किसानों संग समाज की मुस्कराहट के खातिर छोड़ दी ऐशोआराम वाली नौकरी   

साई कृष्णा कुछ नया कर गुजरने की चाहत और भीड़ से अलग दिखने का ख्वाब देखना तो आसान है, पर जमाने में अलग  फिज़ा बनाने के लिए जो हौसला और दम-ख़म चाहिए होता है, वो बहुत मुश्किल से ही देखने को मिलता है। वो कहते हैं न कि जुनूंं इश्क का हो या काम का जब सवार होता है, तो कुछ कर गुजरने की हिम्मत खुद ब खुद आ जाती है। आज हम जिस शख्सियत की बात कर रहे हैं उनमे ऐसा ही कुछ रहा होगा, जिसकी बदौलत वो अपने सपने को साकार करने में लगे हुए हैं। इस शख्‍स के सपने की बात करें तो वाकई में इसने जिस राह को चुन लिया है, ऐसी राह चुनने का कलेजा हरएक के नहीं होता। सपना तो छोटा था बस उद्यमी बनने का। एक ऐसा काम करने का जिससे समाज की सोच में भारी बदलाव आ सके, लोगों की जिंदगी को नयी राह मिल सके। इसके लिए इन जनाब ने अपनी लाखों की नौकरी को किनारे कर दिया। शानदार दफ़्तर, कुर्सी पर आराम से बैठकर काम करने की सहूलियत थी। इन्होंंने ग्रेजुएट मैनेजमेंट एडमिशन टेस्ट यानी जीमैट भी पास किया। अमेरिका के मशहूर आईवी लीग स्कूल में एमबीए करने के हकदार बने। इतना ही नहीं दोगुना वेतन देकर नौकरी पर रखने के लिए मुंबई की एक मैनेजमेंट कंसल्टेंसी कंपनी तैयार बैठी थी। लेकिन साई कृष्णा के नाम की पहचान रखने वाले इस शख्स को यह सब रास नहीं आया क्योंकि इनकी मंजिल तो इन्हें और ही ले जाने को बेताब थी।

साई कृष्णा का अडिग फैसला

योरस्टोरी के मुताबिक, साई कृष्णा मिल्लेट्स के उत्पाद बनाकर बेचना और उद्यमी बनने का अपना मन बना चुके थे और फैसले पर अडिग थे। उन्होंने ‘हेल्थ सूत्रा’ के नाम से स्टार्टअप चालू किया। ऐसा भी नहीं था कि उद्यमी बनने का जूनून सवार था और इसी जूनून में उन्होंने अपनी खुद की कंपनी शुरू कर दी थी। साई कृष्णा ने ‘हेल्थ सूत्रा’ की नींव रखने से पहले खूब शोध और अनुसंधान किया। बाज़ार को समझा। कारोबार की संभावनाओं को जाना। ज़मीनी हकीकतों का भी पता लगाया। इसके बाद जब मन विश्वास से भर गया तब जाकर उद्यमी बनने का साहसिक फैसला लिया।

