पर्यावरण दिवस : अब भी न संभले तो खुद ही बन जाएंगे जीवन का जहर

world invioroपर्यावरण के प्रति सरकार और लोगों की बढती लापरवाही के कारण पर्यावरण संतुलन नहीं बन पा रहा है। गाडि़यों की हर रोज बढ़ती संख्‍या और लोगों द्वारा पॉलीथिन के बढते प्रयोग के कारण पर्यावरण असंतुलन की स्थिति पैदा हो रही है। पर्यावरण का मतलब केवल पेड़़-पौधे लगाना ही नहीं है बल्कि, भूमि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण व ध्‍वनि प्रदूषण को भी रोकना है। पर्यावरण असंतुलन से व्‍यक्ति का स्‍वास्‍थ्‍य भी प्रभावित होता है और कई प्रकार की बीमारियां होने लगती हैं।

पर्यावरण दिवस आज

पर्यावरण की समस्‍या से निपटने के लिए संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ ने 1972 में स्‍वीडन में विश्‍व के 119 देशों के साथ पर्यावरण सम्‍मेलन आयोजित किया था। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। पर्यावरण असंतुलन के कारण ही सुनामी और भयंकर आंधी तूफान आते हैं। धरती का तापमान लगातार बढ रहा है जिसके कारण पशु-पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्‍त हो गई हैं।

पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारण

वनों का कटाव, खदानों, रसायनिक खादों का ज्‍यादा प्रयोग और कीटनाशकों के इस्‍तेमाल के कारण भूमि प्रदूषण फैलता है। इसके कारण हम जो खाद्य-पदार्थ खाते हैं वह शुद्ध नहीं होता है। इसके कारण पेट से जुडी हुई कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं।
पूरी पृथ्‍वी का तीन-चौथाई हिस्‍से में पानी है, लेकिन केवल 0.3 प्रतिशत हिस्‍सा ही पीने के योग्‍य है। फैक्ट्रियों और घरों से निकलने वाले कूडे का पानी सीधे नदियों में छोडा जाता है जिसके कारण कई नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। जल प्रदूषण के कारण कई बीमारियां पैदा होती हैं।

आदमी की जिंदगी के लिए ऑक्‍सीजन बेहद आवश्‍यक है। पेडों की कटाई और बढ रहे वायु प्रदूषण के कारण हवा से ऑक्‍सीजन की मात्रा कम हो रही है। घरेलू ईंधन, वाहनों से निकलते धुएं और वाहनों के बढते प्रयोग इसके लिए जिम्‍मेदार हैं।

आए दिन मशीनों, लाउडस्‍पीकरों और गाडियों के हॉर्न ने ध्‍वनि प्रदूषण को बढाया है। पारिवारिक और धर्मिक कार्यक्रमों में लोग लाउडस्‍पीकर बहुत तेजी से बजाते हैं। जिसके कारण कई लोगों की नींद उड जाती है। ध्‍वनि प्रदूषण के कारण कान से जुडी बीमारियां होने का खतरा होता है।


पर्यावरण प्रदूषण से मानव शरीर को खतरा

हमारे शरीर के कुछ हिस्‍से पर्यावरण परिवर्तन के प्रति ज्‍यादा संवेदनशील होते हैं। पर्यावरण में फैले प्रदूषण के कारण कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं।

वायु प्रदूषण के कारण आदमी को सांस लेने में दिक्‍कत होती है और फेफडे से जुडी बीमारियां होती हैं।

दूषित पानी पीने से पेट और त्‍वचा संबंधित बीमारियां होती हैं। जल प्रदूषण के कारण – हैजा, खुजली, पीलिया, पेचिस आदि रोग शुरू होते हैं।

पर्यावरण में परिवर्तन के कारण टाइप-2 डायबिटीज होने का खतरा होता है।

अशुद्ध खाद्य-पदार्थों का सेवन करने से मानसिक विकार होते हैं, जिससे दिमाग में तनाव रहता है।

बढती जनसंख्‍या, कटते पेड, बढते उद्योग-धंधे, वाहनों के प्रयोग, जानकारी का अभाव, बढती गरीबी ने पर्यावरण असंतुलन को बढाया है। पर्यावरण के प्रति जागरूक होकर हम इस पर्यावरण असंतुलन को कम कर सकते हैं।

