क्या कहता है वाराणसी का जातीय समीकरण ? क्या है 2019 का गणित
वाराणसी लोकसभा सीट पर चुनावी लड़ाई दिलचस्प हो गई है. इस सीट पर बीजेपी, महागठबंधन, कांग्रेस के अलावा निर्दलीय भी ताल ठोक रहे हैं. खैर परिणाम जो भी हो, लेकिन अभी तक के चुनावी गणित में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जीत के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं. यहां बीजेपी से पीएम मोदी जबकि गठबंधन से पूर्व बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव और कांग्रेस से पांच बार विधायक रहे अजय राय उम्मीदवार हैं. इस चुनाव में निर्दलीय अतीक अहमद के आने के बाद से खेल बिगड़ना तय माना जा रहा है.
2019 का गणित क्या है?
2019 में वाराणसी लोकसभा सीट पर मुकाबला रोचक होने वाला है. यहां जीत-हार से ज्यादा वोटों के अंतर पर नजरें रहेंगी. यह पीएम मोदी की सेफ सीट मानी जा रही है. 25 अप्रैल को पीएम मोदी अपने मेगा रोड शो के जरिए पार्टी और एनडीए की ताकत दिखा चुके हैं, लेकिन बाकी दल के नेताओं का गणित बदलना तय है. निर्दलीय से गठबंधन के उम्मीदवार बने पूर्व बीएसएफ जवान तेज प्रताप यादव के वोट पर निर्दलीय अतीक अहमद चोट कर सकते हैं.
ऐसा कहा जा रहा है कि मुस्लिम वोटर निर्दलीय अतीक अहमद की ओर मूव कर सकते हैं. वहीं, कांग्रेस के अजय राय का असर भी कम दिख रहा है, क्योंकि उनसे पहले यहां से कांग्रेस राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के चुनाव लड़ने की अटकलें थी. हालांकि कुछ रोज पहले ही कांग्रेस ने अजय राय को प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतारा है. वहीं, 2014 वाली लहर का असर कम होने से मोदी के वोट पर्सेंटेज में भी कमी आ सकती है. कुल मुलाकर यहां सीधा मुकाबला महागठबंधन और बीजेपी में होना है. अतीक अहमद को गठबंधन का खेल बिगाड़ने वाला माना जा रहा है, जबकि बीजेपी को 2014 वाली जीत नहीं मिलते दिखाई दे रही है.
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वाराणसी लोकसभा सीट पर 7वें चरण में वोट डाले जाएंगे. यहां के जातीय समीकरण को देखें तो ब्राह्मण, वैश्य और कुर्मी मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं. करीब 3 लाख वैश्य, 2.5 लाख कुर्मी, 2.5 लाख ब्राह्मण, 3 लाख मुस्लिम, 1 लाख 30 हजार भूमिहार, 1 लाख राजपूत, 1.75 लाख यादव, 80 हजार चौरसिया, एक लाख दलित और एक लाख के करीब अन्य ओबीसी मतदाता हैं. हालांकि बीजेपी ने अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) के साथ गठबंधन करके कुर्मी वोट को एक बार फिर साधने की कवायद की है. जातिगत लिहाज से इस सीट पर सवर्ण वोट बैंक असरदायक माना जाता है.
2014 में 371784 वोट से जीते थे पीएम मोदी
2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों के अंतर से हराया था. नरेंद्र मोदी को कुल 5,81,022 वोट मिले थे, जबकि अरविंद केजरीवाल को 2,09,238 मत मिले. कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय 75,614 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर थे. 2014 में बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी विजय प्रकाश जायसवाल चौथे स्थान पर थे. उन्हें 60,579 वोट मिले थे, जबकि समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी कैलाश चौरसिया 45,291 मतों के साथ 5वें स्थान पर थे.
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अतीक अहमद का राजनीतिक सफर
1989 में पहली बार इलाहाबाद (पश्चिमी) विधानसभा सीट से विधायक बने अतीक अहमद ने 1991 और 1993 का चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ा और विधायक भी बने. 1996 में इसी सीट पर अतीक को समाजवादी पार्टी ने टिकट दिया और वह फिर से विधायक चुने गए. अतीक अहमद ने 1999 में अपना दल का दामन थाम लिया. वह प्रतापगढ़ से चुनाव लड़े पर हार गए. और 2002 में इसी पार्टी से वह फिर विधायक बन गए. 2003 में जब यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी तो अतीक ने फिर से मुलायम सिंह का हाथ पकड़ लिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने अतीक को फूलपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट दिया और वह सांसद बन गए. यूपी की सत्ता 2007 में मायावती के हाथ आ गई. इसके बाद अतीक अहमद के हौसले पस्त होने लगे. उनके खिलाफ एक के बाद एक मुकदमे दर्ज हो रहे थे. इसी दौरान अतीक अहमद भूमिगत भी हो गए थे.
अजय राय ने बीजेपी से शुरू की थी राजनीतिक पारी
1996 में अजय राय बीजेपी के टिकट पर वाराणसी की कोइलसा विधासनभा सीट से चुनाव लड़े. उन्होंने 9 बार के सीपीआई विधायक उदल को 484 मतों के अंतर से हराया था. 2002 और 2007 का भी चुनाव अजय राय बीजेपी के टिकट पर इसी विधानसभा क्षेत्र से लड़े और जीते. 2009 में अजय राय वाराणसी लोकसभा सीट से बीजेपी का टिकट चाहते थे. पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना किया तो वह बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. 2009 का चुनाव अजय राय सपा के टिकट पर वाराणसी से लड़े और तीसरे नंबर पर रहे. अजय राय को इस चुनाव में 1.23 लाख वोट मिले थे. इस चुनाव में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी जीते थे.
पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं तेज बहादुर यादव
2017 में बीएसएफ जवान तेज बहादुर यादव का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने जवानों को मिलने वाले भोजन की क्वालिटी को लेकर शिकायत की थी. इस वीडियो के बाद वह सुर्खियों में आए थे. उन्होंने सरकार के खिलाफ आवाज उठाई थी. तेज बहादुर यादव पहली बार किसी चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं.