लाचार पिता का सहारा बनी बेटियां, बग्गी खीचकर तय किया मीलो का सफ़र   

लाचार पिता का सहारारिपोर्ट- सचिन कुमार  

शामली। केवल बेटे ही बुढ़ापे और मुसीबतों में सहारा नहीं बनते, बल्कि आज के आधुनिक युग मे बेटियों ने बेटो को भी पछाड़ दिया है। बेटी की जिंदादिली, बहादुरी का जीता-जागता उदाहरण शामली में देखने को मिला। जहां बुढ़ापे, अन्धापन, और मुफलिसी का शिकार एक बूढ़े पिता की लाठी उसकी बेटी बन गयी है।

बेटी ही पिता को बग्गी में बिठाकर घोड़े की जगह उसे खुद खिचती है। एक खच्चर था वो भी किसी ने चोरी कर लिया। पिता और अपनी बहन को बग्गी पर बैठाकर उसे खीच रही ये बेटी अपनी तीसरी बहन की तलाश में निकली है। इस परिवार की तीसरी बेटी कावड़ यात्रा के दौरान कही गुम हो गयी थी। जिसे तलाश करने ये लोग हरिद्वार गए थे और अब वही से बिना घोड़े की बग्गी से लौट रहे है।
सिस्टम, अकेलेपन और प्रसाशन की अनदेखी का मारा ये परिवार अब खुद अपनी गुमशुदा बेटी को तलाश करने के लिए निकला है। पैसे और पर्याप्त साधन न होने के कारण इन लोगों ने बग्गी में बैठकर बेटी की तलाश शुरू की है। दरअसल ये पूरा परिवार बागपत के निवाड़ा का रहने वाला है। बग्गी पर बैठा नेत्रहीन बुजुर्ग का नाम सलमू है। सलमू बागपत के निवाड़ा का रहने वाला है और सलमू का परिवार तंगहाली ,बदहाली और मुफलिसी की जिंदगी जी रहा है।

सलमु के कोई बेटा नहीं है। भगवान ने सलमू को वरदान के रुप में तीन बेटियां दी थी, जिसमें से एक बेटी कावड़ यात्रा के दौरान गायब हो गयी। गांव के ही किसी व्यक्ति ने सलमू को बताया के उसकी तीसरी बेटी हरिद्वार में है। नेत्रहीन सलमू न तो हरिद्वार का रास्ता जनता था और ना ही वहां जाने के लिए उसके पास पैसे थे ना ही कोई साधन।

लेकिन जब बेटी का पता चला तो सलमू ने अपनी बेटियों से सलाह कर अपनी खच्चर बग्गी लेकर हरिद्वार जाने का तय किया। योजना के अनुसार दोनों बेटियों के साथ सलमू घर से हरिद्वार के लिए निकल पड़ा, वहां जाकर तीसरी बेटी को काफी तलाश किया लेकिन उसका सुराग नहीं लगा। एक पुरानी कहावत है कि मुसीबत जब आती है तो चौतरफा निराशा हाथ लगती है। बेटी को तलाश करने के दौरान हरिद्वार में किसी ने सलमू का खच्चर भी चोरी कर लिया।

बेटी खोने का दुःख, मुफलिसी के अलावा सलमू के ये तीसरा सदमा भी समय ने दे दिया। अब बेचारा बेबस परिवार हरिद्वार से बागपत आये तो आये कैसे न तो पैसे थे और खच्चर भी चोरी हो गया। ऐसी दुखदायी स्थिति में दोनों बेटी अपने नेत्रहीन पिता का सहारा बन गयी। दोनों बेटियों ने बारी – बारी से बग्गी खीचकर घर तक ले जाने की योजना बनाई। इसी क्रम में दोनों बेटियां बग्गी खीचते हुए शामली तक आ पहुंची। वहां जब लोगों को दोनों बेटियों द्वारा बग्गी खीचते और सलमू की गुरबत की कहानी सुनी तो लोग सन रह गए।

बेटियों की जबाजी, बहादुरी के चलते 7 दिन बाद आज सलमू बग्गी में सवार होकर शामली पहुचा है और अभी कई दिन का सफर और बाकी है क्योंकि बागपत से शामली की दूरी 90 किलोमीटर है।

सरकार और प्रशासनिक  मशीनरी गरीब, मजलूमों की सहायता के लाख दावें करती हो,लेकिन बग्गी खिचती इन बेटियों को देखने के बाद सरकार और प्रसाशन के वे तमाम दावें हवाई और धोखा साबित होते है। अगर इन बेबस, लाचार बेटियों तक सरकारी मदद पहुँचती तो ये बेचारी जानवरो की तरह यूँ तपती गर्मी में बग्गी न खिचती। वो तमाम सामाजिक संस्थाएं जो गरीबो की सहायता का दम भर्ती है, आखिर क्यों इन गरीबो की मदद के लिए कोई हाथ आगे नहीं आता है।

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