प्रेम तीनों लोकों में व्‍याप्‍त है: मुरारी बापू

जब तक विकार है, विश्राम संभव ही नहीं। अविकार की भूमिका विश्राम का स्वरूप या कहें कि विश्राम की पहचान है। प्रेम ही इस भवसागर से पार उतारने वाला एकमात्र उपाय है। प्रेमी बैरागी होता है, जिससे आप प्रेम करते हैं, उस पर न्यौछावर हो जाते हैं। त्याग और वैराग्य सिखाना नहीं पड़ता। प्रेम की उपलब्धि ही वैराग्य है। जिन लोगों ने प्रेम किया है, उन्हें वैराग्य लाना नहीं पड़ा।

प्रेम

जिन लोगों ने केवल ज्ञान की चर्चा की, उनको वैराग्य ग्रहण करना पड़ा, त्यागी होना पड़ा, वैराग्य के सोपान चढ़ने पड़े। कभी गिरे, कभी चढ़े लेकिन पहुंच गए। जैसे जब कृष्ण ब्रज से गए तो क्या ब्रजांगनाएं घर छोड़कर चली गईं। क्या गोप भागे? नहीं, वे सब वहीं रहे। वही गायें, वही बछड़े, वही गोशालाएं, वही खेत, वही घर, सब वहीं थे लेकिन वे सभी परम वैराग्य को उपलब्ध हो गए। प्रेम में वैराग्य निर्माण करने की शक्ति है।

भक्ति का अर्थ है जिसको तुम प्रेम करते हो उसके इच्छानुकूल रहो, यही भक्ति है। अपना सब कुछ भूल कर सिर्फ साध्य के लिए ही समर्पित होना भक्ति है। सच्ची भक्ति व्यक्ति और ईश्वर को इस तरह एक दूसरे में समाहित कर देती है कि आपमें ईश्वर की छाया दिखाई देने लगती है। ये भक्ति का ही असर था कि मीरा ने हंसते-हंसते सब कुछ सह लिया। सच्चा भक्त ईश्वर में सबको और सबमें ईश्वर को देखता है।

प्रभु भक्ति करनी हो तो मीरा की तरह करो या प्रभु से प्रेम करना हो तो ब्रज गोपिका की तरह करो। मीरा की ईश्वर भक्ति सबसे श्रेष्ठ है। उस काल के भक्त कवियों नरसिंह मेहता, ज्ञानदेव, नामदेव, कबीर, तुलसी व मीरा में संवादों का आदान-प्रदान होता रहता था। राजस्थान को रंग रंगीले राजस्थान की संज्ञा सर्वप्रथम मीराबाई ने ही दी थी। किसी भी भक्त के लिए मीरा के भजन बहुत महत्वपूर्ण हो सकते हैं। भक्ति में गायन का अपना अलग मनोविज्ञान है। यदि गम में भी मीरा के भक्ति गीत गाये जाए तो दर्द कम हो जाता है।

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