ऐसे करें मां महागौरी की आराधना, मिलेगी हर दुखों से मुक्ति

नवरात्र का पर्व अति पावन है. इन नौ दिनों में भक्तों को मां भगवती की आराधना पूरे ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए करनी चाहिए. मां की शुद्ध मन और अंतःकरण से पूजा करने से भक्तों को उनकी तपस्या का सबसे ज्यादा फल मिलता है.

मां महागौरी

एक चैत्र माह में, तो दूसरा आश्विन माह में. लेकिन चैत्र नवरात्र का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार ही चैत्र नवरात्र से ही नए साल की शुरूआत होती है. इस दिन चंद्रमा चित्रा और स्वाति नक्षत्र में होता है. नवरात्र का अर्थ नौ रातें होता है. इन नौ रातों में तीन देवी पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती यानि मां शक्ति के नौ रुपों की पूजा होती है जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं. नवरात्र में देवी की साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है. इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के जिन नौ रूपों की पूजा होती हैं उनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंधमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री हैं.

नवरात्र मां दुर्गा की स्तुति, कलश स्थापना, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध- नौ दिनों तक चलने वाला आस्था और विश्वास का अद्भुत त्यौहार है.  देवी दुर्गा की पवित्र भक्ति से भक्तों को सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है. इन नौ दिनों में देवी के नौ रुपों की पूजा की जाए तो देवी का आशीर्वाद मिलता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

कालरात्रि
मां दुर्गाजी की सातवीं शक्ति को कालरात्रि के नाम से जाना जाता हैं. दुर्गापूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है. इस दिन साधक का मन ‘ सहस्रार ‘ चक्र में स्थित रहता है. उसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है. सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णतः मां कालरात्रि के स्वरूप में अवस्थित रहता है. उनके साक्षात्कार से मिलने वाले पुण्य का वह भागी हो जाता है. उसके समस्त पापों-विघ्नों का नाश हो जाता है. उसे अक्षय पुण्य-लोकों की प्राप्ति होती है. मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली देवी हैं. दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. मां कालरात्री हमारे जीवन में आने वाली सभी ग्रह-बाधाओं को भी दूर करती है. माता की पूजा करने वाले को अग्नि-भय, जल-भय,  जंतु-भय, शत्रु-भय,   रात्रि-भय कभी नहीं सताता इनकी कृपा से भक्त हमेशा-हमेशा के लिए भय-मुक्त हो जाता है. देवी कालरात्रि का वर्ण काजल के समान काले रंग का है जो काले अमावस की रात्रि को भी मात देता है.

 

मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है. दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है. इन्होंने भगवान शिव के वरण के लिए कठोर संकल्प लिया था. इस कठोर तपस्या के कारण इनका शरीर एकदम काला पड़ गया. इनकी तपस्या से प्रसन्न और संतुष्ट होकर जब भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगाजी के पवित्र जल से मलकर धोया तब वह विद्युत प्रभा के समान अत्यंत कांतिमान-गौर हो उठा. तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा. इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी, त्रैलोक्यपूज्या, शारीरिक मानसिक और सांसारिक ताप का हरण करने वाली माता महागौरी के नाम से जाना जाता है. इनकी शक्ति अमोघ है और ये सद्य फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं.

देवी महागौरी की उपासना से इस जन्म के ही नहीं पूर्व जन्म के पाप भी कट जाते है. यही नहीं भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख कभी भक्त को परेशान नहीं करते. देवी गौरी का उपासक पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है. मां महागौरी का वर्ण पूर्णतः गौर है.  इस गौरता की उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है.  इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गई है. इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत होते हैं. महागौरी की चार भुजाएँ हैं. इनका वाहन वृषभ यानी बैल है. मां गौरी के ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपरवाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा हैं. इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है. जिनके स्मरण मात्र से भक्तों को अपार खुशी मिलती है, इसलिए इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं का पूजन और सम्मान करते हुए महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं. यह धन-वैभव और सुख-शांति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं.

सिद्धिदात्री
भक्तों नवरात्र के आखिरी दिन मां जगदंबा के सिद्धिदात्री स्वरुप की पूजा की जाती है. मां सिद्धिदात्री भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है. देवी दुर्गा के इस अंतिम स्वरुप को नव दुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है. मां सिद्धिदात्री के स्वरुप की पूजा देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि-मुनि, साधक और संसारी जन नवरात्र के नवें दिन करते हैं. मां की पूजा अर्चना से भक्तों को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है. मां सिद्धिदात्री उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती है जो सच्चे मन से उनके लिए आराधना करते हैं.

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिया, प्राप्ति, प्रकाम्य, ईशित्व और वशित्व ये आठ सिध्दियां होती है. देवी पुराण के अनुसार भगवान शिव ने इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था. इन्हीं की अनुकम्पा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था.  इसी कारण वह संसार में अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए. माता सिद्धीदात्री चार भुजाओं वाली हैं. इनका वाहन सिंह है. ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं. इनकी दाहिनी नीचे वाली भुजा में चक्र , ऊपर वाली भुजा में गदा और बांयी तरफ नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमलपुष्प है नवरात्रि पूजन के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है. देवी सिद्धिदात्री को मां सरस्वती का स्वरुप माना जाता है.

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