6 अप्रैल से नया हिन्दू वर्ष आरम्भ, जानिए कैसा रहेगा देश पर ग्रहों का असर

नई दिल्ली : भारतीय कैलेंडर के अनुसार नया साल चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है। जहां इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। लेकिन इस बार यह 6 अप्रैल से शुरू होगा। वैसे तो प्रतिपदा तिथि 5 अप्रैल को ही दोपहर बाद 02:20 बजे से लग जाएगी। वहीं  भारतीय कैलेंडर की गणना सूर्य और चंद्रमा के अनुसार होती है।

नववर्ष

देखा जाय तो दुनिया के तमाम कैलेंडर किसी न किसी रूप में भारतीय कैलेंडर का ही अनुसरण करते हैं। और इतना ही नहीं, 12 महीनों का एक वर्ष और सप्ताह में सात दिनों का प्रचलन भी विक्रम संवत से ही माना जाता है। देखा जाये  तो अब यह तय है कि इस विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवीं पूर्व से हुआ है। यानि अभी ग्रिगैरियन कैलेण्डर के हिसाब से 2019 चल रहा है तो यदि इसमें 57 वर्ष जोड़ देंगे तो वो विक्रम सम्वत कहलायेगा।

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वहीं जैसे हर महीने या दिन का नाम होता है उसी तरह हर संवत्सर का भी नाम होता है जो संख्या में कुल साठ हैं जो बीस-बीस की श्रेणी में बांटे गए हैं। प्रथम बीस संवत ब्रह्मविंशति संवत कहलाते हैं, 21 से 40 तक विष्णुविंशति संवत और अंतिम बीस संवतों के समूह का नाम रूद्रविंशति रखा गया है। यह छियालीसवें नंबर का संवत है इसलिए ये रुद्रविंशति समूह का है और इसका नाम परिधावी संवत्सर है। परिधावी संवत्सर में सामान्यतः अन्न महंगा , मध्यम वर्षा, प्रजा में रोग ,उपद्रव अदि होते हैं और इसका स्वामी इन्द्राग्नि कहा गया है ।

खबरों के मुताबिक इस संवत्सर के आकाशीय मंत्रिमंडल के गठन के अनुसार राजा शनि और मंत्री सूर्य होंगे, जबकि पिछले वर्ष राजा सूर्य थे और मंत्री शनि महाराज थे। वहीं शनि न्याय के देवता हैं इसलिए इस वर्ष भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यथोचित न्याय मिलेगा। शनि और सूर्य के परस्पर विरोधी होने के कारण स्थितियां सुखद नहीं रहेंगी। पूरा आकाशीय मंत्रिमंडल और उसका प्रभाव इस प्रकार रहेगा।

वहीं पारस्परिक विरोध और टकराव की स्थिति राष्ट्र में देखी जा सकती है। राजनेताओं के मध्य भी स्थिति असंतोषजनक होगी, एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगेंगे। प्राकृतिक रुप से भी परेशानी झेलनी पड़ेगी, बाढ़ एवं सूखे की समस्या देश के कई राज्यों को प्रभावित करेगी। अस्थिरता व भय का माहौल भी होगा।

दरअसल सूर्य के मंत्री पद में आने पर राजनैतिक क्षेत्र में हलचल बढ़ जाती है। केन्द्र और राज्य सरकारों के मध्य विवाद अधिक देखने को मिल सकता है। आर्थिक क्षेत्र अच्छा रहता है। धन धान्य में वृद्धि होती है। सरकारी नीतियां कठोर हो सकती हैं। दोषियों को सरकार का दंश झेलना पड़ सकता है। जहां अनाज महंगा हो सकता है। इस समय पर मौसम की प्रतिकूलता के चलते खेती को नुकसान हो सकता है।

मेघेश शनि हैं, इस कारण कहीं अधिक वर्षा तो कहीं सूखे की स्थिति बनेगी। इस कारण जान-माल का नुकसान भी होगा। राज्य में नियमों की कठोरता के कारण लोगों के मन में चिंता और विरोध की स्थिति भी पनपेगी। बीमारी का प्रभाव लोगों पर शीघ्र असर डाल सकता है। लेकिन धान्येश चंद्रमा के होने से रसदार वस्तुओं में वृद्धि देखने को मिल सकती है। चावल कपास की खेती अच्छी हो सकती है। दूध के उत्पादन में भी तेजी आएगी। तालाब, नदियों में जल स्तर की स्थिति अच्छी रहने वाली है।

रसेश का स्वामी गुरु के होने से साधनों की वृद्धि होगी। आर्थिक रुप से संपन्न लोगों के लिए समय ओर अनुकूल रह सकता है। रसदार फल और फूलों की पैदावर भी अच्छी होगी। विद्वानों को उचित सम्मान भी प्राप्त हो सकेगा। जहां नीरसेश अर्थात रसहीन यानि धातुएं, इनका स्वामी मंगल के होने से माणिक्य, मूंगा पुखराज इत्यादि में महंगाई देखने को मिल सकती है। गर्म वस्त्र, चंदन लाल रंग की वस्तुएं ताम्बा, पीतल में तेजी देखने को मिलेगी।

इस समय वृक्षों पर फूल कम लग पाएंगे ऐसे में फलों का उत्पादन भी कम होगा। पर्वतीय स्थलों पर मौसम की अनियमितता के कारण अधिक परेशानी झेलनी पड़ सकती है।इस समय में मंगल के धनेश होने से महंगाई का दौर अधिक रहने वाला है। व्यापार से जु़डी वस्तुओं में उतार-चढा़व की स्थिति बनी रहने वाली है। इस समय देश में आर्थिक स्थिति और अनाज उत्पादन में अनियमितता के कारण परेशानी अधिक रह सकती है।

दुर्गेश अर्थात सेना के स्वामी इस समय शनि होंगे। इस स्थिति के चलते अराजकता को निपटाने के लिए कठोर नियमों का सहारा लिया जा सकता है। इस समय जातीय सांप्रदायिक मतभेद भी उभरेंगे। 10 विभागों में से 6 विभाग क्रूर ग्रहों के पास और 4 विभाग सौम्य ग्रहों के पास रहेंगे। राजा शनि के धनु राशी में होने से धार्मिक मामलों का निपटारा हो सकता है।

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