2018 में लगातार हो रही तेंदुओं की मौत से देश परेशान, WPSI ने बताई 10 बड़ी वजहें
नई दिल्ली। देश में मार्च महीने के पहले पखवाड़े में ही 21 तेंदुए की मौत हो चुकी है। वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के मुताबिक भारत में इस साल मरने वाले तेंदुए की संख्या बढ़कर 127 हो गई है।
डब्ल्यूपीएसआई ने बताया कि एक से 15 मार्च के बीच कुल 21 तेंदुए की मौत हुई है जिनमें 12 पकड़े गए जबकि नौ का शिकार किया गया। इससे पहले वर्ष 2018 के शुरुआती दो महीनों में 106 तेंदुओं की मौत की खबर आई थी।
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देश भर के जंगली क्षेत्रों में नए साल की शुरुआत के पहले दो महीने में 106 तेंदुओं की जान चली गई। दो महीने में इतनी संख्या में तेंदुओं की मौत पर चिंता और ज्यादा तब बढ़ जाती है जब इन 106 मौतों में केवल 12 को प्राकृतिक मौत बताया जा रहा है।
इस मामले में आंकड़े जुटाने वाली संस्था वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी आफ इंडिया के अनुसार, सबसे ज्यादा मौतें शिकार की वजह से हुईं हैं और केवल 12 की मौत प्राकृतिक कारणों से हुईं हैं।
उत्तराखंड में सबसे ज्यादा 24, महाराष्ट्र में 18 और राजस्थान में 11 तेंदुओं की मौत हुई है। तेंदुओं की मौत का विवरण 18 राज्यों से हासिल हुआ है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 में कुल 431 तेंदुओं की मौत हुई। इनमें 159 मौतें शिकार के कारण हुईं। वर्ष 2016 में करीब 450 बाघों की मौत हुई थी जिनमें 127 की मौत शिकार की वजह से हुई।
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वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन सोसाइटी के अनुसार, तेंदुए की मौत के 10 संभावित कारण हैं। इस साल 106 मौतों में से 36 का कारण स्पष्ट नहीं है।
सोसाइटी ने कहा कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, जम्मू एवं कश्मीर और गुजरात में चार तेंदुओं को तस्करों से चंगुल से छुड़ाया गया।
वर्ल्डलाइफ इंस्टीट्यूट के अनुसार देश के 17 राज्यों में 9 हजार तेंदुए हैं। हालांकि देश भर में तेंदुओं की वास्तविक संख्या ज्ञात नहीं है।