बाबरी मस्जिद विध्वंस: वो घटना जिसने श्री राम के साथ बाबर को भी ‘हीरो’ बना दिया

बाबरी मस्जिद विध्वंसलखनऊ| दुनिया में जब तक भगवान श्री राम का नाम लिया जाएगा तब-तब एक तारीख सभी के जेहन में जरूर आएगी। ये तारीख है 6 दिसंबर 1992। इस तारीख को भारत की राजनीति ने ऐसी करवट ली थी जिसे भुलाना असंभव है। बाबरी मस्जिद विध्वंस को आज 25 साल पूरे हो गए हैं। इतने सालों बाद भी ये मुद्दा भारत की राजनीति का केंद्र बना हुआ है।

बाबरी मस्जिद विध्वंस के 25 साल

ये वो घटना थी जिसने करोड़ों हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक भगवान श्री राम के साथ ही एक ऐसे खलनायक को हीरो बना दिया जिसे लोग बाबर के नाम से जानते हैं।

यहां बाबर का जिक्र इस वजह से करना पड़ा क्योंकि उज्बेकिस्तान में जन्मे बाबर का भारत आने का मकसद यहां की जनता को लूटने और उस पर राज करने का था. इसके लिए उसने धर्म के नाम पर फूट डालने और राज करने का रास्ता चुना और वो किसी हद तक सफल भी रहा।

दूसरी और एक हकीकत यह भी है कि हमारे देश की राजनीति भी इस मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमती है। क्योंकि धर्म के नाम पर किसी को भी बरगलाना बहुत ही आसान है।

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25वीं सालगिरह को देखते हुए अयोध्या समेत पूरे उत्तर प्रदेश में कड़ी सुरक्षा के प्रबंध किए गए हैं। विश्व हिंदू परिषद इस दिन को शौर्य दिवस के रूप में मना रहा है। इसे देखते हुए पूरे प्रदेश में अलर्ट जारी किया गया है। विहिप के अलावा पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी कोलकाता में इस पर रैली करेंगी। वहीं लेफ्ट पार्टियां भी बाबरी मस्जिद गिरने का विरोध करेंगी।

केंद्र सरकार ने भी सभी राज्यों को इस मौके पर सतर्क रहने और शांति सुनिश्चित करने को कहा है ताकि देश में शांति व्यवस्था बनी रह सके।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

पांच दिसंबर को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की पीठ ने इस मामले में सुनवाई की। हालांकि अनुवाद के पूरा न होने की वजह से इसमें 2 महीने बाद की तारीख दे दी गई। अब अगली सुनवाई 8 फरवरी 2018 को होगी।

इस केस में कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या विवादित बाबरी मस्जिद किसी हिन्दू ढांचे को तोड़ कर बनाई गई थी?

28 साल सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो एक के बहुमत से 30 सितंबर, 2010 को जमीन को तीन बराबर हिस्सों रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड में बांटने का फैसला सुनाया था। रामलला को वही हिस्सा दिया गया, जहां वे विराजमान हैं।

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हालांकि, फैसला किसी पक्षकार को मंजूर नहीं हुआ और सभी 13 पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। कोर्ट ने मई 2011 को अपीलों को विचारार्थ स्वीकार करते हुए मामले में यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। विवादित ढांचे के नीचे हिन्दू मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं। 30 सितंबर, 2010 को कोर्ट के तीन में से दो न्यायाधीशों जस्टिस सुधीर अग्रवाल और धर्मवीर शर्मा ने अपने फैसले में माना कि अयोध्या में विवादित ढांचा हिन्दू मंदिर तोड़कर बनाया गया था।

दोनों जजों के फैसले का आधार भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रिपोर्ट है। एएसआइ की रिपोर्ट कहती है कि विवादित ढांचे के नीचे हिन्दू मंदिर था। मस्जिद बनाने में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ था।

तीसरे जज एसयू खान के अनुसार, इस बात का कोई सुबूत नहीं मिलता कि बाबर ने मस्जिद किसी मंदिर को तोड़ कर बनाई थी। मस्जिद का निर्माण बहुत पहले नष्ट हो चुके मंदिर के अवशेषों पर हुआ था।

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हिन्दू संगठनों का तर्क

हिन्दू महासभा आदि ने दलील दी है कि हाई कोर्ट ने भी रामलला विराजमान को संपत्ति का मालिक बताया है।  वहां पर हिन्दू मंदिर था और उसे तोड़कर विवादित ढांचा बनाया गया था। ऐसे में हाई कोर्ट एक तिहाई जमीन मुसलमानों को नहीं दे सकता है। यहां न जाने कब से हिन्दू, पूजा-अर्चना करते चले आ रहे हैं, तो फिर हाई कोर्ट उस जमीन का बंटवारा कैसे कर सकता है?

मुस्लिम संगठनों की दलील

सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अन्य मुस्लिम पक्षकारों का कहना है कि बाबर के आदेश पर मीर बाकी ने अयोध्या में 1528 में 1500 वर्गगज जमीन पर मस्जिद बनवाई थी। इसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। मस्जिद वक्फ की संपत्ति है और मुसलमान वहां नमाज पढ़ते रहे हैं। 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात हिन्दुओं ने केंद्रीय गुंबद के नीचे मूर्तियां रख दीं और मुसलमानों को वहां से बेदखल कर दिया।

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