सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार प्रशांत कनौजियाको तुरंत रिहा करने के दिए निर्दश, देखें कोर्ट ने ऐसा क्या कहा कि…

च्चतम न्यायालय ने मंगलवार को पत्रकार प्रशांत कनौजिया को तत्काल जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुये कहा कि संविधान में प्रदत्त स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार पवित्र है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। इस पत्रकार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणियां करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

शीर्ष अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि कनौजिया को जमानत देने का अर्थ उसकी पोस्ट या ट्वीट को स्वीकृति देना नहीं निकाला जा सकता ।

न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि इस मामले में जरूरत से ज्यादा की गयी कार्रवाई के मद्देनजर यह आदेश दिया जा रहा है। पीठ ने साथ ही स्पष्ट किया कि पत्रकार के खिलाफ कानून के अनुरूप कार्यवाही चलती रहेगी।

शीर्ष अदालत ने पत्रकार को गिरफ्तार करने के लिये उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथ लिया और कहा कि संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार का शासन द्वारा अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है।

पीठ ने कनौजिया के ट्वीटों के अवलोकन के बाद कहा, ‘‘हो सकता है, हम इन ट्वीट की सराहना नहीं करते लेकिन सवाल यह है कि क्या इन सोशल मीडिया पोस्ट के लिये उसे सलाखों के पीछे रहना चाहिए।’’ पीठ ने कहा, ‘‘यह स्वतंत्रता से वंचित करने का ज्वलंत मामला है क्योंकि कनौजिया को इन पोस्ट और ट्वीट के लिये करीब दो सप्ताह के लिये हिरासत में भेज दिया गया है।’’

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘हम याचिकाकर्ता के पति को तत्काल मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के अनुरूप शर्तों पर तत्काल जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हैं। यह स्पष्ट किया जता है कि इस आदेश को सोशल मीडिया पर किये गये पोस्ट और ट्वीट को स्वीकृति देने के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। यह आदेश इस मामले में जरूरत से ज्यादा कार्रवाई को देखते हुये पारित किया गया है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘एक नागरिक की स्वतंत्रता का अधिकार पवित्र है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता। यह संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार है और शासन द्वारा इसका अतिक्रमण नहीं किया जा सकता।’’

कनौजिया ने कथित रूप से एक वीडियो ट्विटर और फेसबुक पर साझा किया था जिसमें लखनऊ में मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर कुछ मीडिया संगठनों के संवाददाताओं के सामने एक महिला बात कर रही थी और उसका दावा था कि उसने आदित्यनाथ के पास शादी का प्रस्ताव भेजा था।

इसके बाद लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक सब इंसपेक्टर ने शुक्रवार की रात कनौजिया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी जिसमें आरोप लगाया गया था कि आरोपी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं और उनकी छवि खराब करने का प्रयास किया है।

पीठ ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि न्यायालय को भी सोशल मीडिया का दंश सहना पड़ता है।

पीठ ने कहा, ‘‘कभी-कभी तो हमें भी सोशल मीडिया का दंश सहना पड़ता है। कभी यह उचित होता है और कभी अनुचित, लेकिन हमें अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना होता है।’’

न्यायालय इस पत्रकार की पत्नी जगीशा अरोड़ा द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई कर रहा था। इस याचिका में पत्रकार की गिरफ्तारी को चुनौती दी गयी थी। बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कनौजिया को दिल्ली से ‘‘जमानती अपराध’’ के लिये गिरफ्तार करने वाले उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया था, जो वर्दी में नहीं थे।

उप्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि इस याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता क्योंकि आरोपी न्यायिक हिरासत में है।

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इस पर पीठ ने कहा, ‘‘कानून बहुत स्पष्ट है। किसी भी व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। अगर यह अनुच्छेद 32 के तहत याचिका है तो भी न्यायालय इस पर विचार कर सकता है। उच्चतम न्यायालय अपने हाथ बांधकर नहीं रह सकता यदि यह स्वतंत्रता से वंचित करने का मामला हो।

पीठ ने याचिका का निबटारा करते हुये कहा, ‘‘हम तकनीकी आधार पर चुप रहने के लिये तैयार नहीं हैं। संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त शक्ति का इस्तेमाल करते हुये यह न्यायालय पूरी तरह न्याय करने के लिये राहत में बदलाव कर सकता है।’’

सुनवाई के दौरान पीठ ने करीब दो सप्ताह की न्यायिक हिरासत पर सवाल उठाते हुये कहा, ‘‘क्या यह हत्या का मामला है?’’

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