शीतला अष्‍टमी : ऐसे करिए मां की पूजा तो हर मनोकामना होगी पूरी

शीतला अष्‍टमीशीतला अष्‍टमी का पर्व किसी न किसी रूप में भारत के हर कोने में मनाया जाता है। कोई माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को, कोई वैशाखकृष्ण पक्ष की अष्टमी को तो कोई चैत्र के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी को इस पर्व को मनाता है। शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। इस पर्व को ‘बूढ़ा बसौड़ा’, ‘बसौड़ा’, ‘बासौड़ा’, ‘लसौड़ा’ या ‘बसियौरा’ भी कहा जाता है।

ऐसेे होती है पूजा

भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए ‘रंग पंचमी’ से अष्टमीतक मां शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं। बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलुवा, रावड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिए जाते हैं। तत्पश्चात सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं। पूजा करने के बाद घर की महिलाओं ने बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवारों में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।

शीतला माता का भाेग

शीतला अष्‍टमी पर आज शीतला मां की पूजा-अर्चना में बासी ठंडा खाना ही माता को भोग लगाया जाता है, जिसे बसौड़ा कहा जाता है। अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रत-उपवास कर माता की कथा का श्रवण होता है। कथा समाप्त होने पर मांं की पूजा-अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक पढ़ा जाता है।शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है। साथ ही शीतला माता की वंदना के उपरात उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है।

रोग मुक्तिकारक है व्रत

प्राचीन काल में जब आधुनिक चिकित्सा विधि अस्तित्व में नहीं थी तब शीतला यानी चेचक की बीमारी महामारी के रूप में फैलती थी। उस समय ऋषियों ने देवी की उपासना एवं साफ-सफाई के विशेष महत्व को बताया। स्कंद पुराण के अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग की देवी हैं। माता शीतला बच्चों की रक्षक हैं तथा रोग दूर करती हैं।

शीतला अष्‍टमी का महत्व

चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है। शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। आज के समय में शीतला माता की पूजा स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण महत्वपूर्ण है।

स्वच्छता की देवी मां शीतला

शीतला माता हाथों में कलश, सूप, झाडू तथा नीम के पत्ते धारण किए हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं। माता के एक हाथ में जल से भरा कलश है। माता मंगल कलश से जल छिड़क कर हमें निरोग और स्वस्थ काया प्रदान करती हैं। माता हाथ में झाड़ू रखती हैं। इससे वे सफाई की प्रेरणा देती हैं। माता के पास सूप या सूपड़ा भी रखा है जिससे वे अनाज की सफाई एवं स्वच्छ भोजन करने की प्रेरणा देती हैं।

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