कर्नाटक का गठबंधन तो है एक बहाना, असली मकसद तो है कांग्रेस को मजबूत बनाना

नई दिल्ली| कर्नाटक में कांग्रेस और जनता दल के गठबंधन से बनी सरकार से कांग्रेस फूली नहीं समा रही। इसी से देश में अपना राज कायम करने का सपना अब कांग्रेस को सच होता दिख रहा है लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है जितना कांग्रेस समझ रही है। एक तरफ जहां राहुल कांग्रेस की लुटिया डुबाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे थे, वो भी इस समय अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूजा-पाठ का सहारा लेते नजर आ रहें हैं। वैसे तो कांग्रेस के पास प्रधानमंत्री पद के लिए कोई मजबूत चेहरा नजर नहीं आ रहा था। तो कांग्रेस ने अब इस पद के शरद पवार को अपना उम्मीदवार बताना शुरू कर दिया है।

कर्नाटक का गठबंधन तो है एक बहाना, असली मकसद तो है कांग्रेस को मजबूत बनाना

आने वाले कुछ दिनों में चुनाव की साफ तस्वीर आ जाएगी। ऐसे में क्षेत्रीय दलों को खुलकर मोदी सरकार खिलाफ जाने से होने वाले नफे-नुकसान का जायजा लेना है। इसी बीच महागठबंधन में प्रधानमंत्री पद के स्वघोषित दावेदारों में ममता बनर्जी और मायावती का नाम है। उन्हें जवाब देने के लिए कांग्रेस ने शरद पवार का नाम आगे कर दिया है। कांग्रेस का साथ मिलने से पवार खुद को फ्रंट लाइन में बनाए रखने की कोशिश में हैं।

पिछले दिनों मुंबई में हुई अपनी पार्टी की बैठक के बाद पवार ने विपक्ष की राजनीति को लेकर दो अहम बातें कहीं थीं। उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद के दावेदार को लेकर कोई चर्चा नहीं होगी। जिसका साफ मतलब है कि दावेदार घोषित करने की जरुरत नहीं है। दूसरी बात उन्होंने कही कि प्रधानमंत्री पद को लेकर सबसे बड़ी पार्टी फैसला करेगी। सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी का मतलब कांग्रेस माना जा रहा है।
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माया और ममता को पीछे छोड़ शरद पवार होंगे PM पद के दावेदार-
सबसे बड़ी पार्टी द्वारा प्रधानमंत्री पद का फैसला करने वाला बयान देने का मतलब ममता और मायावती को यह संदेश देना था कि वह अभी खुद को दावेदार ना समझें। इससे कांग्रेस को यह फायदा होगा कि दोनों लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस की बात सुनेंगे और सीटों को लेकर मोल-भाव नहीं करेंगे। वहीं पवार को यह फायदा होगा कि इस पद के लिए उनकी दावेदारी कायम रहेगी। शरद पवार को यह बात अच्छी तरह से पता है कि कांग्रेस के सद्भाव पर ही वह अपनी दशकों पुरानी प्रधानमंत्री बनने की इच्छा को पूरा कर सकते हैं।

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