ढाई साल बाद हुए मंत्रिमंडल विस्तार का क्या है जातीय समीकरण, क्या किसी विशेष जाति को मिला स्थान

योगी सरकार के कुर्सी पर बैठने के लगभग ढाई साल बाद मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया । कहीं पर जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश की गी तो कहीं ब्राह्मण और वैश्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने का संदेश दिया गया। पहली बार गुर्जर, गड़रिया, जाटव और कहार जाति के विधायकों को कैबिनेट में स्थान देकर नारजगी दूर करने की कोशिश की गई ।

मंत्रिमंडल विस्तार

कुर्मी और जाटों के साथ पिछड़ों और अनुसूचित जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर भाजपा की चुनावी लड़ाई को 60 बनाम 40 बनाने को ही जमीन पर उतारा गया है। ऑपरेशन क्लीन के चलते विवादों में घिरे चेहरों को किनारे करने की कोशिशों को कुछ हद तक अमली जामा पहनाने के बावजूद ध्यान रखा गया है कि जातीय गणित गड़बड़ाने न पाए।

विस्तार के बाद 56 सदस्यीय मंत्रिमंडल में अगड़ों और पिछड़ों व अनुसूचित जाति के बीच 50-50 प्रतिशत की हिस्सेदारी की रणनीति पर काम किया गया है। अब अगड़ी जातियों के 28 मंत्री हो गए हैं। पिछड़ी जातियों के 19, अनुसूचित जातियों के सात चेहरों के साथ एक सिख तथा एक मुस्लिम चेहरा यानी गैर अगड़े भी कुल 28 चेहरे ही मंत्रिमंडल में हैं।

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अगड़ों में नौ ब्राह्मण, 8 ठाकुर, 5 वैश्य 2 भूमिहार, 3 खत्री और 1 कायस्थ हैं। पिछड़ों में 4 कुर्मी, 3 जाट, 2 लोध, 2 मौर्य तथा गुर्जर, गड़रिया, कहार, निषाद, नोनिया चौहान, सैनी, यादव व राजभर समाज का एक-एक चेहरा है।

अनुसूचित जाति से जीएस धर्मेश को शामिल कर पहली बार जाटव बिरादरी को प्रतिनिधित्व देने के साथ तथा इसी जिले की फतेहपुर सीकरी से विधायक जाट बिरादरी के चौधरी उदयभान को मंत्री बनाकर आगरा और आसपास के जातीय समीकरणों को और मजबूत बनाने की कोशिश की गई है। कमल रानी वरुण को लेकर पासी समाज की हिस्सेदारी बढ़ाकर भाजपा के परंपरागत मतदाताओं के बीच पकड़ को और मजबूत करने की कोशिश की गई है।

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