जानिए कैसे होती है राष्‍ट्रपति चुनाव के वोटों की गिनती, काफी रोचक है तरीका

राष्‍ट्रपतिनई दिल्‍ली। हिंदुस्‍तान के नए राष्ट्रपति के लिए वोटों की गिनती शुरू हो गई है। अगला राष्‍ट्रपति कौन होगा यह शाम 5 बजे तक साफ हो जाएगा। शायद आपको पता नहीं होगा कि राष्‍ट्रपति पद के लिए वोटों की गिनती करने की एक रोचक प्रक्रिया अख्‍तियार की जाती है। आइए आपको बताते हैं कैसे होती है राष्‍ट्रपति के लिए वोटों की गिनती।

राष्‍ट्रपति चुनाव में वोटों की गिनती का तरीका

  • राष्‍ट्रपति के चुनाव में सबसे ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्‍ट्रपति वही बनता है, जो वोटरों यानी सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे। चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वोट यानी वेटेज पाना होगा।
  • इस समय राष्‍ट्रपति चुनाव के लिए जो इलेक्टोरल कॉलेज है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10,98,882 है। यानी जीत के लिए कैंडिडेट को हासिल करने होंगे 5,49,442 वोट। जो प्रत्याशी सबसे पहले यह कोटा हासिल करता है, वह राष्‍ट्रपति चुन लिया जाता है।
  • इस सबसे पहले का मतलब समझने के लिए वोट काउंटिंग में प्रायॉरिटी पर गौर करना होगा। सांसद या विधायक वोट देते वक्त अपने मतपत्र पर बता देते हैं कि उनकी पहली पसंद वाला कैंडिडेट कौन है, दूसरी पसंद वाला कौन और तीसरी पसंद वाला कौन आदि आदि।
  • सबसे पहले सभी मतपत्रों पर दर्ज पहली वरीयता के मत गिने जाते हैं। यदि इस पहली गिनती में ही कोई कैंडिडेट जीत के लिए जरूरी वेटेज का कोटा हासिल कर ले, तो उसकी जीत हो गई। लेकिन अगर ऐसा न हो सका, तो फिर एक और कदम उठाया जाता है।

हर उम्‍मीदवार का मत अति महत्‍वपूर्ण

  • राष्ट्रपति चुनाव में हर मतदाता का वोट एक ही होता है. वह हर उम्मीदवार को लेकर अपनी प्राथमिकता बता सकता है। हर वोट की गिनती के लिए कम से कम एक उम्मीदवार के नाम का समर्थन जरूरी होता है।
  • किसी भी प्रत्याशी को जीतने के लिए तयशुदा कोटे के वोट हासिल करने होते हैं। अगर पहले दौर में कोई नहीं जीतता, तो सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को चुनाव मैदान से बाहर कर दिया जाता है। फिर उसके हिस्से के वोट, दूसरी प्राथमिकता वाले प्रत्याशी के खाते में डाल दिए जाते हैं।

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  • इसके बाद भी कोई नहीं जीतता, तो यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है, जब तक कोई उम्मीदवार जीत के लिए तय कोटे के बराबर वोट हासिल नहीं कर लेता या एक-एक कर के सारे उम्मीदवार मुकाबले से बाहर हो जाएं और सिर्फ एक प्रत्याशी बचे।
  • इस तरह वोटर का सिंगल वोट ही ट्रांसफर होता है। यानी ऐसे वोटिंग सिस्टम में कोई मेजॉरिटी ग्रुप अपने दम पर जीत का फैसला नहीं कर सकता। छोटे-छोटे दूसरे ग्रुप्स के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। यानी जरूरी नहीं कि लोकसभा और राज्यसभा में जिस पार्टी का बहुमत हो, उसी का दबदबा चले। विधायकों का वोट भी अहम है।

मत के वेटेज ही सबकुछ

  • राज्यों के विधायकों के मत के वेटेज के लिए उस राज्य की जनसंख्या देखी जाती है। इसके साथ ही उस प्रदेश के विधानसभा सदस्यों की संख्या को भी देखा जाता है। वेटेज निकालने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है।
  • इस तरह जो अंक मिलता है, उसे फिर 1000 से भाग दिया जाता है। अब जो अंक आता है, वही उस राज्य के एक विधायक के वोट का वेटेज होता है। 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से ज्यादा हो तो वेटेज में 1 जोड़ दिया जाता है।
  • सांसदों के वोटों की कीमत अलग तरीके से तय की जाती है। इसके लिए राज्य के विधायकों के वोटों का मूल्य/776 (सांसदों की संख्या) से तय होता है।

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