इस फैसले के पीछे एक बड़ा मकसद किसानों की मदद करना भी था। साई कृष्णा चाहते थे कि ड्राई लैंड यानी शुष्क भूमि वाले इलाकों के किसानों को घाटे से उबारकर उनकी मदद की जाय। वैसे भी साई कृष्णा के लिए किसानों की मदद का ख्याल कोई नया नहीं था। बचपन से ही वे किसानों की परेशानियों के बारे में जानते थे। साई कृष्णा के माता-पिता, पी वेंकटेश्वर राव और शिवप्रिया , दोनों टीचर थे। जिस साल साई कृष्णा का जन्म हुआ था यानी 1989 में पिता वेंकटेश्वर राव ने गुंटूर जिले के नरसारावपेट इलाके में एक रेजिडेंशियल स्कूल खोला था। इसी स्कूल से साई कृष्णा ने भी दसवीं तक की पढ़ाई की थी। साई कृष्णा जब ‘हिन्दू स्कूल’ नाम की इस आवासीय पाठशाला में पढ़ रहे थे तभी से वे किसानों की समस्याओं के बारे में जानने लगे थे। ‘हिन्दू स्कूल’ में पढ़ने के लिए आस-पड़ोस के गाँवों से आने वाले ज्यादातर बच्चे किसानों के घर-परिवार से ही थे। जिस इलाके में स्कूल था वो जगह पलनाडु कहलाती हैं। पलनाडु ऐसा इलाका है जहाँ बारिश सामान्य से कम होती है। यही वजह है कि किसानों के सर पर हमेशा सूखा मंडराता रहता है। बारिश ना होने का सीधा मतलब होता किसानों के लिए परेशानी। पानी की किल्लत की वजह से खेती नहीं हो पाती और किसानों को आमदनी बंद रहती। आमदनी बंद होने पर हालत ऐसी हो जाती कि किसान न अपने बच्चों के स्कूल की फीस जमा करवा पाते न ही किताबें खरीद पाते। इन बच्चों के ज़रिये ही साई कृष्णा ने बचपन से ही किसानों की समस्याओं को देखना और समझना शुरू कर दिया था। यही वजह भी थी कि जब बड़ा होकर साई कृष्णा ने उद्यमी बनने का फैसला किया तो मकसद किसानों की मदद का भी था।

2011 में आईआईटी दिल्ली से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन्स में बीटेक की डिग्री के साथ पासआउट होते ही साई कृष्णा को ‘आईडिस्कवरआई’ नाम की एक कंपनी में नौकरी मिल गयी थी। शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे इस स्टार्टअप में साई कृष्णा ने बतौर कंटेंट डेवेलपर, करिकुलम डिज़ाइनर और एजुकेशन कोच काम किया। इस कंपनी के लिए एक ही तरह का काम करते-करते जब साई कृष्णा का जी उब गया तब उन्होंने कुछ दिनों की छुट्टी ली। लेकिन, दिलचस्प बात ये कि इस छुट्टी के दौरान उन्होंने आराम नहीं किया। बचपन की यादों का मन पर कुछ तरह असर पड़ा था कि साई कृष्णा छुट्टी के दौरान गाँवों और खेतों की ओर चल पड़े। कई गाँव घूमे, कई किसानों से बातचीत की। इस दौरान साई कृष्णा ख़ास तौर उन क्षेत्रों में गए जहाँ बारिश कम होती है और किसानों को खेती के लिए पानी की किल्लत झेलनी पड़ती है। पानी की किल्लत में खेती न कर पाने से किसानों की समास्याओं और खेती के प्रति कम होती दिलचस्पी ने साई कृष्णा को हिलाकर रख दिया। उनका मन पसीज गया। किसानों की हालत देखकर उन्होंने ठान ली कि वे इनकी भलाई के लिए ज़रूर कुछ करेंगे।

पहले तो साई कृष्णा के मन में ये ख़याल आया कि किसानों को कुछ नया सिखाया जाय । लेकिन जल्द ही उन्हें अहसास हो गया कि किसान खेती में उनसे ज्यादा अनुभव रखते हैं और उन्हें शायद ही कुछ नया सिखाया जा सकता है। इसी वजह से साई कृष्णा ने कुछ बिलकुल नया करते हुए किसानों की मदद करने की दिशा में सोचना शुरू कर दिया।

