अब पहले से कई गुना चलेगी मोबाइल की बैटरी आईआईटी रिसर्चर्स ने कर दिखाया कमाल

मोबाइल फोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहनों और अन्य उपकरणों की बैटरियों की क्षमता अब 20 गुना तक बढ़ाई जा सकेगी। यानी वर्तमान में जो बैटरी एक दिन तक चलती है उसे 20 दिन बाद रिचार्ज करने की जरूरत पड़ेगी। खास बात है कि बैटरी को चार्ज करने में भी चंद मिनट ही लगेंगे।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. विश्वनाथ बालकृष्णन, रिसर्च स्कॉलर पीयूष अवस्थी ने इसके लिए इलेक्ट्रोड विकसित करने में सफलता हासिल की है।

मोबाइल की बैटरी

बैटरी में प्रयोग होने वाले एलाइंड कार्बन नैनोट्यूब्स आधारित इन इलेक्ट्रोड से उच्च क्षमता के एनर्जी सुपरकैपेसिटर बनाए जा सकते हैं। इस तकनीक से बैटरी की क्षमता तो बढ़ेगी ही, ये फटाफट चार्ज भी हो सकेगी। यह शोध पत्र एडवांस्ड मैटीरियल इंटरफेस, एसीएस एप्लाइड नैनोमैटीरियल्स में प्रकाशित हुआ है।
ज्यादा मजबूत और टिकाऊ सॉल्यूशन
कार्बन नैनोट्यूब जिस स्टेनलेस स्टील मेश पर तैयार किए हैं, उनमें भौतिक लचीलापन है। इस लिए इस एनर्जी स्टोरस डिवाइस को बियरेबल, मिनियेचर और पोर्टेबल इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट और स्मार्ट डिवाइसेज में लगाना आसान होगा।

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एडवांस्ड मैटीरियल्स पर डॉ. बालकृष्णन ने कहा कि शोध से व्यावसायिक रूप से सफल, स्टैंड एलोन सुपर कैपेसिटर आधारित एनर्जी स्टोरेज सॉल्यूशन तैयार करने का लक्ष्य पूरा होगा। ये सॉल्यूशन सुरक्षित, शक्तिशाली और वर्तमान बैट्रियों के मुकाबले लंबी अवधि तक उपयोगी रहेंगे।
अब तक लीथियम बैटरी हो रही प्रयोग
वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स डिवाइस जैसे मोबाइल फोन, लैपटॉप और इलेक्ट्रिक कार में भी लीथियम आयन बैटरियों का उपयोग हो रहा है। इनकी बड़ी कमी इनके चार्ज होने में ज्यादा समय लगना है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस लंबे समय तक काम बंद कर देते हैं।

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यह है सुपर कैपेसिटर
सुपर कैपेसिटर में इलेक्ट्रोलाइट में डूबे दो सुचालक (कंडक्टिंग) इलेक्ट्रोड होते हैं। चार्ज को अलग रखने के लिए इनके बीच बिजली प्रवाह रोकने वाली एक परत होती है। इनमें करंट देने पर दो इलेक्ट्रोड के पोटेंशियल में अंतर पैदा होता है और विपरीत चार्ज के साथ ऑयन्स इलेक्ट्रोड के संबंधित सतहों पर एबजॉर्ब हो जाते हैं।

चार्ज स्टोर प्रक्रिया आसानी से रिवर्सिबल है। यही वजह है कि सुपर कैपेसिटर जल्द डिस्चार्ज हो जाते हैं। बतौर इलेक्ट्रोड मैटीरियल मोटे तौर पर कार्बन इस्तेमाल किया जाता है पर सामान्य रूप में पाए जाने वाले कार्बन कम एनर्जी डेनसिटी पैदा करते हैं।

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