राजस्थान में भी होगी कांटे की टक्कर, भाजपा के लिए नहीं होगी चुनौती आसान

राजस्थान भाजपा के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि 2014 में भाजपा की सफलता की दर यहां 100 प्रतिशत थी। पार्टी ने उस समय राज्य की सारी 25 सीटें जीत ली थीं जबकि कांग्रेस राज्य में शून्य पर आ गई थी। लेकिन अब पार्टी के लिए इस सफलता को बनाए रखना काफी मुश्किल है। राज्य में बीजेपी के पास कुछ ठोस मुद्दा नहीं दिखाई देता, लिहाजा पार्टी राष्ट्रवाद की भावनाओं के बल पर ही चुनाव जीतना चाहती है।

भाजपा

25 में से 18-20 जीतने की कवायद
बहरहाल, बीजेपी की लहर यहां धीरे-धीरे कमजोर पड़ती गई। 2018 की शुरुआत में 2 लोकसभा सीटों अजमेर और अलवर में उपचुनाव हुए। ये दोनों सीट भाजपा के पास थी। दोनों सीट भाजपा हार गई। कांग्रेस ने दोनों सीटों पर जोरदार जीत हासिल की। 2018 के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने भाजपा से सत्ता छीन ली। हालांकि विधानसभा चुनाव में जिस सफलता की उम्मीद कांग्रेस लगाई बैठी थी, वो सफलता नहीं मिली, जिस तरह से राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार के बीच राजस्थान में असंतोष था वो वोट में तब्दील नहीं पाया।

बहरहाल, विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अंदाज लगाया गया था कि कांग्रेस विधानसभा की 200 में से 130 के करीब सीटें जीत लेगी। लेकिन चुनाव परिणामों में कांग्रेस को सिर्फ 99 सीटें हाथ आईं। वहीं भाजपा ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। भाजपा को 73 सीटें मिली। छोटी पार्टियों और निर्दलीय ने भी ताकत दिखाई। 13 निर्दलीय जीते। 2014 में लोकसभा चुनावों से पहले 2013 के विधानसभा चुनावों में राजस्थान में भाजपा की लहर थी। भाजपा को 200 में से 162 सीटें आईं थी। कांग्रेस 21 पर सिमट गई थी। यह लहर 2014 में बरकरार थी।

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लोकसभा की सारी सीटें भाजपा के पाले में आई। लेकिन 2018 में कांग्रेस के सता में आने के बाद ठीक उसी तरह का लाभ 2019 में कांग्रेस को मिलेगा, इस पर शंका है। लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि भाजपा को राजस्थान में 10 सीटें गंवानी पड़ सकती है। इन परिस्थितियों में नुकसान भाजपा को ही है।

कांग्रेस बन रही है बीजेपी के लिए चुनौती 
दरअसल, सारे राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि किसी भी पार्टी के लिए 100 प्रतिशत स्ट्राइक रेट को बरकरार कठिन है। बीते कुछ महीनों में अशोक गहलोत सरकार के कुछ फैसलों ने कांग्रेस का ग्राफ बढ़ाया है। इसमें किसानों की ऋण माफी शामिल है। भाजपा की चिंता यह है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को राजस्थान में 55 प्रतिशत मत मिले थे, लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा का मत प्रतिशत 38.8 प्रतिशत रह गए। उधर कांग्रेस का मत प्रतिशत 2014 के लोकसभा चुनावों के 30 प्रतिशत के मुकाबले 2018 के विधानसभा चुनाव में 39.3 प्रतिशत हो गया।

भाजपा की कोशिश है कि किसी तरह से 2018 के विधानसभा में मिले मत प्रतिशत में सुधार किया जाए। ताकि भाजपा 18-20 सीट जीतने में कामयाब हो जाए। यही कारण है कि भाजपा ने जाट नेता हनुमान बेनीवाल के लिए नागौर सीट छोड़ी है। गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला को भाजपा में शामिल करवाया है, लेकिन राहुल गांधी के किसान ऋण माफी और गरीब परिवारों के 72 हजार रुपये सलाना आर्थिक सहायता की घोषणा ने भाजपा के नाक में दम कर दिया है।