कुछ नया करने की सोच ही उन्हें बापट्ला के कॉलेज ऑफ़ फ़ूड साइंस एंड टेक्नोलॉजी ले गयी। आचार्य एन. जी. रंगा कृषि विश्वविद्यालय से अनुबद्ध इस कालेज में साई कृष्णा की एक रिश्तेदार डॉ जे. लक्ष्मी काम करती थीं। डॉ जे. लक्ष्मी ने साई कृष्णा को किसानों, खेती-बाड़ी, तरह-तरह की फसलों के बारे में जानकारी दी। साई कृष्णा को बहुत जल्द ही इस बात का अहसास हो गया कि जौ, बाजरा, जुवार, रागी जैसे अन्न में कई सारे पोषक तत्व हैं। ये सारे अन्न शरीर को बहुत लाभ पहुंचाते हैं। मिल्लेट्स को खाने से लोगों को सिर्फ और सिर्फ लाभ ही मिलता है। इतना ही नहीं ये सारे अन्न सूखे क्षेत्र में उगाए जाते हैं और इन्हें उगाने के लिए ज्यादा पानी की भी ज़रूरत नहीं होती है। मिल्लेट्स के बारे में मिली इन सब जानकारियों ने साई कृष्णा के मन में नए-नए विचारों को जन्म देना शुरू किया। मिल्लेट्स में उनकी दिलचस्पी लगातार बढ़ती चली गयी। अलग-अलग जगह जाकर वे मिल्लेट्स के बारे में और भी जानकारियां जुटाने लगे। साई कृष्णा को ये भी पता चला कि हाइपरटेंशन, डायबिटीज जैसी लाइफस्टाइल डिज़ीज़ यानी जीवन शैली की वहज से होने वाली बीमारियों से छुटकारा दिलाने में भी मिल्लेट्स बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं। सरकार भी जुवार, बाजरा, रागी जैसे मिल्लेट्स की खेती को बढ़ावा देने की हर मुमकिन कोशिश कर रही है।

ये सब जानकारियां हासिल करने के बाद साई कृष्णा को लगा कि उन्हें अपनी मंज़िल तक पहुँचने का रास्ता मिल गया। उन्होंने फैसला कर लिया कि वे मिल्लेट्स के उत्पाद बनाकर बेचने का कारोबार करेंगे। उन्होंने ठान ली कि वे सूखा-क्षेत्र के किसानों से सीधे मिल्लेट्स खरीदेंगे और उनके अलग-अलग फ़ूड आइटम्स बनाकर बाज़ार में बेचेंगे।

साई कृष्णा को विश्वास हो गया कि मिल्लेट्स के कारोबार से जहाँ एक ओर सूखा-क्षेत्र के किसानों को फायदा होगा वही दूसरी तरफ अलग-अलग लाइफस्टाइल डिज़ीज़ से परेशान लोगों को स्वास्थ-लाभ भी मिलेगा। ज्ञान हासिल करने के बाद विश्वास से सराबोर साई कृष्णा ने छुट्टी से लौटने के कुछ दिनों बाद ही ‘आईडिस्कवरआई’ में लाखों की नौकरी छोड़ दी। साई कृष्णा ने अपने फैसले के मुताबिक मिल्लेट्स के उत्पादों का कारोबार शुरू किया। ‘हेल्थ सूत्रा’ के नाम से कंपनी खोली और दुनिया का बताया कि स्वास्थ के लिए फायदेमंद मिल्लेट्स के फ़ूड आइटम्स बनाकर बेचते हुए किसानों और बाकी सभी लोगों की भलाई करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ी दी है और उद्यमी बन गए हैं।

काफी जद्दोजहद के बाद साई कृष्णा ने हैदराबाद के बालानगर इलाके में अपना मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बनाया। अलग-अलग सूखा-क्षेत्रों के किसानों से जुवार, रागी जैसे मिल्लेट्स खरीदने शुरू किये। किसानों को फायदा पहुंचाने के मसकद से साई कृष्णा उन्हें वाजिब कीमत देने लगे। साई कृष्णा की ‘हेल्थ सूत्रा’ फिलहाल मिल्लेट्स से चौदह उत्पाद (खाने के आइटम) बनाकर बाजार में बेच रही है। ‘हेल्थ सूत्रा’ ने पाप्कॉर्न की तर्ज़ पर जोवरपॉप्स बनाए हैं। ओट्स और राइस फलैक्स/ वीट फलैक्स के विकल्प के तौर पर जुवार फलैक्स और जुवार रवा भी बनाया है। आने वाले दिनों में और भी कई सारे मिल्लेट्स के उत्पाद बाज़ार में लाने की योजना बना चुके हैं साई कृष्णा।

