विशेष: मजबूत इरादे वाली स्वप्ना बर्मन की सफलता की कहानी हर युवा के लिए पढ़नी है जरुरी

कोलकाता। एशियाई खेलों में सोना जीत चुकीं भारत की पहली हेप्टेथलीट स्वप्ना बर्मन को अपनी कामयाबी हासिल करने से पहले काफी बुरे दौर का सामना करना पड़ा था। लेकिन अत्यंत गरीबी और शारीरिक विकृति का दर्द उसकी इस सफलता की राह में बाधक नहीं बन सका। हालांकि 21 वर्षीया इस एथलीट की प्राथमिकता में सोने का तमगा हासिल करने से कहीं ज्यादा सरकारी नौकरी हासिल करना था।

स्वप्ना बर्मन

स्वप्ना ने बातचीत में कहा, “मैं जब अपने मुहल्ले में ऊंची कूद का अभ्यास करती थी और स्थानीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी तब मेरा एक ही लक्ष्य था कि किसी तरह कोई सरकारी नौकरी मिले। उस समय वही मेरा सपना था।”

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स्वप्ना अपने माता-पिता की चार संतानों में सबसे छोटी है। उनके माता-पिता को अभी तक अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उत्तर बंगाल में राजबोंशी जनजाति से आने वाली स्वप्ना की मां नौकरानी का काम करती थी। इसके अलावा वह चाय बगान में भी काम करती थीं।

सात साल पहले लकवाग्रस्त होकर बिस्तर पकड़ने से पहले स्वप्ना के पिता पंचानन बर्मन वैन रिक्शा चलाते थे।

स्वप्ना ने बताया, “आजीविका चलाने के लिए मेरे अन्य तीन भाई-बहन संघर्ष करते थे। मैं सबसे छोटी हूं। इसलिए मेरे पिता ने सोचा कि मैं खेलों से कुछ कमाऊं तो उससे परिवार को मदद मिलेगी।”

अगस्त में हुए एशियाई खेलों के दौरान दो दिन के कार्यक्रम में सात दौर के कड़े मुकाबले में कुल 6,026 अंक हासिल कर अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली स्वप्ना ने न सिर्फ वित्तीय बाधाओं को पार किया, बल्कि अपने दोनों पैरों की छह अंगुलियों की परेशानियों को भी मात दी। उसने कहा, “मेरी बस एक ही ख्वाहिश थी कि कोई नौकरी मिले।”

स्वप्ना ने कहा, “मेरा सपना अब अपने देश को आगे ले जाना और आप सबको गौरवान्वित करना है।” उन्होंने कहा कि उनके साथ अब अलग तरह से बर्ताव नहीं होना चाहिए, क्योंकि अभी तो सफर की शुरुआत ही हुई है।

जकार्ता में दांत के संक्रमण से होने वाले दर्द को कम करने के लिए उसने दायें गाल पर फीता बांध कर स्पर्धा में हिस्सा लिया था।

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उन्होंने बताया, “अपनी स्पर्धा से पहले मैं कुछ नहीं खा पाई थी। मैं इतना बीमार थी कि आपको बता नहीं सकती। मैं सिर्फ यह जानती थी कि मुझे जीतना है, क्योंकि मेरे वर्षो का संघर्ष इसी पर निर्भर था।”

स्वप्ना के इस सफर की शुरुआत घोषपारा गांव जाने वाली धान के खेतों की पंगडंडी से हुई, जहां उन्होंने पहली बार दौड़ लगाई थी।

ट्रैक व फील्ड एथलीट हरिशंकर रॉय को भी प्रशिक्षण दे चुके सुभाष सरकार लंबे समय तक स्वप्ना के कोच रहे हैं। उन्होंने अपनी यादों को ताजा करते हुए कहा, “मैंने सबसे पहले 2011 में जलपाईगुड़ी में स्वप्ना बर्मन को एक झलक देखा था। वहां मेरे कुछ विद्यार्थी थे, जिन्होंने मुझसे कहा, सर, इसे अपने साथ कोलकाता ले जाइए। वह बहुत अच्छी है।”

