बीहड़ों से गायब हुईं ये अनमोल जड़ी-बूटियां

बेशकीमती जड़ी-बूटियांहमीरपुर। बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में पर्यावरण असंतुलन के कारण यमुना नदी के बीहड़ों में मिलने वाली बेशकीमती जड़ी-बूटियां तेजी से विलुप्त होती जा रही हैं। इन जड़ी बूटियों के स्थान पर अब जंगली खर-पतवार का विस्तार होता जा रहा है। इससे न केवल वन संपदा प्रभावित हो रही है, बल्कि आयुर्वेदिक चिकित्सा क्षेत्र को भी झटका लग रहा है।

बेशकीमती जड़ी-बूटियां

यमुना का तटवर्ती बीहड़ क्षेत्र किसी जमाने में डकैतों की शरणस्थली के रूप में जाना जाता रहा है। इस क्षेत्र को अकूत वन संपदा के भंडार के रूप में भी पहचाना जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण इस क्षेत्र में शंखपुष्पी, पर्णी, सरमुखी, सर्पगंधा, गरुचवसक, मूसा, दक्खिनी बचकी, देसी बचकी, चितावर, चाभ, नागर पौधा व अन्य जीवनदायी वनस्पतियां प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी, मगर अब ये वनस्पतियां यहां यमुना नदी के बीहड़ों में खोजने पर भी नहीं मिलतीं।

आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. रमेश कांत दत्त का कहना है कि इन वनस्पतियों का स्थान भी ऐसी वनस्पतियां लेती जा रही हैं जो स्वास्थ्य व पर्यावरण के मद्देनजर बेहद हानिकारक हैं। इनमें भटकटैया, मदार व एजीटरम आदि प्रमुख वनस्पतियां हैं। साथ ही यमुना नदी के बीहड़ों में ऐसी खरपतवार भी गायब होती जा रही हैं जो पर्यावरण संतुलन बनाने में बड़ी सहायक सिद्ध होती है। इसमें धतूरा, सरपुतहा, चकवड़, चकने वाली घास भी अब बहुत ही कम देखने को मिलती है।

उन्होंने बताया कि पिछले तीन दशकों के दौरान इनके विनाश में तेजी आई है। कोई ढाई दशक पूर्व सुमेरपुर के ही शिवदास गुप्ता कीमती वनस्पतियां जंगलों से लाकर दवा कंपनियों को आपूर्ति करते थे। उन्होंने कुछ युवकों को भी इस कार्य में लगा रखा था, मगर वनस्पतियों के विलुप्त होने पर यह काम भी उनके हाथ से निकल गया।

बुंदेलखंड के हमीरपुर भू-भाग में बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण तथा कीटनाशक दवाओं के धड़ल्ले से प्रयोग किए जाने से कुछ ऐसी वनस्पतियां भी खत्म हो गई हैं, जो वातावरण में गैसों का संतुलन बनाने में सहायक थीं। कुछ तालाबों और पोखरों में प्राकृतिक रूप से उगने वाले कमल, कमलगट्टा, जलनिमा, अमलताश, गराज, अगूठा, भींगी आदि के पौधे बहुत कम दिखाई देते हैं।

वैसे देखा जाए तो यह समस्या प्रारंभिक दौर में है, मगर समय रहते कोई उपाय नहीं किए गए तो आने वाले दिनों में समस्या गंभीर रूप ले सकती है। कीटनाशक दवाओं के धुंआधार प्रयोग से कुछ देसी मूल की वनस्पतियां लुप्त होने के कगार पर हैं।

जानकारों का कहना है कि पर्यावरण विशेषज्ञों को इस गंभीर समस्या की ओर कुछ न कुछ कदम उठाने चाहिए, वरना वह दिन दूर नहीं, जब यमुना नदी के बीहड़ों में अनमोल वनस्पतियां लुप्त हो जाएंगी।

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