साई कृष्णा ने ‘हेल्थ सूत्रा’ के अभी तक के कारोबार के बारे में भी बताया। उनके मुताबिक ‘हेल्थ सूत्रा’ के उत्पाद पांच सौ से भी ज्यादा स्टोर्स में उपलब्ध हैं। हर महीने तीस हज़ार से ज्यादा उत्पादों की बिक्री हो रही है। इस बिक्री से दस लाख का कारोबार हर महीने हो रहा है। दो सूपर स्टॉकिस्ट्स से भी टाई-अप हो चुका है और भी इसी तरह के समझौतों की कोशिशें जारी हैं।

ऐसे भी नहीं है कि साई कृष्णा ने आसानी से अपना ये स्टार्टअप शुरू कर दिया और मुनाफा कमाने लगे। उन्हें कई तरह की समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। वे बताते हैं,”लाइसेंस हासिल करने के लिए कई जगह जाना पड़ा। सरकारी दफ्तरों के कई चक्कर काटने पड़े। हमने किसी से सीड मनी भी नहीं ली। बैंक से कर्ज़ा लेने के लिए भी मुसीबतें झेलनी पडीं। मेरे पास कोई प्रॉपर्टी नहीं थी और इस वजह से बैंक से कोलेट्रल फ्री लोन नहीं मिल रहा था। आगे चलकर हमें क्रेडिट गारंटी स्कीम के तहत लोन लेना पड़ा। टेक्नोलॉजी भी एक बहुत बड़ी समस्या रही। मिल्लेट्स के अलग-अलग उत्पाद बनने की टेक्नोलॉजी भी देश में उन्नत नहीं हैं। जो टेक्नोलॉजी मौजूद है हमने उसी में सुधार किया और नए-नए उत्पाद बनाने शुरू किये।”

साई कृष्णा को इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मिल्लेट्स रिसर्च से भी मदद मिली। इस इंस्टिट्यूट के डॉ. दयाकर राव ने टेक्नोलॉजी के बेहतर इस्तेमाल के लिए समय-समय पर अपने सुझाव दिए।

साई कृष्णा के काम से उत्साह तो उनके माता-पिता और दोस्तों का भी बढ़ा है। एक समय अपने बच्चे को अच्छी नौकरी मिल जाय इस मकसद से माता-पिता ने साई कृष्णा को रामय्या इंस्टिट्यूट से आईआईटी कोचिंग के लिए हैदराबाद भेजा था। साई कृष्णा ने पहले ही एटेम्पट में आईआईटी की सीट भी हासिल कर ली। और, जब वे नौकरी करने लगे तब और भी ख़ुशी हुई। चूँकि बेटे की नौकरी शिक्षा के क्षेत्र में थी उनके लिए ये सोने पर सुहागा था। लेकिन जब बेटे ने लाखों की तनख्वा वाली नौकरी छोड़कर उद्यमी बनने का फैसला लिया तो उन्हें बहुत हैरानी हुई और कुछ परेशानी भी। लेकिन, अब माँ-बाप बेटे की कामयाबी से बहुत खुश और उत्साहित हैं। दिलचस्प बात ये भी है कि एक पुराना साथी और सहपाठी महीधर भी नौकरी छोड़कर अब साई कृष्णा के साथ जुड़ गया है। ये दोस्त साई कृष्णा के काम से इतना प्रभावित हुआ कि उसने भी नौकरी छोड़कर उद्यमी बनने का फैसला लिया।

साई कृष्णा का अब ये मानना है कि अगर कोई वेंचर कैपिटलिस्ट उनकी कंपनी में निवेश करता है तो वे बड़ी तेज़ी से अपने मिशन को आगे बढ़ा पाएंगे। उनके मुताबिक मिल्लेट्स के उत्पादों का बाज़ार बहुत बड़ा है और इस बाज़ार में सेहतमंद फ़ूड आइटम लाने से फायदा सिर्फ शहर के लोगों को ही नहीं बल्कि गाँव के किसानों को भी होगा। शहर के लोग स्वस्थ रहेंगे और गाँव भी तरक्की करेंगे।

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