मिर्जापुर के बाबा बूढ़ेनाथ मंदिर में लगा श्रद्धालुओं का तांता

Report :- राजन गुप्ता/मिर्जापुर

मिर्जापुर नगर के मध्य सत्ययुग से विराजमान बाबा बूढ़ेनाथ भक्तों की कामना हर युगों में पूरा कर रहे है। त्रिशूल के अग्र भाग पर काशी तो पुच्छ भाग पर गिरजापुर वर्तमान मीरजापुर बसा है। सत्ययुग में यह सिद्धेश्वर महादेव तो द्वापर में वृद्धेश्वर महादेव के रूप में पूजित हुए । कलयुग में यह बूढ़ेनाथ के रूप में भक्तों को दर्शन दे रहे है …..

सावन

अनादि काल से बाबा बूढेनाथ का मंदिर भक्तों के आस्था का केंद्र रहा है । सावन माह में बाबा के भक्तो की तादात में बेतहासा वृद्धि हो जाती है। बाबा के दर पर आने वाले भक्तों की मनोकामना पूरी होने से भक्त बिना अपने आराध्य का दर्शन किये सुकून नहीं पाते । बाबा का दर्शन पूजन करने से भक्तो की मनोकामना पूरी होती है.

मान्यता है कि प्राचीन नगरी गिरजापुर वर्तमान मीरजापुर में गंगा नदी के किनारे देवो ने बाबा के शिवलिंग का स्थापना  किया था. हजारों वर्षो से बना मंदिर समय की मार से जर्जर होने पर मंदिर का तीसरी बार जीर्णोद्धार 1960  में जूना मठ के महंथ रामानंद महराज ने कराया. पत्थरों पर आकर्षक कलाकृति करके मंदिर को भव्य रूप दिया गया.

बूढेनाथ के मंदिर में सावन के दिनों में भक्तो का ताँता लगा रहता है  | सोमवार को इनकी संख्या बढ़ जाती है । गंगा नदी के दक्षिण तट पर विराजमान बाबा के द्वार पर रुद्रावतार बाबा भैरो नाथ का दर्शन मिलता है ।

इनका दर्शन पूजन करने के बाद ही भक्त मंदिर में घंटा बजाकर हाजरी लगाते है | प्राचीन मंदिर में प्रवेश करते ही बाबा का दर्शन आँख नीची करने के बाद  है । धरातल से कई फ़ीट नीचे अरघे पर विराजमान बाबा का दर्शन कर भक्त पत्र पुष्प अर्पित करने के पूर्व जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक करते है । धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर आराध्य से मन्नत मांगते है.

मंदिर के महंत स्वामी डॉ० योगानंद गिरी महाराज ने बताया कि स्कन्द पुराण में वर्णन आता है कि जब बाबा कैलाश पर्वत त्याग कर काशी में बसने की तैयारी कर रहे थे। तब माता पार्वती ने उनके साथ रहने की इच्छा व्यक्त किया।

हरेला पर्व के तहत चमोली जिले के किया गया वृक्षारोपण

इस पर भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल के अग्रभाग पर काशी तो त्रिशूल के पुच्छ भाग पर माता पार्वती के लिए गिरजापुर बसाया। बाबा दिन में काशी तो रात्रि में गिरजापुर में वास करते है।

सत्ययुग में जव देवता असुरों से परास्त हुए तब ब्रह्मा और विष्णु की साधना की। तप के बाद भी कोई समाधान न निकलने पर वह सिद्धेश्वर महादेव की शरण में आये और उनकी कामना सिद्ध हुई।

LIVE TV