भगवान की सच्ची कहानी, कोरोना काल की ज़ुबानी !

-मितेश सिंह
क्या आपने कभी भगवान को देखा है? यहां हम उसी भगवान की बात कर रहा हूं, जिन्हें आप डॉक्टर कहते हैं। लेकिन, आज जिन डॉक्टर्स की बात मैं आपको बताने जा रहे हैं, उनमें आपको साक्षात भगवान नज़र आएंगे। ये सच्ची कहानी उन्हीं भगवानों की है, जो आमतौर पर सफेद कोट में नज़र आते हैं, लेकिन कोरोना काल में सिर से पैर तक सफेद पीपीई किट में 8 घंटे तक बमुश्क़िल सांस लेते इन भगवानों ने अब तक हज़ारों इंसानों की ज़िंदगी बचाई है। यक़ीन मानिये इनका ये सच जानने के बाद आपको ख़ुद पर गर्व होगा, इन पर नाज़ होगा औप आप इनके हौसलों और समर्पण को आप सलाम करेंगे।

कोरोना काल में इंसानों को जानलेवा वायरस के संक्रमण से बचाने वाले भगवानों की ये कहानी शुरू होती है DRDO के कोविड केयर सेंटर द्वारका से। एयरपोर्ट की ओर जाने वाली एक सड़क पर DRDO ने महज़ 15-18 दिनों में दो बड़े टेंटनुमा हॉस्पिटल तैयार कर दिए। इसके बाद इस जगह को नाम दिया गया ‘सरदार वल्लभभाई पटेल कोविड हॉस्पिटल’। इस अस्थाई अस्पताल में पुणे से तीनों सेनाओं की मेडिकल टीमें आईं। करीब दो से ढाई हज़ार डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ, मेडिकल असिस्टेंट की लंबी-चौड़ी टीम आई। इससे पहले इस टीम ने कभी कोरोना हॉस्पिटल में काम नहीं किया था, क्योंकि एक साल पुराने वायरस के ख़िलाफ़ ट्रेनिंग ही कुछ दिनों पहले मिली थी। लेकिन, इस कोविड हॉस्पिटल में जब इन सेना के जांबाज़ डॉक्टर्स की टीमें आईं, तो सबकुछ वैसे ही शुरू हुआ जैसे दुश्मनों के ख़िलाफ़ मिशन शुरू होता है।

कोविड हॉस्पिटल में सेना के डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ ने कोरोना वायरस से बेहाल मरीज़ों का इलाज शुरू किया। सिर्फ़ 5-6 घंटे लगातार मास्क लगाना पड़ जाए, तो हम बेचैन हो जाते हैं, लेकिन यहां 8-9 घंटे की शिफ्ट में पीपीई किट पहने मेडिकल स्टाफ ना तो पानी पी सकता है और ना ही वॉशरूम जा सकता है ड्यूटी, ड्यूटी और सिर्फ़ ड्यूटी। यहां के अस्थाई अस्पताल की शायद देश के किसी भी अस्पताल से तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि, ये हर मायने में बाक़ी सभी अस्पतालों से बेहतर है। चाहे डॉक्टर्स की ड्यूटी की बात हो, चाहे हर घंटे मरीज़ों का हालचाल जानने के लिए दौरा करने की बात हो और चाहे एक-एक दवा हर मरीज़ को अपने हाथ से देने वाला सेवा और समर्पण का भाव हो। गंभीर से गंभीर मरीज़ों से कुछ इंच की दूरी तक जाकर उनकी बात सुनना, दर्द समझना और उनकी तकलीफ़ें दूर करना। ये सबकुछ आंखों के सामने ऐसे चलता रहता है, जैसे ये कोरोना के ख़िलाफ़ कोई काल्पनिक दुनिया है। ऐसे अस्थाई अस्पताल में HDU, ICU और बेहद गंभीर मरीज़ों के लिए हर तरह की सुविधा का इंतज़ाम करना अपने आप में अविश्वनीय है। आधी रात को जब कोई मरीज़ बेचैन होता है, तो उसे दूर से ही देखकर दौरे पर मौजूद मेडिकल स्टाफ फौरन उनके पास जाता है। पूरी रात आप हॉस्पिटल के बेड पर सो रहे हों या जाग रहे हों, मेडिकल टीम का कोई ना कोई सदस्य आपको हर आधे घंटे में अपने आसपास नज़र आ जाएगा। ये सिर्फ़ इलाज ही नहीं करते, बल्कि जो जितनी ज़्यादा दयनीय हालत में है, उसकी उतनी ही ज़्यादा देखरेख करते हैं।