सरकार 1992 से भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के प्रशिक्षिक रहे हैं। उन्होंने कहा कि छोटी और गठीली कद-काठी की स्वप्ना से शुरुआत में वह प्रभावित नहीं हुए, लेकिन रायकोटपारा स्पोíटंग एसोसिएशन के सचिव समीर दास ने उनसे स्वप्ना को अपने साथ ले जाने का आग्रह किया। साई के पूर्वी केंद्र में 2012 में पहुंचने से पहले यहीं प्रशिक्षण लेती रही थीं।

सरकार बताया कि समीर का इसी साल जून में निधन हो गया, लेकिन उन्होंने चेतावनी दी थी कि स्वप्ना को अगर उचित मार्गदर्शन व प्रोत्साहन नहीं मिलेगा तो वह अपनी मां के साथ चाय बगान में काम करने लगेगी। वर्ष 2011 में लुधियाना में स्कूल स्तर की स्पर्धा में स्वप्ना को ऊंची कूद में स्वर्ण पदक मिला। कोच सरकार फिर भी प्रभावित नहीं थे, लेकिन अगले कुछ साल में स्वना ने आकर्षक प्रदर्शन किए।

सरकार ने कहा, “मैं उसकी प्रतिभा को देखकर हैरान था। वर्ष 2012 में उसने ऊंची कूद में 57,61,63,67 और 71 अंक हासिल किए। उसने ऊंची कूद में जूनियर स्तर की राष्ट्रीय स्पर्धा में दो-तीन बार रिकॉर्ड कायम किए। वह औसत से बेहतर थी।”

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सरकार उसके बाद स्वप्ना को ऊंची कूद से हेप्टेथलॉन में ले आए। उन्होंने कहा, “उसके कद को लेकर ऊंची कूद में थोड़ी चिंता थी, लेकिन उसमें संभावना देखकर मुझे पक्का विश्वास था कि वह इसमें एशियाई खेल में पदक जीतेगी। इसलिए मैंने उसे हेप्टेथलॉन में स्थानांतरित कर दिया।”

वर्ष 2013 में स्वप्ना ने अपनी पहली ही स्पर्धा में गुंटूर में रजत पदक हासिल किया। सरकार ने बताया कि उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

स्वप्ना 17 साल की उम्र में 17वीं फेडरेशन कप सीनियर एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शामिल हुई और उसने 5,400 अंक हासिल कर दक्षिण कोरिया में आयोजित होने वाले एशियाई खेलों के लिए क्वालीफाई किया। वर्ष 2014 के एशियाई खेलों में वह पांचवें स्थान पर रही।

लेकिन सामाजिक समस्याओं और पीठ की चोट के कारण 2015 से 2016 के बीच वह खेल से बाहर रही। वह वापस घर लौट चुकी थी और दोबारा मैदान में नहीं उतरने का मन बना चुकी थी।

लेकिन कोच सरकार उसे दोबारा खेल में लेकर आए और वह 2017 में एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनयशिप में सोना जीतने में वह कामयाब रही।

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एशियाई खेलों से पहले सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा था और स्वप्ना 6,200 अंक का दायरा पार करने को लेकर आश्वस्त थी, लेकिन पटियाला में राष्ट्रीय शिविर के दौरान टखने की चोट, घुटने की नस में खिंचाव और पेट के निचले हिस्से में तकलीफ के कारण उसके अभियान पर एक बार फिर खतरे के बादल छा गए थे।

हालांकि सरकार ने कहा कि इस बार वह हार नहीं मानने वाली थी, जबकि एथलेटिक्स फेडरेशन के अधिकारी भी उसके फिटनेस को लेकर आश्वस्त नहीं थे।
स्वप्ना का अगला लक्ष्य 2020 का ओलंपिक है। हालांकि 2019 में वह किसी बड़ी स्पर्धा में हिस्सा नहीं ले पाएगी, क्योंकि उसे जल्द स्वस्थ होने की आवश्यकता है।

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