
महाभारत में कर्ण एक ऐसा पात्र था जिसे देव पुत्र होने के बावजूद भी सामाजिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ा. कर्ण को समाज में अस्वीकार किया गया. कर्ण ने कुरुक्षेत्र में अपने भाइयों (पांडवो) को छोड़कर कौरवों का साथ दिया था. कौरवों का साथ देने के बावजूद ऐसा क्या हुआ जिसके कारण भगवान कृष्ण को कर्ण का अंतिम संस्कार करना पड़ा.
कुंती ने कर्ण को अविवाहित होते हुए जन्म दिया था. एक रथ सारथी ने कर्ण का पालन किया था, जिसके कारण कर्ण सूतपुत्र कहा जाता था.
अविवाहित माता से जन्म और रथ सारथी के पालन के कारण कर्ण को समाज में ना तो सम्मान मिला और ना अपना अधिकार मिला.
कर्ण के सूतपुत्र होने के कारण द्रोपदी, जिसको कर्ण अपनी जीवन संगनी बनाना चाहता था, उसने कर्ण से विवाह से इंकार कर दिया था.
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इन सब कारणों से ही कर्ण पांडवों से नफरत करता था और कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों का साथ दिया था.
भगवान कृष्ण कर्ण की मौत का कारण बने. भगवान कृष्ण ने ही अर्जुन को कर्ण के वध का तरीका बताया था. इसी तरीके से ही कर्ण का वध हुआ.
एक दानवीर राजा होने के कारण भगवान कृष्ण ने कर्ण के अंतिम समय में उसकी परीक्षा ली और कर्ण से दान माँगा. तब कर्ण ने दान में अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिए.
इस दानवीरता से प्रसन्ना होकर भगवान कृष्ण ने कर्ण को तीन वरदान मांगने को कहा.
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कर्ण ने वरदान रूप में अपने साथ हुए अन्याय को याद करते हुए भगवान कृष्ण के अगले जन्म में उसके वर्ग के लोगो के कल्याण करने को कहा.
दूसरे वरदान रूप में भगवान कृष्ण का जन्म अपने राज्य लेने को माँगा और तीसरे वरदान के रूप में माँगा कि उसका अंतिम संस्कार ऐसा कोई करे जो पाप मुक्त हो.
भगवान कृष्ण ने सारे वरदान स्वीकार कर लिए परन्तु तीसरे वरदान से दुविधा में आ गए. संसार में कुछ भी ऐसा नहीं था जो पाप मुक्त हो. भगवान कृष्ण को ऐसा कोई जो पाप मुक्त हो समझ नहीं आया.
वरदान देने के वचन बद्धता थी इसलिए कर्ण का अंतिम संस्कार भगवान कृष्ण अपने ही हाथों से किया और कर्ण को दिए वरदान को पूरा किया.