मेरठ : बचपन इंसान की जिंदगी का सबसे हसीन पल होता है न किसी बात की चिंता और न ही कोई जिम्मेदारी। बस हर समय अपनी मस्तियों में खोए रहना, खेलना-कूदना और पढऩा। लेकिन सभी का बचपन ऐसा हो यह जरूरी नहीं। गरीबी, लाचारी और माता-पिता की प्रताडऩा के चलते ये बच्चे बाल मजदूरी के इस दलदल में धंसते चले जाते हैं। इन बच्चों का समय स्कूल में कॉपी-किताबों और दोस्तों के बीच नहीं बल्कि होटलों, घरों, उद्योगों में बर्तनों झाडू-पोंछे, कूड़ा बीनने में बीतता है।
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