बालगोविंदा नही फोड़ सकेंगे जन्माष्टमी पर मटकी

नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि 25 अगस्त को जन्माष्टमी के मौके पर महाराष्ट्र के ‘दही हांडी’ महोत्सव में मानव पिरामिड बनाने में 18 साल से कम आयु वालों को भाग लेने की अनुमति नहीं होगी।

पिरामिड

न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि मानव पिरामिड की ऊंचाई 20 फीट से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। पीठ का मानना है कि धार्मिक भावना के आधार पर हवाई करतब की इजाजत नहीं दी जा सकती।

खंडपीठ ने यह आदेश देते हुए बंबई उच्च न्यायालय के वर्ष 2014 में पारित किए गए दो निर्देशों पर सहमति जताई।

न्यायालय ने यह फैसला महाराष्ट्र सरकार के इस मामले पर दिए गए आवेदन पर स्पष्टीकरण देते हुए दिया।

हालांकि प्रशासन किस तरह इसका नियंत्रण या निरीक्षण करेगा कि 18 साल से कम उम्र के बच्चे मानव पिरामिड बनाने में भाग नहीं लें इस पर अदालत ने संदेह जताया।

शीर्ष अदालत ने यह फैसला तब दिया जब दही हांडी के कुछ आयोजकों ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी जिसमें उच्च न्यायालय ने कहा था कि 18 साल से कम उम्र वाले मानव पिरामिड बनाने में भाग नहीं लेंगे और दही हांडी की ऊंचाई 20 फीट से अधिक नहीं होगी।

उच्च न्यायालय ने नियम बनाने या परिपत्र में संशोधन के लिए भी निर्देश जारी किए थे। इस पर शीर्ष अदालत ने रोक लगा दी और कहा कि वह पूरे मामले पर अक्टूबर में सुनवाई करेगा।

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अपर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दही हांडी महोत्सव के मूल में भगवान कृष्ण के माखन चोरी करने की कहानी है जब वह 12-14 वर्ष के थे।

स्वाति सायाजी पाटील की ओर से पेश वकील नीतेश एस नेवशे ने अदालत से कहा कि केवल मुंबई में ही वर्ष 2011 में 156 लोग महोत्सव में पिरामिड बनाने में गिरे थे उनमें से 142 गंभीर रूप से घायल हुए थे।

नेवशे ने कहा कि पिछले साल पूरे महाराष्ट्र में एक हजार से अधिक लोग अस्पतालों में भर्ती हुए थे।

यह स्वयंसेवी संस्था उत्कर्ष महिला सामाजिक संस्था के सचिव पाटील की लोकहित याचिका थी जिस पर 11 अगस्त 2014 को उच्च न्यायालय ने कई निर्देश जारी किए थे जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने तीन दिनों बाद रोक लगा दी थी।

महाराष्ट्र सरकार 2014 के आदेश को स्पष्ट कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय पहुंची थी खासकर जब बंबई उच्च न्यायालय ने पाटील की उसकी 11 अगस्त 2014 के आदेश की अवमानना को लेकर दायर याचिका को देखते हुए बंबई उच्च न्यायालय ने आदेश का अनुपालन करने को कहा था।

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