रदेश में जनता मोदी सरकार के राष्ट्रवाद के मुद्दे पर सवार रही।
उधर, कांग्रेस के सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (अफस्पा) हटाने और राफेल समेत घोषणा पत्र के तमाम वायदे जन भावनाओं के विपरीत रहे। इसी का नतीजा है कि कांग्रेस के प्रदेश में सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत की प्रदेश में सबसे बड़ी हार हुई, जबकि प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी लाज नहीं बचा पाए।
भाजपा ने सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट पर एयर स्ट्राइक के मुद्दे को राष्ट्रवाद से जोड़कर उत्तराखंड में जीत की मजबूत नींव रख दी थी। वर्ष 2014 के मुकाबले इस बार जीत हार के अंतर में जोरदार वृद्धि से साफ है कि भाजपा सैन्य बहुल प्रदेश में जनता को राष्ट्रवाद से जोड़ने में कामयाब रही।
कांग्रेस ने राफेल रक्षा सौदे जैसे मुद्दों को उत्तराखंड में हवा दी। राहुल गांधी शहीदों के परिवारों से मिले, लेकिन राष्ट्रवाद का तोड़ नहीं निकाल पाए। माना जा रहा है कि पार्टी को सर्वाधिक नुकसान उसके चुनावी घोषणा पत्र में अफस्पा और धारा 370 की घोषणा से हुआ। इसके बावजूद कांग्रेस उम्मीद लगाए हुए थी कि कम से कम दो सीटों नैनीताल और टिहरी में उसे जीत मिलेगी, जबकि अल्मोड़ा में कांटे की टक्कर रहेगी।
नैनीताल : हरीश रावत की सबसे बड़ी हार
नैनीताल से पार्टी ने प्रदेश में अपने सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत को उतारा। रावत पहले हरिद्वार से दावेदार थे, लेकिन अंतिम समय में भाजपा के नैनीताल से प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को उतार कर हरीश रावत ने जिद कर नैनीताल का टिकट ले लिया। कांग्रेस की प्रदेश में करारी हार के कारणों में बड़ी वजह हरीश रावत का नैनीताल पलायन भी माना जा रहा है। इससे दो ओर सीटों हरिद्वार और अल्मोड़ा का समीकरण बिगड़ गया। नतीजा यह हुआ कि प्रदेश में सबसे बड़ी हार हरीश रावत को झेलनी पड़ी। उनके सारे गणित गड़बड़ा गए और करीब सवा तीन लाख मतों के अंतर से भट्ट ने उन्हें मात दी। भट्ट की लोकसभा चुनाव में पहली जीत का बड़ा कारण संगठन की पूरी ताकत झोंकने के साथ भगत सिंह कोश्यारी का साथ भी रहा।
पौड़ी : गुरु के पुत्र पर शिष्य की विजय
भाजपा को दूसरी बड़ी जीत गढ़वाल में मिली। यहां पार्टी ने सांसद बीसी खंडूड़ी के चुनाव लड़ने से इनकार करने पर उनके राजनीतिक शिष्य तीरथ सिंह रावत पर विश्वास जताया। विस चुनाव में तीरथ ने टिकट काटने के बाद भी पार्टी में आस्था जताई थी, इसी का ईनाम उन्हें मिला। तीरथ के सामने उनके राजनीतिक गुरु बीसी खंडूड़ी के ही पुत्र मनीष खडूड़ी को कांग्रेस ने टिकट दिया था। गुरु शिष्य और गुरु पुत्र के बीच की इस जंग से बीसी खंडूड़ी दूर रहे, इसका नुकसान पुत्र मनीष को हुआ। सैनिकों और पूर्व सैनिकों की सर्वाधिक संख्या वाली सीट पौड़ी पर राष्ट्रवाद का मुद्दा सर्वाधिक हावी रहा।
टिहरी : राजपरिवार का वर्चस्व बरकरार
टिहरी में भाजपा प्रत्याशी माला राज्य लक्ष्मी शाह की जीत राष्ट्रवाद के साथ जनता की राजपरिवार के प्रति आस्था प्रतीत हो रही है। माला के खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी और प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह रवाईं जौनसार में अपनी मजबूत पकड़ के बावजूद करीब तीन लाख वोटों से हारे। तीसरी बार कांग्रेस की टिहरी में हार ने एक बार फिर साबित किया है कि राजपरिवार का वर्चस्व बरकरार है।
हरिद्वार : राष्ट्रवाद व हिंदुत्व का मिला फायदा
हरिद्वार सीट में भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक और कांग्रेस के अंबरीश कुमार में मुकाबला एकतरफा रहा। यहां अल्पसंख्यक वोटों के बावजूद कांग्रेस खास नहीं कर पाई। भाजपा को राष्ट्रवाद के साथ हिंदुत्व का फायदा इस सीट पर मिला है। इसी के चलते निशंक ने पिछली बार के मुकाबले अपनी जीत के अंतर का रिकार्ड सुधार लिया है।
अल्मोड़ा : संगठनात्मक ताकत ने दिलाई जीत
अल्मोड़ा में भाजपा प्रत्याशी और केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा के खिलाफ चुनावों की शुरुआत में सत्ता विरोधी लहर थी, लेकिन भाजपा की संगठनात्मक ताकत ने अजय को जीत दिलवा दी। हरीश रावत के नैनीताल से लड़ने के चलते कांग्रेस के अल्मोड़ा प्रत्याशी प्रदीप टम्टा को नुकसान पहुंचा। अल्मोड़ा हरीश की पुरानी सीट है, जिसके चलते नैनीताल में हरीश के पक्ष में प्रचार करने के लिए बड़ी संख्या में कांग्रेस अल्मोड़ा से पहुंचे। इससे प्रदीप का नेटवर्क कमजोर पड़ गया।