राहुल के मुद्दे और भाजपा 
राजस्थान की चुनावी रैलियों में दो बातें उभरकर आई हैं। राहुल गांधी मुद्दों पर चुनाव लड़ रहे है। नरेंद्र मोदी इमोशंस पर वोट पाने की स्थिति में दिख रहे हैं। राजस्थान में अबतक चार रैलियां भाजपा के स्टार प्रचारक और पीएम नरेंद्र मोदी ने की है। चार रैली राहुल गांधी ने की। मोदी ने उदयपुर, जोधपुर, बाड़मेर और चितौड़गढ़ में पार्टी का ही यशोगान किया। राहुल गांधी ने बांसवाड़ा, कोटा, अजमेर, में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, नोटबंदी, किसानों की खराब हालत की बात की।

पश्चिम राजस्थान में पानी का गंभीर संकट है। वहीं पूरे राजस्थान में किसान संकट में है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में किसान आंदोलन भी हुए। भाजपा को इसका खामियाजा भी विधानसभा चुनावों में भुगतना प़ड़ा। राज्य में बेरोजगारी मुख्य मुद्दा है यही वजह है कि गुर्जर जाति के नेता लंबे समय तक आरक्षण के मुददे पर  आंदोलन करते रहे।  स्थानीय पत्रकारों के अनुसार अगर जनता को 72 हजार रुपये सलाना देने की बात नीचे तक लोगों को समझ में आ गई तो राजस्थान मे भारी उलटफेर हो सकता है, क्योंकि फिलहाल भाजपा ने कांग्रेस पर बढ़त बना रखी है।

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भाजपा की रणनीति और दांव 
राजस्थान उन राज्यों में से एक है जहां कांग्रेस और भाजपा में सीधी टक्कर है। हाल ही में विधानसभा चुनावों में हार ने भाजपा को बैचेन कर दिया, इसलिए छोटे-छोटे दलों को भी भाजपा साध रही है। हनुमान बेनीवाल को भाजपा ने अपने साथ लिया और उन्हें नागौर सीट दे दी, लेकिन दोनों दलों में गुटबाजी भी है। राजस्थान में दोनों पार्टियां राहुल और मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही हैं। भाजपा के अंदर वसुंधरा राजे सिंधिया का महत्व घटा है, उनके तमाम विरोध के बावजूद जयपुर की राजकुमारी दीया को राजसमंद से भाजपा ने टिकट दिया।

वसुंधरा प्रधानमंत्री की एक रैली को छोड़ बाकी रैलियों में नजर भी नहीं आईं। लोकसभा चुनाव सीधे अमित शाह के नियंत्रण में हो रहा है। विधानसभा चुनावों में वसुंधरा की टिकट बंटवारे में चली। लेकिन लोकसभा में वसुंधरा विरोधी भी टिकट पाने में कामयाब हो गए।

आंतरिक गुटबाजी से परेशान कांग्रेस 
उधर गुटबाजी कांग्रेस में भी है। अशोक गहलोत सचिन पायलट के बीच सबकुछ पहले जैसा नहीं है। जानकार बताते हैं कि सचिव पायलट ने काफी चालाकी से अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को जोधपुर से चुनाव में उतरवा दिया। अशोक गहलोत अपने बेटे के लिए  सिरोही से टिकट चाहते थे। लेकिन सचिन पायलट का तर्क था कि अशोक गहलोत राज्य के बड़े नाम हैं। जोधपुर सीट पर मजबूत उम्मीदवार चाहिए, इसलिए वैभव ठीक रहेंगे।

अशोक गहलोत को मजबूरी में वैभव को जोधपुर से उतारना प़ड़ा। जोधपुर से केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव मैदान में हैं लिहाजा वैभव की जीत आसान नहीं होगी।  गजेंद्र सिंह शेखावत स्वजातीय वोटों समेत दूसरी जाति के वोट भी ले रहे हैं। अगर वैभव की हार होती है तो सचिन पायलट का कद कांग्रेस में और बढ़ेगा, क्योंकि वैभव की हार अशोक गहलोत के कद को कम करेगी। आपको बता दें कि मुख्यमंत्री पद को लेकर पायलट औऱ गहलोत के बीच जोरदार टकराव की बात किसी से छिपी नहीं है।

 

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