संकष्टी चतुर्थी पर जानें क्या करें क्या नहीं, जानें पूजा की विधि…
चतुर्थी के दिन व्रत रखने वाले सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद पूजा स्थल पर एक चौकी पर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर को स्थापित करें। दिनभर उपवास रखें। फिर शाम के समय गणेश जी का षोडशोपचार पूजन करें। उन्हें पुष्प, अक्षत्, चंदन, धूप-दीप, और शमी के पत्ते अर्पित करें। गणेश जी को दुर्वा जरूर चढ़ाएं और लड्डुओं का भोग लगाएं। गणेश जी के मंत्रों का जाप करें। इसके बाद गणेश जी की आरती करें। रात में चंद्रमा को जल से अर्घ्य दें। अंत में ब्राह्मण के लिए दक्षिणा और दान का सामान अलग कर दें। उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण कर व्रत पूर्ण करें।
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो।
अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेशजी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।