सावन का पहला सोमवार 2019: जानिए व्रत का महत्व और पौराणिक कथा

हिन्दू धर्म के अनुसार सावन में सोमवार व्रत रखने का खास महत्व होता है सोमवार व्रत में व्यक्ति को सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेना चाहिए। अगर संभव हो तो व्रत वाले दिन ‘शिव भगवान’ के मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल व दूध चढ़ाएं। उसके बाद व्रत रखने का संकल्प लें। पौराणिक कथाओं के अनुसार सोमवार का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने सच्चे मन से इस व्रत को रखा जिससे उन्हें भगवान शिव की प्राप्ति हुई।

 सावन का पहला सोमवार 2019: जानिए व्रत का महत्व और पौराणिक कथा

हिन्दू धर्म के अनुसार सावन में सोमवार व्रत रखने का खास महत्व होता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सावन में आने वाले सोमवार के व्रत करने से साल भर में आने वाले अन्य सोमवार के व्रत रखने से ज्यादा पुण्य प्राप्त होता है। अगर किसी व्यक्ति की शादी में अड़चन आ रही है तो ऐसा माना जाता है कि ऐसे लोगों को सावन का सोमवार व्रत करने से अवश्य लाभ मिल सकता है।

इसलिए इन दिनों भगवान शंकर और माता पार्वती की अराधना करने मनचाहे वर या वधु की प्राप्ति भी होती हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन दिनों व्रत रखने से चंद्र ग्रह के बुरे प्रभाव से भी बचा जा सकता है।

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क्योंकि यह महीना भगवान शिव का प्रिय माना गया है। इसलिए इस महीने प्रत्येक सोमवार को व्रत रखने से भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं। इस श्रावण मास में लघुरूद्र, अतिरूद्र और महारूद्र का पाठ कर प्रत्येक सोमवार का व्रत रखते हुए शिवजी का पूजन करना चाहिए।

सोमवार व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार सोमवार का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने रखा था। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने सच्चे मन से इस व्रत को रखा जिससे उन्हें भगवान शिव की प्राप्ति हुई। इसलिए आज के समय में भी ऐसा माना जाता है कि जो भी कन्या इस व्रत को पूरी श्रृद्धा के साथ रखती है उसकी शादी जल्द ही हो जाती है।

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हालांकि यह व्रत शादी के अलावा अन्य इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी रखा जाता है। यह व्रत सोलह सोमवार के व्रत से भी ज्यादा उत्तम माना गया है। शिवभक्त सावन के 16 सोमवार के व्रत यदि सावन में शुरू करें तो बहुत शुभ माना जाता है।

सावन महीने को लेकर एक पौराणिक कथा ये भी है कि सावन के महीने में ही भगवान परशुराम ने शिव की अराधना करने के बाद कांवड़ में गंगाजल भरकर शिव मंदिर ले गए थे और शिवलिंग पर जल चढ़ाया था। जिस कारण कांवड़ की परंपरा चलाने वाले भगवान परशुराम की पूजा भी सावन के महीने में की जाती है। मान्यता है कि श्रावण मास में भोलेनाथ का व्रत और पूजन शुरु भगवान परशुराम के कारण ही हुआ है।

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