जानिये कर्नाटक की पहचान कहे जाने वाले विधान सौधा की कहानी

विधान सौधायह प्रतिष्ठित इमारत आज बैंगलोर और कर्नाटक की खास पहचान है। छह दशक पहले जब केंगल हनुमंतैया राज्य के मुख्यमंत्री थे, विधान सौधा की इमारत के निर्माण की योजना बनायी गयी थी। विधान सौधा का निर्माण बैंगलोर में पश्चिमी और औपनिवेशिक दौर की याद दिलाने वाली संरचना की प्रतिक्रिया के रूप में देशी अवधारणा की सोच का परिणाम थी, जो देशी संस्कृति एवं वास्तुकला को परिभाषित करने की महत्वाकांक्षा के साथ एक भव्य निर्माण के रूप में खड़ी की गयी।

विधान सौधा को चार साल में बान कर तैयार किया गया

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, इस भवन का निर्माण कार्य शहर के केंद्रीय कारागार के 5000 से अधिक कैदियों की आज़ादी का कारण बना था। 1950 के दशक में हनुमंतय्या को यह इमारत बनाने का विचार क्यों आया होगा, इसके बारे में उन्होंने तब एक दैनिक को बताया था, ‘आप जानते हैं मेरे मन में इस भवन के निर्माण की कल्पना कैसे आयी? एक रूसी सांस्कृतिक प्रतिनिधि मंडल बैंगलोर के दौरे पर आया था, मैंने उन्हें उस समय शहर के दर्शन करवाए, तब उन्होंने पूछा, ‘क्या आप अपने वास्तुशिल्प के बारे में जानकारी रखते हैं? यहाँ तो सब यूरोपियन इमारतें हैं?’

तब इस इमारत की रूपरेखा बनाई गयी और 1950 में उस समय के सरकारी आर्किटेक्ट और मुख्य अभियंता बी. आर. मानिक्कम ने इस पर हस्ताक्षर किये। टी पी इस्सर ने अपनी किताब ‘दि सिटी ब्युटीफुल’ में इसके बारे में बताया है कि यह आर्किटेक्चर द्रवीड और राजस्थानी शिल्पकला का मिश्रण है। कर्नाटक विधानसभा के वेबसाइट के अनुसार, तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 31 जुलाई 1951 में इस इमारत की आधारशिला रखी थी और 1952 में परियोजना का निर्माण कार्य शुरू होकर 1956 में पूरा हुआ। विधान सौधा के निर्माण में जिन श्रमिकों से काम लिया गया था, वे प्रशिक्षित नहीं थे। उनमें 1500 मेस्त्री और कारपेंटर थे, जिन्हें इस काम पर लगाया गया था।

विधान सौधा में 172 कमरे हैं। हालाँकि समयानुसार मंत्री, अधिकारी एवं कर्मचारियों की आवश्यकता के अनुसार, कमरों की भीतरी साज सज्जा में परिवर्तन किया जाता रहा, लेकिन इसमें शुरू से लेकर अब तक कमरे बढ़ाने के लिए किसी तरह की कोई तोड़ फोड़ नहीं की गयी।

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