
पुरुषों में शिश्न के अग्रभाग की त्वचा को पूरी तरह या आंशिक रूप से काटकर हटा दिया जाता है। इसी तरह पांच से सात साल के बीच की बच्चियों के जननांग के अग्रभाग की खाल को काट दिया जाता है। इसे सुन्नत या खतना कहते हैं। महिलाओं का खतना कुछ अफ्रीकी देशों में आज भी प्रचलन में है। मगर अब इसका विरोध भारत सहित अन्य देशों में बढने लगा है। कहीं-कहीं पर तो इसे गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है।
ताजा मामला है कीनिया का है, जहां पर छुट्टियों के कारण स्कूलों को एक महीना पहले बंद हो जाना चाहिए था, मगर खतने के डर से लड़कियों के लिए स्कूल अब भी खुले हुए हैं। इसके साथ ही अन्य लड़कियां चर्चों में रह रही हैं।
14 साल की एक लड़की ने बताया कि आर्थिक और सांस्कृतिक वजहों से ज़्यादातर माता-पिता इस परंपरा के समर्थक हैं।
एक लड़की का कहना है, ”मेरे माता-पिता दहेज की वजह से जबरन खतना कराना चाहते हैं। जब लड़कियों का खतना किया जाता है, तो यह माना जाता है कि अब उनकी शादी कर दी जाएगी। क्योंकि खतना होने के बाद माता-पिता अपनी बेटियों को पेश कर देते हैं। फिर उनके परिवार वालों को दहेज में गाय मिलती हैं।”
जबकि कीनिया में साल 2011 में खतना को ग़ैरक़ानूनी बनाया जा चुका है। इसके साथ ही दोषियों पर भारी जुर्माना भी लगाया जाता है, लेकिन यह परंपरा अब भी थमी नहीं है।
कीनिया के कई हिस्सों में लड़कियों का खतना अब भी हो रहा है। दिसंबर की छुट्टियां यहां की लड़कियों के लिए किसी शामत से कम नहीं होती हैं। इसी महीने में लड़के और लड़कियों का खतना किया जाता है।
इन्हें साल खत्म होने तक स्कूलों में रहने देने का निर्देश दिया गया है। ऐसा कम उम्र में शादी और खतने को रोकने के लिए किया गया है।
कीनिया सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़, यहां 15 से 49 साल के बीच की पांच में से हर एक महिला का खतना हुआ है। कुछ ऐसी ही निराशाजनक स्थिति यहां की बच्चियों के साथ भी है। खतने की वजह से अपने ही मां-बाप से लडकियां डरी हुई हैं।