आर्मी कैंटीन से मरीज़ों के लिए जो खाना आता है, उसे कई बुज़ुर्ग और गंभीर मरीज़ ख़ुद खा नहीं पाते। ऐसे समय में मेडिकल टीम के कुछ लोग उन मरीज़ों के पास खाना पहुंचते ही आ जाते हैं और उन्हें अपने हाथों से खिलाते हैं। सबकुछ अपनी आंखों से देखकर भी यक़ीन नहीं होता। जिस कोरोना ने इंसान को इंसान से जीते जी दूर रहने पर मजबूर कर दिया। जिस कोरोना की वजह से परिवार में रहते हुए भी लोग एक-दूसरे के करीब जाने में डरते हैं। ना ज़िंदा रहते हुए, ना किसी की मौत पर, ना बीमारी में, ना ज़रूरत के वक्त.. किसी भी तरह आप कोरोना पीड़ितों के करीब नहीं जा सकते। ये कोरोना काल का सबसे कड़वा सच है.. इस दौर में तमाम प्राइवेट हॉस्पिटल और कोविड केयर सेंटर हैं, जहां इलाज और आईसोलेशन की व्यवस्था तो है, लेकिन आर्मी के कोविड स्पेशल हॉस्पिटल जैसा इलाज, सेवा, समर्पण और डॉक्टर्स का संघर्ष कहीं और देखने को नहीं मिलता।
इन डॉक्टर्स की टीम ने बताया कि वो लोग करीब 6 महीने से अपने घर नहीं जा सके हैं..यहां के मेडिकल इंचार्ज शैलेंद्र जी, शैलजा जी, अपराजिता जी, रश्मि जी ऐसे तमाम नाम हैं, जिन्हें यहां के मरीज़ कभी नहीं भूल सकते सिर से पैर तक पीपीई किट, आंखों पर मोटे-मोटे ग्लास में ख़ुद को समेटकर मुश्क़िल से सांस लेती सेना की ये मेडिकल टीम किसी युद्ध की तरह कोरोना के मरीज़ों के साथ मिलकर वायरस से लड़ रही है.. इनमें से कुछ लोग वायरस से संक्रमित हो गए, लेकिन ठीक होकर फिर मरीज़ों की सेवा में लग गए.. जुलाई से सितंबर तक करीब 3 हज़ार लोगों को कोरोना संक्रमित लोगों को ठीक करके सकुशल घर भिजवाया जा चुका है.. इस मेडिकल टीम के साथ-साथ इस बात का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है कि हाउस कीपिंग स्टाफ समेत आर्मी के इस कोविड स्पेशल हॉस्पिटल में काम करने वाला हर शख़्स फ़र्ज़, सेवा और समर्पण की मिसाल है.. शायद इसीलिए, जैसे ही अस्पताल में कोई कोरोना मरीज़ परेशान होता है, तो सफेद पीपीई किट में अपनी ओर आती मेडिकल टीम को देखकर राहत की सांसें लेने लगता है..इस मेडिकल टीम पर देश को गर्व है..कोरोना से लड़ रही सेना की इस पूरी टीम को हज़ारों सलाम..

(यह विचार पंकज त्रिपाठी ने अपने फेसबुक पर साझा किये हैं।)

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