समझौता के सालभर बाद नतीजे को लेकर नागा समाज बंटा

नगा समाज

नई दिल्ली। ऐतिहासिक नगा समझौता का एक साल होने वाला है, लेकिन उसके विस्तृत स्वरूप पर अस्पष्टता अब भी मंडरा रही है। समझौते पर नगा समाज विभाजित लग रहा है। कुछ लोग उदासीन इसलिए हैं कि ‘वृहत नगालिम’ का प्रस्ताव खारिज हो गया है, जबकि कुछ लोग नगालैंड से अलग कर एक पृथक राज्य के गठन के लिए जोर लगा रहे हैं।

गत साल अगस्त में हुए नगा शांति समझौता के एक पक्षकार पूर्वी नगालैंड पीपुल्स संगठन (ईएनपीओ) के महासचिव मानलंग फोम कहते हैं कि समझौते में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, बल्कि वह एक अलग सीमांत नगालैंड के लिए आगे दबाव बनाएंगे।

फोम ने कहा, “मैं समझता हूं, हमारा मुद्दा-सीमांत नगालैंड की मांग ज्यादा महत्वपूर्ण है। नगा शांति समझौता पर कोई टिप्पणी नहीं करना ज्यादा उचित है जो बहुत संवेदनशील है। समझौता होने के बाद काफी समय बीत गए हैं।”

ईएनपीओ चार पूर्वी जिलों को मिलाकर एक अलग राज्य का गठन चाह रहा है।

छह दशक से चल रहे नगा संघर्ष को समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों के बीच दो दशक तक चली वर्ताओं के बाद गत साल 3 अगस्त को केंद्र सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच ऐतिहासिक नगा शांति समझौता हुआ था।

समझौता होने के बाद सरकार ने कहा था कि वह अगले छह माह में विस्तृत विवरण प्रस्तुत करेगी, लेकिन अब तक ऐसा नहीं कर पाई है। बिलंब के कारण एनएससीएन के गुटों में मतभेद बढ़ रहा है। समझौता को सफल बनाने के लिए इन गुटों का समर्थन महत्वपूर्ण है।

एनएससीएन (एकीकरण) के महासचिव खिटोवी झिमोमी ने कहा कि नगालैंड के लोग समझौता का समर्थन नहीं कर रहे हैं, क्योंकि एनसीएन (आईएम) के नेता टी. मुइवा मणिपुर के नगा हैं जो केवल अपने लोगों के लिए बोलते हैं। झिमामी का गुट समझौता में शामिल नहीं था।

उन्होंने आईएएनएस से कहा, “समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद मणिपुर में नगा समाज के लोगों ने मोमबत्तियां जलाकर खुशियां मनाईं, जबकि नगालैंड में एक माचिस की एक तिली तक नहीं जली।”

समझौते का सबसे पहले समर्थन करने वाला एनएससीएन (पुनर्सुधार) के महासचिव पी. टिकहक ने कहा कि केंद्र सरकार समझौता को अंजाम तक पहुंचाने में जानबूझकर देर कर रही है और इस पर बढ़ रहे मतभेद से आगे स्थिति और जटिल हो रही है।

गृह मंत्रालय सूत्रों के अनुसार, अगर नगा शांति समझौता हकीकत बन जाता है तो केवल एनएससीएन (आईएम) और उसके नेतृत्व को लाभ होगा और अन्य गुटों को लाभ नहीं होगा, क्योंकि वे समझौता वार्ता में शामिल नहीं हुए थे।

सूत्रों को कहना है कि समझौते की एक उपधारा के तहत एनएससीएन के 4000 कैडरों को समाहित करने के लिए अर्धसैनिक बल का एक नया बटालियन बनाया जाएगा। लेकिन अन्य गुटों के कैडरों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है।

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