जब लोकसभा में थे रामनाईक
लोकसभा में रामनाईक (१९८९-२००३) पुस्तक नहीं, एक जीवन दर्शन है। एक सौ छियान्वे पेज वाली इस पुस्तक की समीक्षा से पहले पुस्तक प्राप्त होने से संबंधित संस्मरण का उल्लेख आवश्यक हैं क्योंकि इससे उनका व्यक्तित्व उजागर होता है। यह ठीक कहा गया है कि कुछ बातों के सम्प्रेषण हेतु शब्द आवश्यक नहीं होते। उनका सहज अनुभव किया जा सकता है। रिपोर्ट कार्ड पर उनसे चर्चा हो रही थी। राज्यपाल उठे, कुछ कदम की दूरी पर रखे एक रैक तक गए, एक किताब उठाई, कहा ये मैं आपको दे रहा हूं। यह दृश्य अवाक करने वाला था क्योंकि साधारण सरकारी अधिकारी भी अपने कार्यालय में इतनी जहमत नहीं उठाता। वह घंटी बजाता है, चपरासी को बुलाता है यदि उसे किसी काम से उन्होंने अन्यत्र भेजा है तो अफसर उसका इंतजार कर लेगा, लेकिन क्या मजाल जो वह उठे और कोई वस्तु स्वयं ले जाए। इसे अफसरी पर लानत समझा जाता है। विकसित देशों में उच्च पदों पर आसीन लोगों के स्वयं ऐसे कार्य करने के बारे में सुना था। राजभवन में इसे देखना सुखद लगा।
इस घटना का उल्लेख इसलिए आवश्यक लगा क्योंकि यह लोकसभा में रामनाईक पुस्तक की समीक्षा को आसान बना देती है। यह उनके सदैव जमीन से जुड़े होने का एहसास कराती है। पद है तो ठीक नहीं है तब भी कोई परेशानी नहीं। रामनाईक ने बताया कि जब वह किसी भी पद पर नहीं थे तब भी अपना रिपोर्ट कार्ड जारी करते थे, क्योंकि समाजसेवा सतत चलती है और उसके दायित्व भी कम नहीं होते।
लोकसभा में रामनाईक (१९८९-२००३) पुस्तक का आवरण पृष्ठ शीर्षक को बखूबी रेखांकित करता है। इसमें संसद के समक्ष खड़े हुए रामनाईक का चित्र है। इस पृष्ठ के दूसरी तरफ अंत्योदय शीर्षक है-दीनदयाल उपाध्याय के चित्र के साथ हमारा लक्ष्य अंत्योदय-हमारा मार्ग परिवर्तन उपशीर्षक से उनका विचार
उल्लिखित है। पुस्तक का समापन वंदेमातरम् गीत से होता है। यह संयोजन रामनाईक के राष्ट्रवादी विचार को उजागर करता है।
पुस्तक में बत्तीस अध्याय हैं। संक्षिप्त परिचय सबसे बाद में है। पुस्तक की भूमिका पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी ने लिखी है। इसमें वह लिखते हैं कि यह पुस्तक हमारे राजनेताओं, युवा नेताओं, संसदविदों को प्रेरणा देगी, मार्गदर्शन करेगी। श्रीराम नाईक ने जिस तरह प्रश्न पूछना, शून्यकाल के दौरान मुद्दा उठाना, आधे घंटे की चर्चा, नियम ३७७ के अन्तर्गत मामले, गैर सरकारी विधेयक प्रस्तुत करके संसदीय नियमों व प्रक्रियाओं का लाभ उठाया है, वह निश्चय ही प्रेरक है। संसद में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका व उपलब्धि का उल्लेख भी मनोहर जोशी ने किया है।
रामनाईक ने चुनावी समर में १९७८ में कदम रखा। वह मुम्बई की बोखिली विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए। यहां से वह लगातार तीन बार विजयी हुए। दिलचस्प बात यह कि प्रत्येक चुनाव में उनकी जीत का अन्तर बढ़ता गया। १९८९ में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद १९९१, १९९६, १९९८, १९९९ में जीतकर रिकार्ड बनाया। तीन बार विधानसभा और पांच बार लोकसभा चुनाव जीतना उनकी जमीनी राजनीति का ही परिणाम कहा जा सकता है। आमजन से जुड़े रहने के कारण ही वह लोकप्रिय रहे। इसी के साथ वह सदैव लोकहित में सक्रिय रहे। लोकसभा में पूरक मांगों के संबंध में दिए गए अपने पहले भाषण में ही उन्होंने लोकहित के मुद्दों को पुरजोर ढंग से उठाया था।
बम्बई के मुम्बई नामकरण का श्रेय भी रामनाईक को हासिल है। उन्होंने मुम्बई नामकरण का मुद्दा नियम ३७७ के अन्तर्गत लोकसभा में उठाया था। १९९९ में वह जब गृह राज्यमंत्री बने तो उन्होंने इस संबंध में सभी औपचारिकता पूरी की। इस प्रकार मुम्बा देवी के नाम पर बम्बई का नाम मुम्बई हो गया।
संसद के दोनों सदनों के सत्र की शुरुआत में जनगण मन और समापन पर वंदेमातरम की परंपरा का शत-प्रतिशत श्रेय रामनाईक को है। स्वयं रामनाईक इसे अपने संसदीय जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि मानते हैं। उनकी यह सफलता संसदीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों की भांति दर्ज रहेगी। इसी प्रकार उन्होंने आधे घंटे की चर्चा के अंतर्गत शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रगान और राष्ट्रीय गीत का मुद्दा उठाया था। इस प्रकार वह भावी पीढ़ी में राष्ट्र प्रेम व राष्ट्रवाद की भावना तीव्र बनाना चाहते थे।
