हौसलों के आगे हारी दिव्यांगता : हाँथ न होते हुए पैर से लिख कर दी बोर्ड की परीक्षा , प्रथम श्रेणी में हुआ पास !
रिपोर्ट – आशीष सिंह
लखनऊ : इंसान के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं । बस बुलंद इरादे और सच्ची लगन की जरूरत होती है । इसी बात की जीतीजागती मिसाल है तुषार ।
दोनों हाथों से दिव्यांग तुषार ने यूपी बोर्ड हाईस्कूल परीक्षा में अपने पैरों से प्रश्नों को हल किया है । तुषार ने परीक्षा को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करते हुए ऐसी कृति स्थापित की जिसकी चर्चा लखनऊ के साथ हर जगह हो रही है ।
ऐसा करते हुए तुषार ने न केवल दिव्यांगता को पीछे छोड़ दिया बल्कि उन छात्रों के लिए एक उदाहरण भी पेश किया जो नक़ल के भरोसे परीक्षा में बैठते हैं और फिर उन्हें निराशा हाथ लगती है । इस होनहार ने लाइव टुडे से अपने संघर्ष और सफलता की कहानी को साझा किया ।
अमौसी के अवध विहार कालोनी में रहने वाले राजेश विश्वकर्मा के पुत्र तुषार विश्वकर्मा के दोनों हाथ पोलियो से ग्रस्त हैं, लेकिन तुषार और उनके घरवालों ने इस बात को लेकर कभी भी हीनभावना नहीं पाली ।
यहाँ पेड़ से निकलकर दर्शन देते हैं हनुमान जी, करते हैं सारी मुश्किलों का समाधान
बेटे के अंदर पढ़ने की ललक और कुछ कर गुजरने की चाहत ने आज परिवार का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया । पोलियो ग्रस्त होने के कारण तुषार हाँथ से लिख नहीं पाता था । धीरे-धीरे पैर से लिखना शुरू किया तो हाथों की जगह पैरों ने ले ली ।
संघर्ष की इस कहानी जब को तुषार के पिता से जानने का प्रयास किया गया तो वह भाव-विभोर हो गए और उनके शब्द आंसू बनकर आँखों से निकल पड़े । 67 प्रतिशत अंकों के साथ हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले तुषार इंजीनियर बनना चाहते हैं।
लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए उनके सामने तमाम चुनौतियाँ हैं । उनकी मां सुमन विश्वकर्मा ने बताया कि गरीबी के चलते उनके सामने कई तरह की समस्याएं हैं । तुषार की पढ़ाई आगे चल सके इसके लिए उन्हें बड़ी चिंता रहती है ।
तीन भाई-बहनों में तुषार सबसे छोटा है । दोनों बच्चे सामान्य हैं लेकिन तुषार के दोनों हाथ जन्मजात तिरछे हैं । अपने भाई और बहन को स्कूल जाता देख वह भी साथ में स्कूल जाने की ज़िद्द करता था ।
पहले तो घर पर ही उसे पढ़ाने की कोशिश की गई लेकिन उसकी ज़िद्द के आगे हार मानकर उसे भी स्कूल भेज दिया गया । हाथ काम न करने से शुरुआत में काफी परेशानी हुई । हालाँकि समय के साथ-साथ तुषार पैर से लिखने लगा और आज वह फर्राटे के साथ हिंदी-अंग्रेजी भाषा लिख सकता है ।
मशहूर कवि सोहनलाल द्विवेदी ने कहा था –
“लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती”
इस कविता को तुषार ने अपने जीवन में साकार कर दिखाया है और तुषार के पूरे परिवार को तुषार पर गर्व है !