सेना को सौगात में मिलेगा भारत-पाक युद्ध में इस्तेमाल हुआ ‘परशुराम’ विमान, 71 साल पहले रचा था इतिहास

नई दिल्ली। कश्मीर को लेकर भारत-पाकिस्तान के बीच लगातार नोक-झोंक बनी रहती है। ये झगड़ा अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद से ही शुरू हो गया था, जब देश को दो फड़ में बांट दिया गया। खैर उस वक्त कब्जेदारी को लेकर दोनों गुटों में युद्ध हुआ और भारत ने कश्मीर का आधे से ज्यादा हिस्सा जीत लिया। इसी युद्ध के दौरान यहां का पुंछ इलाका भी भारत में विलय हुआ। ऐसा कहा जाता है कि इस इलाके पर जीत हासिल करने का सारा दारोमदार डकोटा विमान को दिया गया। यही विमान जल्द ही भारतीय वायु सेना को फिर से तोहफे के तौर पर मिलने वाला है।

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भारत-पाकिस्तान

बता दें यह तोहफा राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर की ओर से सेना को दिया जा रहा है। इसे फिर से रेनुवेट कर सेना को सौपा जा रहा है।

साल 1947 में भारत-पाक युद्ध के दौरान इस्तेमाल हुए इस एयरक्राफ्ट को ब्रिटेन में पूरी तरह नया रूप दिया गया है। इसमें 6 साल का वक्त लगा।

खबरों के मुताबिक़ मंगलवार को एक फंक्शन के दौरान डकोटा या परशुराम एयरक्राफ्ट के कागज एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ को सौंपे गए।

राजीव चंद्रशेखर ने कहा, “डकोटा एयरक्राफ्ट अभी ब्रिटेन की कोवेंट्री एयरफील्ड में रखा गया है। ये अगले महीने भारत के लिए उड़ान भरेगा। करीब 4800 नॉटिकल मील का सफर कर ये एयरक्राफ्ट फ्रांस, इटली, ग्रीस, इजिप्ट, ओमान के रास्ते भारत पहुंचेगा। भारत में इसका पहला स्टॉप जामनगर रहेगा, वहां से ये हिंडन एयरबेस (यूपी) लाया जाएगा।”

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धनोआ ने कहा, “मिलिट्री हिस्टोरियन पुष्पिंदर सिंह ने कहा था कि डकोटा एयक्राफ्ट्स की वजह से ही आज पुंछ हमारे पास है। इन एयक्राफ्ट्स में बांग्लादेश की आजादी में भी मदद की।”

उन्होंने कहा, “इन विमानों को 1930 में इंट्रड्यूस किया गया था। तब ये रॉयल इंडियन एयरफोर्स की 12वीं स्क्वॉड्रन का हिस्सा थे। लद्दाख और नॉर्थईस्ट रीजन में डकोटा का इस्तेमाल किया जाता था। 1947 में इन्होंने कश्मीर घाटी को बचाने के वक्त अहम रोल निभाया।”

27 अक्टूबर 1947 को ये एयरक्राफ्ट्स आर्मी की 1 सिख रेजिमेंट के जवानों को श्रीनगर लेकर गए थे। इसके अलावा ये शरणार्थियों और सामान को भी ले गए।

ध्यान रहे, चंद्रशेखर के पिता रिटायर्ड एयर कोमोडोर एमके चंद्रशेखर भी फंक्शन के दौरान मौजूद थे। वे IAF में डकोटा पायलट थे।

राजीव चंद्रशेखर ने कहा, “मुझमें ये बीज काफी कम उम्र में पड़ गए थे। मेरे पिता अब 84 साल के हैं। मैं उन्हें डकोटा उड़ाते देखते हुए बड़ा हुआ। एयरक्राफ्ट्स के लिए मेरी दीवानगी स्वाभाविक है। मैं अपने पिता की तरफ से IAF को ये गिफ्ट दे रहा हूं। ये एयर वॉरियर्स के लिए समर्पण के लिए है। मुझे उम्मीद है कि इससे आने वाली पीढ़ियां भी प्रेरित होंगी।”

चंद्रशेखर ने कहा, “ये 2011 में मुझे हासिल हुआ था और ये उन लोगों को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका है, जिन पर आज देश को फख्र है। इस एयरक्राफ्ट को खोजना और इसका रेस्टोरेशन (नवीनीकरण) एक चैलेंज था।”

एयक्राफ्ट के अपग्रेडेशन और रेस्टोरेशन में IAF ने राजीव की मदद की। इसमें नेविगेशन सिस्टम को भी अपग्रेड किया गया है।

इसे परशुराम नाम दिया गया है और इसकी टेल पर VP 905 नंबर रहेगा। ये उसी डकोटा विमान का नंबर है, जिसने इंडो-पाक वार में सैनिकों को जम्मू-कश्मीर पहुंचाया था।

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