
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की टीम ने आठ साल पहले महर्षि पाराशर तीर्थ में प्राचीन शिव मंदिर द्वार पर लगे अभिलेख की गहनता से जांच की थी। साथ ही अभिलेख के चित्र भी ले गई थी। केयूके के पुरातत्व विभाग ने मिलकर विश्लेषण भी किया था लेकिन आज तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे। हरियाणा के करनाल के गांव बहलोलपुर के पास स्थित महर्षि पाराशर तीर्थ में प्राचीन शिव मंदिर द्वार पर लगा अभिलेख पहेली बना हुआ है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग की नजरों में आने के आठ साल बाद भी इसे सुलझाया नहीं जा सका है।
इसके बारे में इतिहासकारों की अलग-अलग राय है, लेकिन आज तक अभिलेख को स्पष्ट नहीं किया जा सका है। मान्यता है कि महर्षि पाराशर, जिनकी ज्योतिष विद्या दुनिया में विख्यात है, इस तीर्थ स्थल पर तपस्या के लिए आए थे। महाभारत में दुर्योधन का वध यहीं हुआ था, जिसके बाद युद्ध समाप्त हो गया था।
उस समय यह बात सामने आई थी कि इस शिलालेख में कुछ शब्द मौर्यन लिपि के हैं, कुछ देवनागरी के और कुछ मूली लिपि के हैं। मूलिया भाषा मौर्य काल की है। मूली लिपि बही-खातों में आज भी प्रचलन में है लेकिन उसे बहुत कम लोग जानते हैं। मौर्यन लिपि सम्राट अशोक के समय की 323 ईसा पूर्व से 184 ईसा पूर्व के मध्य की है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने कभी इस तीर्थ के शिलालेखों की जांच नहीं की। यह अभिलेख क्या इंगित करता है और उससे क्या पता चलता है, किस काल और शासक के समय का है, यह अभी स्पष्ट नहीं हो पा रहा।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के पुरातत्व विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अरुण केसरवानी का कहना है कि उन्होंने तीर्थ पर जांच की थी। शिलालेख को दिल्ली के अलावा कई जगह जांच के लिए भेजा गया था, लेकिन कोई जवाब नहीं आया था। अब वह सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जांच-परख में इस शिलालेख के बारे में कुछ पता नहीं चल पाया।
पुरातत्ववेता एवं राजकीय महिला कालेज मतलौडा के प्रोफेसर विनय कुमार डांगी का कहना है कि महर्षि पाराशर तीर्थ में प्राचीन शिव मंदिर द्वार पर लगे अभिलेख की जांच को गई टीम में वे भी शामिल थे। उस दौरान वे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में स्टूडेंट थे। उन्होंने बताया कि शिलालेख में कई लिपियों का मिश्रण है। पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से इस पर काम करना जरूरी है। इससे क्षेत्र के इतिहास को मजबूती मिलेगी।