पर्यावरण के प्रति बच्‍चों को बनाएं जागरूक

एक पुरानी कहावत है- हम यह धरती अपने बच्चों से उधार लेते हैं। यानी वे संसाधन जिनका आज हम इस्‍तेमाल या कहें कि दोहन कर रहे हैं, वे हमारे पास आने वाली नस्‍ल की धरोहर हैं। आज के बच्‍चे तो पढाई और कॉम्पिटीशन के बोझ से ही दबे जा रहे हैं। और बाकी बचा-खुचा वक्‍त कंप्‍यूटर और मोबाइल और इंटरनेट की भेंट चढ़ रहा है। अब बच्‍चे गलियों के नुक्‍कड़ पर नहीं, फेसबुक पर मिलते हैं। खतों की जगह मेल और संदेशों की जगह एसएमएस ने ले ली है। भले ही सभी बच्‍चे ऐसे न हों, लेकिन शहरी बच्‍चों की जिंदगी से शारीरिक और सामाजिक क्रियाकलाप लगभग समाप्‍त ही हो गए हैं। बच्चे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं और ऐसे में माता-पि‍ता की जिम्‍मेदारी बनती है कि वे बच्चों को प्रकृति से जोड़ने का काम करें।

बच्चों को उनके बर्थडे पर महंगे-महंगे तोहफे देने की बजाए अगर एक छोटा सा पौधा एक परफेक्ट गि‍फ्ट रहेगा। बच्चे अपने तोहफों के प्रति बेहद संवेदनशील होते हैं। वह कुछ ही दि‍नों में अपने पौधे से प्‍यार करने लगेगा। प्रकृति‍ प्रेम के बीज बोने का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है। इसकी शुरुआत गमले में पौधे से की जा सकती है। या फि‍र उसे कि‍सी खाली जगह ले जाकर उसके हाथ से पौधा लगवायें। समय-समय पर उसे उस पौधे के पास ले जाते रहें। इससे उसके मन में उस पौधे के साथ भावनात्मसक जुड़ाव हो जायेगा।

टीवी पर भी प्रकृति के बारे में ज्ञान देने वाले कई कार्यक्रम आते हैं। डि‍स्कवरी और एनि‍मल प्लेनेट जैसे चैनल तो इसी तरह के कार्यक्रम ही दि‍खाते हैं। बच्चों के साथ बैठकर इस तरह के कार्यक्रम देखें। बच्चे से इस बारे में बात करते रहें और साथ ही उसके मन में प्रकृति के प्रति रुचि पैदा करने का प्रयास करते रहें।

बि‍जली का दुरुपयोग करना, पानी व्यर्थ करना, यहां-वहां कूड़ा फेंकना आदि कुछ ऐसे काम हैं जो आमतौर पर हम सब बड़े लोग करते हैं। बच्चों के सामने एक मि‍साल बनते हुए ये सब गलत आदतें न दोहराएं। घर के करीब ही जाना हो, तो कार और मोटरसाइकि‍ल की बजाए पैदल जाना बेहतर रहेगा। इससे आप शुरुआत से ही बच्चों के मन में प्राकृति‍क संसाधनों के प्रति सम्मान पैदा करते हैं।

बच्चों के साथ किसी प्राकृतिक पि‍कनि‍क स्पॉट पर जायें, तो उन्हें उस वातावरण का पूरा आनंद उठाने दें। हर बात में रोक-टोक न करें। अगर बच्चे अपने साथ अपनी पसंद की कोई चीज ले जाना चाहते हैं, तो उन्हें ऐसा करने दें। हो सकता है आपका बच्चा वहां के पेड़ों की पत्ति‍यां और मि‍ट्टी को अपने साथ लाना चाहे। यह बाल मनोवृति है। यह चीजें उसे वहां की याद दि‍लाती रहेंगी। अपने इस सफर के दौरान कैमरा साथ रखना न भूलें। इन यादगार लम्हों को हमेशा के लि‍ये संजोकर रखने का इससे बेहतर और कोई तरीका नहीं हो सकता।

बच्चे को समझाइए कि पेड़ लगाने, अपने घर और उसके आसपास सफाई रखने, बेवजह बिजली का इस्‍तेमाल न करने, प्ला‍स्टिक बैग का इस्तेमाल न करने आदि के क्या फायदे हैं। जब तक बच्चे के मन की वो जि‍ज्ञासा शांत नहीं होगी वह आसानी से इन सब बातों को नहीं मानेगा।

ओजोन बन रहा खतरा

भीषण गर्मी ने एक अन्य खतरे को दस्तक दे दी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, दिल्‍ली में पिछले दो हफ्तों में जहरीले ओजोन के स्तर में असामान्य रूप से वृद्धि हुई है। उनके अनुसार, ओजोन का उच्च स्तर न केवल सेहत के लिए नुकसानदेह है, बल्कि पेड़-पौधों और पारिस्थितिकी को भी क्षति पहुंचाने वाला है।

 

 

 

 

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