सांसद कोष की शुरुआत अभूतपूर्व थी। यह कल्पना भी रामनाईक की थी। सर्वप्रथम १९९० में उन्होंने यह प्रस्ताव तत्कालीन वित्तमंत्री मधु दण्डवते को दिया था। वह करीब तीन वर्षों तक इसके लिए प्रयास करते रहे। अन्तत: १९९३ में तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने संसद में यह योजना घोषित की। १९९१ में उन्होंने जो लोकसभा में कहा वह आज भी प्रासंगिक है। यह समस्या देश की भावी पीढ़ी के स्वास्थ्य से जुड़ी है। तब रामनाईक ने कहा था दुनिया भर की आरोग्य संस्थाएं और डाक्टर अब इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि नवजात शिशुओं के विकास के लिए स्तनपान ही सर्वोत्तम है। किन्तु देशी कंपनियां इश्तहारों के जरिए माताओं को उलझन में डाल देती हैं। ऐसे में शिशु आहार और बोतलों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण पर प्रतिबंध के लिए उन्होंने लोकसभा में गैर सरकारी विधेयक रखा था। यह रामनाईक की उपलब्धि थी कि १९९२ में सरकार को ऐसा विधेयक लाना पड़ा। इसके बाद इस प्रकार के सभी उत्पादों पर मां का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम लिखना अनिवार्य हुआ।
एक बार तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष शिवराज पाटिल ने कहा था कि श्री नाईक कुछ कहते हैं तो उस बात का विश्वास है। मुम्बई के रेल यात्रियों की समस्याएं वह लगातार उठाते रहे। बारहवीं लोकसभा में बतौर रेल राज्यमंत्री उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सुधार किए। विश्व की पहली महिला स्पेशल ट्रेन उन्हीं के प्रयासों से शुरू हुई थी। मछुआरों की समस्या, पर्यावरण, सरकारी बंगलों के दुरुपयोग रोकने आदि विषयों पर उन्होंने संसद में बेहद उपयोगी सुझाव रखे। इसके अलावा मुम्बई बम विस्फोट, बांग्ला देशी घुसपैठिए, मंडल आयोग, दलितों पर अत्याचार, रेल व वित्त विधेयक, शेयर घोटाला काण्ड, लोकलेखा समिति, दूरसंचार शुल्क, छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा, मुम्बई के प्रिंस आफ वेल्स म्यूजियम का नया नामकरण, आईएनएस विक्रांत, संजयगांधी राष्ट्रीय उद्यान पर संरक्षक दीवार आदि पर उनके विचारों का सकारात्मक असर हुआ।
पेट्रोलियम मंत्री के रूप में उन्होंने अलग छाप छोड़ी। उनके कार्यकाल में एलपीजी सिलेण्डर कितनी सहजता से उपलब्ध होता था, इसे लोग भूल नहीं सकते। जिन तीन वर्षो में रसोई गैस के ३-६३ करोड़ नए कनेक्शन जारी हुए। यह चालीस वर्षों में जारी गैस कनेक्शन से अधिक था। रामनाईक ने ही पांच किलोग्राम के गैस सिलेण्डर की
शुरुआत की। पारदर्शी टेण्डर व्यवस्था से सरकारी खजाने को प्रतिवर्ष चार सौ करोड़ रूपए अधिक मिलने लगे। कच्चे तेल पर विदेशी निर्भरता घटाने के प्रयास हुए। तीन वर्ष में सत्तर ब्लाक प्रदान किए गए जबकि उसके पहले दस वर्ष में बाइस ब्लाक प्रदान किए गए थे।
नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति बनी, रिफायनरी की क्षमता बढक़र दो गुनी हो गयी, कोल बेड मीथेन के पहली बार खण्ड प्रदान किए गए। इथेनोल पूरे देश में उपलब्ध कराने की व्यवस्था शुरू हुई, विपणन क्षेत्र में बड़े सुधार हुए निवेश बढऩे लगा, पाइपलाइन द्वारा परिवहन का जाल बिछाया गया, सार्वजनिक उपक्रमों की उपलब्धियां इन तीन वर्षों में अभूतपूर्व रही, शहीद परिवारों को पेट्रोल पम्प, गैस एजेंसी दी गयी।
इस पुस्तक से स्पष्ट है कि रामनाईक ने अपने सभी दायित्वों का बखूबी निर्वाह किया। यह पुस्तक राजनीति में सक्रिय लोगों के लिए विशेष उपयोगी है।
पुस्तक के अंत में उनकी जीवनी का उल्लेख है। उनका जन्म १६ अप्रैल १९३४ को सांगली (महाराष्ट्र) में हुआ था। उन्होंने बी. काम व एलएलबी किया है। एकाउन्टेंट जनरल कार्यालय में नौकरी की। १९६९ में नौकरी छोडक़र समाजसेवा का व्रत
लिया। आज तक उसका निर्वाह कर रहे
हैं। (हिफी)