पश्चिम में ध्रुवीकरण के बाद पूरब की लड़ाई में जात-पात को लेकर बिगड़े बोल
पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण के दांव में नेताओं की बोली ऐसी बिगड़ी कि वे कई-कई दिन घर पर बैठने को मजबूर हो गए। अब चुनावी रण पूरब की ओर बढ़ चला है तो जात-पात का जाप शुरू हो गया है। पश्चिम की कई सीटों पर मुस्लिम आबादी 35 से 50 फीसदी तक है। लिहाजा, चुनाव आयोग की सख्त आचार संहिता के बावजूद वोट हासिल करने की छटपटाहट ने नेताओं को अपने-अपने हिसाब से ध्रुवीकरण कराने के लालच से बचने नहीं दिया।
पर, पूरब में धर्म से ज्यादा जाति प्रभावी है। अलग-अलग जिलों में अलग-अलग जातियों का प्रभाव है। पूरब की कुछ सीटों पर सवर्ण और दलित अहम भूमिका निभाते हैं। कई सीटों पर मुस्लिम इस स्थिति में हैं कि वे किसी ठोस वोटर समूह के साथ जुड़ जाएं तो चुनावी गणित बदलने में देर नहीं लगती। कई लोकसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अति पिछड़ी जातियां ज्यादा प्रभावी हैं। यही वजह है कि चुनाव का कारवां पूरब की तरफ जैसे-जैसे बढ़ रहा है, बड़े-बड़े नेता जात-पात का जाप करने लगे हैं।
प्रधानमंत्री का अति पिछड़ा दांव
जात-पात जपना, जनता का माल अपना। सपा-बसपा और कांग्रेस का यही हाल है। ये यही धंधा करते हैं। …उन्हें दिल्ली में एक ऐसी सरकार चाहिए जो मजबूर हो ताकि वो मनमर्जी कर सकें और लूट कर सकें। …जैसे 2014 से पहले ये करते थे। …मैं राजनीति में आया तो किसी को मेरी जाति के बारे में नहीं पता था। मैं उन्हें (मायावती) धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मेरी जाति के बारे में बता दिया। …मेरी जाति तो इतनी छोटी है कि गांव में एक-आध घर भी नहीं है। मैं तो पिछड़ा नहीं, अति पिछड़ा वर्ग में पैदा हुआ हूं। आप मेरे मुंह से बुलवा रही हैं इसलिए बोल रहा हूं।
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