पाकिस्तान में बढ़ी आर्थिक असमानता

पाकिस्तानइस्लामाबाद | पाकिस्तान में खपत आधारित गरीबी और बहुआयामी गरीबी में गिरावट आने के बावजूद आर्थिक असमानता बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की एक रपट में यह बात कही गई है। समाचार पत्र ‘डॉन’ की वेबसाइट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र की रपट के अनुसार, बढ़ती असमानता के कारण पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महब्बुल हक का 1968 का सिद्धांत प्रासंगिक बना हुआ है, क्योंकि देश की सर्वाधिक संपन्न 20 प्रतिशत आबादी सबसे गरीब 20 प्रतिशत आबादी की तुलना में सात गुणा अधिक उपभोग करती है।

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बहुआयामी गरीबी 10 प्रतिशत से कम

‘डेवलपमेंट एडवोकेट पाकिस्तान’ शीर्षक वाली रपट में कहा गया है कि 1998-99 और 2013-14 के बीच खपत आधारित गरीबी में गिरावट आने के बावजूद आर्थिक असमानता में वृद्धि हुई है। बहुआयामी गरीबी 2004-05 और 2014-15 के बीच 55.2 प्रतिशत से गिरकर 38.8 प्रतिशत रह गई है। रपट के मुताबिक, वर्ष 1987-88 में असामनता को मापने वाला गिनी गुणांक 0.35 था, जो कि 2013-14 में बढ़कर 0.41 हो गया है।

रपट के अनुसार, 21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती सतत विकास के लक्ष्य हासिल करना है, जिसमें हर प्रकार की गरीबी समाप्त करने का लक्ष्य भी शामिल है। रपट में कहा गया है कि पिछले महीने जारी हुए पाकिस्तान के बहुआयामी गरीबी सूचकांक से ज्ञात हुआ है कि शहरों की 9.3 प्रतिशत आबादी की तुलना में 54.6 प्रतिशत ग्रामीण पाकिस्तानी गरीब हैं। पंजाब प्रांत में बहुआयामी गरीबी का स्तर 31.5 प्रतिशत और संघ प्रशासित जनजातीय इलाकों में 73.7 प्रतिशत पाया गया।

रपट के अनुसार, इस्लामाबाद, लाहौर, कराची और रावलपिंडी में बहुआयामी गरीबी 10 प्रतिशत से कम है, जबकि किल्ला, अब्दुल्ला, हरनई, बरखान और शेरनी कोहिस्तान में यह 90 प्रतिशत से अधिक है। रपट में यह बात सामने आई कि कुछ पाकिस्तानी जिले किसी विकसित देश के समान संपन्न हैं, जबकि अन्य उप-सहारा अफ्रीका के सबसे गरीब इलाकों के समतुल्य हैं।

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रपट के अनुसार, “हक ने कुछ लोगों के पास इतनी अकूत संपत्ति संचय रोकने के लिए पाकिस्तान के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संस्थानों में सुधार करने को कहा था। हालांकि तब से अब तक स्थिति में काफी बदलाव हुआ है, लेकिन उनकी सिफारिशें तकल%

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