भारत के पड़ोसी देशों में बद से बदतर है हिंदुओं की हालत, 25 सालों बाद यहां नहीं बचेगा एक भी हिंदू

भारत के पड़ोसी देशों में हिंदुओं की हालत लगातार बदतर होती जा रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं का जीना हराम हो चुका है। आलम यह है कि अब यहां से हिंदू अपनी जान बचा कर सब कुछ छोड़कर भाग रहे हैं। जिस तरह से वहां से हिंदुओं का पलायन हो रहा है उसके बाद कहा जा सकता है कि 25 सालों बाद बांग्लादेश में कोई हिंदू नहीं बचेगा। सेंटर फॉर डेमोक्रेसी प्लूरलिज्म एंड ह्यूमन राइट्स(CDPHR) ने यह दावा ताजा रिपोर्ट में किया है।

CDPHR ने भारत के 7 पड़ोसी देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, श्रीलंका और तिब्बत में मानवाधिकार को लेकर यह रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट शिक्षाविद, वकील, जज, मीडियाकर्मी और शोधकर्ताओं के एक समूह द्वारा तैयार की गयी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बांग्लादेश में मानवाधिकार और धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति भी बदतर हो गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अब्दुल बरकत ने दावा किया है कि पिछले 4 दशक में बांग्लादेश से 2.3 लाख से ज्यादा लोग हर साल पलायन कर रहे हैं। इसका औसत 632 लोग प्रतिदिन वहां से पलायन करने को मजबूर हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर इसी तरह से बांग्लादेश से पलायन होता रहा तो 25 सालों बाद वहां कोई भी हिंदू नहीं रहेगा।

यही नहीं इस रिपोर्ट में पाकिस्तान में मानवाधिकार की स्थिति पर भी चिंता व्यक्त की गयी है। पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ ही सिख और ईसाई अल्पसंख्यकों को भी चुनौतियां झेलनी पड़ती है। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों का रहना जंग लड़ने से कम नहीं है। वहां लगातार हिंदू, सिख और ईसाई धर्म की युवा महिलाओं के साथ अपहरण, दुष्कर्म और जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाएं होती हैं। यही नहीं वहां अल्पसंख्यकों को डराया और धमकाया भी जाता है।

बात अगर आंकड़ों की हो तो पाकिस्तान की आबादी 21 करोड़ है। विभाजन के समय मजहबी जनसांख्यिकी प्रतिशत को आधार बना तो हिंदू-सिखों की आबादी 3.5 करोड़ होनी चाहिए थी। लेकिन अब यह महज 50-60 लाख ही रह गयी है। ज्यादातर हिंदू-सिख या तो उत्पीड़न से त्रस्त होकर इस्लाम अपना चुके हैं या फिर उन्होंने पलायन कर लिया। चल रहे इस खेल के बीच जिसने भी विरोध की आवाज उठाई उसे मार दिया गया।

यही नहीं अफगानिस्तान में भी हिंदू अब लुप्त होने की ही कगार पर हैं। यहां संविधान के मुताबिक कोई मुस्लिम व्यक्ति ही देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन सकता है। 1970 की जनसंख्या के मुताबिक वहां 7 लाख से करीब हिंदू और सिख थे जो अब सिर्फ 200 हिंदू और सिख परिवार रह गए हैं। तिब्बत में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। चीन में इसको लेकर खासे प्रतिबंध लगा रखे हैं। वह सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई पहचान खत्म करने की कोशिश कर रहा है। मलेशिया में भी हिंदुओं की 6.4 फीसदी है लेकिन यहां हिंदुओं को यहां मुस्लिमों के समान अधिकार नहीं है। बात अगर इंडोनेशिया में पिछले कुछ सालों से धार्मिक कट्टरता बढ़ गयी है और अब अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। यहां भी हिंदू लगातार निशाने पर हैं। इसी के साथ श्रीलंका में भी धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति चिंताजनक है।

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