उत्तराखण्ड या आपदा प्रदेश !
आज से लगभग 6 साल पहले उत्तराखण्ड में कुंभ घोटाले के रूप में पहली मानव निर्मित आपदा आई। उस समय स्टर्डिया, आयुर्वेद संस्थान के रूप में भी आपदा आई। परन्तु आपदा के जनक मुख्यमंत्री निशंक का आज तक बाल भी बांका नहीं हुआ। वैसे ये श्रीमान अब तक के सबसे ईमानदार मुख्यमंत्री BC खंडूरी जी को हटवा कर कुर्सी पर आये थे।
उसके बाद जब उत्तराखंड में बारिश-बाढ़ से दैवीय आपदा आई तो लगभग 20 हज़ार लोगो के इसमे हताहत होने की ख़बरें रही।
अब आपदा आई तो आपदा राहत भी आनी थी। तो मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के कार्यकाल में आपदा रहत के नाम पर 195/- रु का आधा लीटर दूध, 900 रु का एक चिकन और न जाने क्या क्या अधिकारीयों द्वारा लुटा गया। जिसकी RTI से जानकारी मिलने पर बहुगुणा सरकार की फजीहत भी हुई। और बहुगुणा को कुर्सी से जाना पड़ा।
अब एक आपदा केंद्र की मोदी सरकार ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा कर दी। जिसकी सही गलत की जंग कानून की चौखट पर कड़ी है। जिसका जल्द ही सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया से कुछ अच्छा निर्णय आना संभव लग रहा है।
इतना क्या कम था की उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लग गयी जिससे उत्तराखंड के सभी 13 जिले प्रभावित हैं। वन सम्पदा, पशु, मवेशी, जनमानस, पर्यावरण, सभी इस खतरनाक आपदा से त्राहि त्राहि है। और राज्य में कोई सरकार भी नहीं है, राष्ट्रपति शासन और केंद्र की भाजपा सरकार की अघोषित सी सरकार चल रही है।
अब वो तो मुख्यमंत्री हरीश रावत को केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगा कर हटा दिया नहीं तो बीजेपी वाले बड़बोले नेतागण इस भयानक व भयावय अग्नि की आपदा को भी हरीश रावत की नाकामयाबी बता देते।
अब सेना पर ही भरोषा है इस राज्य को, वैसे भी उत्तराखंड की बाड़ आपदा हो, हरियाणा की जाट आरक्षण आपदा हो हर जगह सेना ही काम आती है। और उत्तराखंड के पहाड़ो में शायद ही ऐसा कोई घर हो जिसका सेना से सम्बन्ध न हो।
संदीप चौहान हरिद्वार