
हिंदू कैलेंडर के हिसाब से यह हिन्दी का आश्विन महीना चल रहा है। इस महीने के शुक्ल पक्ष को पूर्णिमा मनाई जाती है। हिंदू धर्म में हर महीने मनाने वाली पूर्णिमा का विशेष स्थान है। चूकि नवरात्र के बाद थोड़ी-थोड़ी ठंड की शुरुआत हो जाती है इसलिए इस पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा का नाम से भी जाना जाता है। इस दिन व्रत रखके पूजा करने की विशेष प्रधान है। इस साल यह व्रत 23-24अक्टूबर दोनों दिन रखा जा रहा है।
इस रात्रि में चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। उज्ज्वल चांदनी में सारा आसमान धुला नजर आता है, हर तरफ चन्द्रमा के दूधिया प्रकाश में प्रकृति नहा उठती है। मान्यता है कि इस रात में खीर बनाकर रातभर चंद्रमा के प्रकाश में आसमान के नीचे रखा जाता है। सुबह इस खीर को प्रसाद के रूप में खाने से आशीवार्द प्राप्त होता है। इस खीर को अमृत का दर्जा दिया गया है।
पौराणिक मान्यता
नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और माता यह भी देखती है- कि कौन जाग रहा है? यानि अपने कर्त्तव्यों को लेकर कौन जागृत है? जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर असीम कृपा होती है। प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह व्रत लक्ष्मी जी को संतुष्ट करने वाला है।
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ज्योतिषीय उपाय
ज्योतिषीय मतानुसार जो इस रात लक्ष्मी जी की षोडशोपचार विधि से पूजा करके श्री सूक्त का पाठ, कनकधारा स्त्रोत, विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करते हैं, उनकी कुण्डली में धनयोग नहीं होने पर भी माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं।
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इस दिन भगवान रजनीश अर्थात् चन्द्रमा की भी पूजा अर्चना करनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है, कुआंरी कन्याएं इस दिन सुबह सूर्य और चन्द्र देव की पूजा अर्चना करें तो उन्हें मनचाहे वर की प्राप्ति होती है। भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत एव दिव्य रासलीलाओं का आरम्भ भी शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। पूर्णिमा की श्वेत उज्जवल चांदनी में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी नौ लाख गोपिकाओं के साथ स्वंय के ही नौ लाख अलग-अलग गोपों के रूप में आकर ब्रज में महारास रचाया था।
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चंद्र किरणों से बरसता है अमृत
इस रात चन्द्रमा की किरणों से अमृत तत्व बरसता है, चन्द्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ पृथ्वी पर शीतलता, पोषक शक्ति एंव शांति रूपी अमृत वर्षा करते हैं। चंद्रमा की उज्ज्वल किरणें जब फसलों, पेड़-पौधों, पेय एंव खाद्य पदार्थो मंम पड़ती हैं तो इनमें अमृत्व का प्रभाव आ जाता है और ये जीवनदायिनी होकर जीव-जगत को आरोग्य प्रदान करती है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है-
पुष्णामि चौषधिः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्यमकः।।
“मैं रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चंद्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ।“
इस दिन क्यों बनाते हैं खीर
शरद पूर्णिमा की शीतल चाँदनी में खीर रखने का विधान है, खीर में मिश्रित दूध, चीनी और चावल के कारक भी चन्द्रमा ही है, अतः इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। 3-4 घंटे तक खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है, जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट और कांतिवान हो जाता है। प्राकृतिक चिकित्सालयों में तो इस खीर का सेवन कुछ औषधियां मिलाकर दमा के रोगियों को भी कराया जाता है। यह खीर पित्तशामक, शीतल, सात्विक होने के साथ वर्ष भर प्रसन्नता और आरोग्यता में सहायक सिद्ध होती है। इससे चित्त को शांति मिलती है और साथ ही पित्तजनित समस्त रोगों का प्रकोप भी शांत हो जाता है। इस रात्रि में चन्द्रमा की तरफ एकटक निहारने से या सुई में धागा पिरोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। चन्द्रमा की पूर्ण आभा अधिक अनुराग उत्पन्न करते हुए जड़ता में भी चेतनता का भाव उत्पन्न कर देती है। शरद पूर्णिमा को की गई पूजा-अर्चना व्यक्ति के नीरस सूखे जीवन में भी प्रेम अनुराग का रस घोल देती है।