मोक्षदा एकादशी 2018: यह है इस व्रत का मुहूर्त, होगा पापों का नाश, खुलेंगे स्वर्ग के दरवाजे!

मार्गशीर्ष महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को भारतीय धर्म शास्त्रों में मोक्षदायिनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। मोक्षदा एकादशी का धार्मिक महत्व पितरों को मोक्ष दिलानेवाली एकादशी के रूप में भी है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्रत करनेवाले व्यक्ति के साथ ही उसके पितरों के लिए भी मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। इस बार मोक्षदायिनी एकादशी 18 और 19 दिसंबर को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं, इस एकादशी के महत्व और सही मुहूर्त के बारे में…

Mokshada Ekadashi

मोक्षदायिनी एकादशी व्रत की सही तिथि
पंचांग के अनुसार, 18 दिसंबर को एकादशी तिथि का आरंभ सूर्योदय के बाद हो रहा है। इसलिए इस तिथि को लेकर लोगों के बीच संशय की स्थिति बनी हुई है। लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जिस तिथि में सूर्योदय होता है, उस दिन उसी तिथि का सूर्यास्त माना जाता है। फिर भले ही दिन में किसी समय तिथि बदल रही हो। इस बार 18 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 58 मिनट से एकादशी तिथि शुरू होगी। स्मार्त व्रत 18 तारीख को रखेंगे और वैष्णव 19 तारीख को मोक्षदायिनी एकादशी तिथि का व्रत-पूजन करेंगे। एकादशी तिथि 19 दिसंबर को सुबह 7 बजकर 35 मिनट तक रहेगी। इसके बाद द्वादशी शुरू हो जाएगी।

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इस एकादशी से है श्रीमद्भागवत गीता का नाता
आस्था है कि मोक्षदायिनी एकादशी को मोक्षदायिनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश अर्जुन को दिया था। गीता पहला ऐसा ग्रंथ है, जिसे स्वयं श्रीहरि ने अपने द्वारा मानव जाति के कल्याण के लिए प्रस्तुत किया। द्वापर युग में महाभारत युद्ध के दौरान जब अर्जुन अपने सगे संबंधियों पर बाण चलाने से घबराने लगे तब श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन, आत्मा और कर्तव्य के बारे में विस्तार से समझाया।

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मोक्षदा एकादशी व्रत और पूजन?
-मोक्षदा एकादशी के व्रत की विधि बहुत सरल है। इस दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर घर के मंदिर की सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल छिड़कें।

-पूजाघर में भगवान को गंगाजल से स्नान कराएं या उनकी तस्वीर पर गंगाजल के छींटे दें। उन्हें वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद रोली और अक्षत से तिलक करें। फूलों से भगवान का श्रृंगार करें। इत्र छिड़कें।

-भगवान को फल और मेवे का भोग लगाएं। सबसे पहले भगवान गणपति और फिर माता लक्ष्मी के साथ श्रीहरि की आरती करें। आज भगवान विष्णु को तुलसी के पत्ते अवश्य अर्पित करें।

-दिनभर व्रत करें। फलाहार कर सकते हैं और यदि पूरे दिन व्रत संभव न हो तो एक समय सात्विक भोजन कर सकते हैं। व्रत के दौरान मन शांत रखें। क्रोध न करें और किसी को अपशब्द न कहें। शाम के समय दीपक जलाकर भजन-कीर्तन करें।

-द्वादशी पर सुबह स्नानादि के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें। संभव हो तो मंदिर जाएं और पुजारी जी को दान-दक्षिणा दें। आप चाहें तो घर पर ब्राह्मणों को भोजन भी करा सकते हैं।

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